संसद न सही सड़क से ही शुक्रवार को कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ विरोध का ऐसा बिगुल फूंका है, जिसमें मुद्दों के साथ भावनाओं का भी घोल है. 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद लगभग स्थिर सी हो गई कांग्रेस, लंबे अरसे बाद सड़क के रास्ते संसद को घेरने की तैयारी की है. यही कारण है कि पार्टी आलाकमान से लेकर वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता हर किसी में 'लोकतंत्र बचाओ' मार्च एक ऊर्जा का संचार करता भी दिख रहा है.
1) कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जंतर-मंतर पर अपने संबोधन में पार्टी में नई ऊर्जा का संचार करने के लिहाज से ही सही, साफ शब्दों में कहा कि एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए कांग्रेस कभी भी किसी भी कुर्बानी से पीछे नहीं हटेगी.
2) कांग्रेस शासित राज्यों में सरकार बचाने की कवायद हो या संसद में देशहित के मुद्दे, कांग्रेस मोदी सरकार के आगे थोड़ी कमजोर दिखी है. लेकिन जिस तरह शुक्रवार को जंतर-मंतर पर सोनिया और राहुल के साथ 83 साल के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी माइक थामा, यह कार्यकर्ताओं के लिए सीधे संकेत हैं कि पार्टी अब शांत बैठने की मुद्रा में नहीं है.
3) लोकतंत्र बचाओ मार्च इस मायने में भी खास है कि लंबे समय बाद सड़क पर पार्टी ने बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को एकजुट किया. शीर्षस्थ नेताओं से उनका सीधा संपर्क हुआ और कहीं न कहीं यह संकेत भी मिले कि मुद्दों पर शीर्ष नेतृत्व से नीचे तक हर कोई कदम से कदम मिलाकर चलेंगे.
4) संसद में बजट सत्र की कार्यवाही चल रही है. ऐसे में सदन के भीतर के साथ ही बाहर से केंद्र पर दबाव बनाने की कोशिश काम कर सकती है.
5) लोकतंत्र बचाओ मार्च की अगुवाई राहुल गांधी ने की, वहीं जंतर-मंतर पर कांग्रेस के पोस्टरों में रॉबर्ट वाड्रा भी दिखे. जबकि अब तक पार्टी वाड्रा को सियास कसरत से दूर ही रखती आ रही है. ऐसे में नए कयास लगने शुरू हो गए है और युवा कंधों पर जिम्मेदारी की सुगबुगाहट आने लगी है.