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बगावत का साल रहा 2017, ये रहे सबसे बड़े 'बागी'!

इसी साल कई नेताओं ने बगावत का रास्ता भी चुना और अपनी पार्टी या फिर नेता के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया. इससे पार्टी की छवि को तो नुकसान हुआ ही, साथ ही उनके खुद के राजनीतिक जीवन पर भी काफी असर पड़ा. इस साल में ऐसे से ही सबसे बड़े बागियों पर एक नज़र डालते हैं...

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2017 के बागी!
2017 के बागी!

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साल 2017 खत्म होने को है. इस साल में देश की राजनीति में कई तरह की उथल-पुथल हुई. कई राज्यों में सरकारें बदलीं, कई नेताओं ने पार्टी बदली और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चलती रही. इसी साल कई नेताओं ने बगावत का रास्ता भी चुना और अपनी पार्टी या फिर नेता के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया. इससे पार्टी की छवि को तो नुकसान हुआ ही, साथ ही उनके खुद के राजनीतिक जीवन पर भी काफी असर पड़ा. इस साल में ऐसे से ही सबसे बड़े बागियों पर एक नज़र डालते हैं...

1. शरद यादव (जनता दल (यू), बिहार)

जेपी आंदोलन से राजनीति में एंट्री करने वाले शरद यादव साल के सबसे बड़े बागियों में से एक रहे. जिस पार्टी को उन्होंने बनाया आज वह उसी से बाहर हैं. बिहार में महागठबंधन की सरकार के टूटने के बाद मुख्यमंत्री और मौजूदा पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया. शरद यादव ने इसका विरोध किया, अब चूंकि पार्टी के अधिकतम नेता, विधायक, सांसद नीतीश कुमार के ही हक़ में थे. इसलिए शरद यादव की नहीं चली. इसके बाद शरद ने लालू यादव की ओर से बुलाई गई विपक्ष की सयुंक्त रैली में भी  हिस्सा लिया था.  

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पार्टी में बगावत का नुकसान शरद यादव को अपनी राज्यसभा की सीट गंवा कर चुकाना पड़ा. शरद के बागी तेवरों को ढीला ना होते देख पार्टी ने उनकी राज्यसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की, जिसे मंजूर भी किया गया. हालांकि, वह अब इसको लेकर कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी में हैं.

राज्यसभा के अलावा शरद ने पार्टी पर अपना हक जमाने की कोशिश भी की थी, इसमें उनका साथ पार्टी के दूसरे बागी नेता अली अनवर ने दिया. इस दौरान राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस से भी शरद यादव को समर्थन मिलता रहा. हालांकि, इसमें भी चुनाव आयोग की ओर से शरद को निराशा ही हाथ लगी. आयोग ने नीतीश कुमार की पार्टी को ही असली जेडी(यू) माना और पार्टी का चुनाव चिन्ह तीर  भी नीतीश के हवाले ही किया.

जब से जेडी(यू) का गठन हुआ था, तभी से शरद उसके शीर्ष नेता रहे. लेकिन अब समय बदल गया है. 2018 में शरद यादव किस तरह  अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाते हैं यह देखने वाली चीज़ होगी.

2. कपिल मिश्रा (आम आदमी पार्टी, नई दिल्ली)

अगर साल के बागियों की बात हो रही है तो दिल्ली के पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा को किस तरह भूला जा सकता है. कपिल मिश्रा ने पार्टी छोड़ते ही सनसनी फैला दी थी, लगातार प्रेस कांफ्रेंस, खुलासे, धरना, अनशन. उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया पर जमकर हमले बोले.

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दरअसल, कपिल मिश्रा का बागी रुख तब सामने आया जिस समय अरविंद केजरीवाल ने उन्हें जलमंत्री के पद से हटा दिया था. जिसके  बाद कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल पर दिल्ली सरकार में मंत्री सत्येंद्र जैन पर 2 करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया था. आरोपों के बाद कपिल की पार्टी की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. कपिल मिश्रा यहां ही नहीं रुके थे, वह पार्टी के खिलाफ अनशन पर भी बैठे.

अनशन के दौरान भी कपिल मिश्रा ने दिल्ली सरकार पर सवालों को दागना जारी रखा. कपिल मिश्रा ने आम आदमी पार्टी में भ्रष्टाचार के चलन का आरोप लगाया. उन्होंने उस दौरान 5 लोगों की यात्रा की डिटेल्स मांगी थी. कपिल ने AAP के पांच नेताओं संजय सिंह,  आशीष खेतान, सत्येंद्र जैन, राघव चड्ढा और दुर्गेश पाठक की विदेश यात्राओं की सारी जानकारियां सार्वजनिक की जाए.

हालांकि, आम  आदमी पार्टी की ओर से कपिल मिश्रा के हर आरोप को झूठा कहा गया. इसके बाद भी कपिल मिश्रा ने पार्टी पर चंदे में गड़बड़ी, सरकार में जल घोटाले को लेकर प्रश्न उठाए.

3. यशवंत सिन्हा (भारतीय जनता पार्टी, पूर्व केंद्रीय मंत्री)

राजनीति में विरोध होना लाजिमी है, लेकिन जब ये विरोध कोई अपना करे तो काफी चुभता है. शायद कुछ ऐसा ही भारतीय जनता पार्टी में हुआ था. साल के बीच में जब देश की अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी, उस दौरान पार्टी के दिग्गज नेता और अटल सरकार में मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा के एक लेख ने पूरी सरकार को हिला कर रख दिया था. सिन्हा के लेख के जवाब देने मानो प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने कतार लगा दी.

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यशवंत सिन्हा के अर्थव्यवस्था के बारे में पूछे गए सवालों पर जहां सरकार और पार्टी बैकफुट पर थी. तो दूसरी तरफ विपक्ष इस पर ताली पीट रहा था. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात विधानसभा चुनावों में प्रचार के दौरान उनके सवालों का समर्थन किया था. सिन्हा के  सवालों के बाद जो जुबानी तीर चले उनका ध्यान सभी ने खींचा.

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सिन्हा के सवालों के जवाब में कहा था कि 80 साल की उम्र में लोग नौकरी ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं. जिससे सिन्हा तिलमिला उठे थे, उनके समर्थन करने वालों में पार्टी के दूसरे बड़े नेता शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी ने किया था.

प्रधानमंत्री मोदी ने भी सिन्हा के सवालों पर एक कार्यक्रम में महाभारत के शल्य का उदाहरण दिया था. हालांकि, पीएम मोदी ने किसी का नाम नहीं लिया था, लेकिन उस दौरान की परिस्थितियों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि निशाना किस ओर था. यशवंत ने  मोदी की क्रिया पर प्रतिक्रिया में कहा था कि वह भीष्म हूं, अर्थव्यवस्था का चीरहरण नहीं होने दूंगा.

आपको बता दें कि जब विकास दर (GDP) 5.2 फीसदी पर पहुंची तो विपक्ष के बाद यशवंत सिन्हा ने ही सरकार पर हमला बोला था. हालांकि, अभी पार्टी में यशवंत सिन्हा के पास कोई खास पद नहीं है. इसलिए आने वाले साल में इस पर निगाहें बनी रहेंगी कि सरकार और पार्टी के लिए यशवंत सिन्हा का किस प्रकार का रुख रहेगा. चूंकि वह पार्टी में अकेले नहीं हैं, शत्रुघ्न सिन्हा, वरुण गांधी और अरुण शौरी जैसे नेता भी उनकी जैसी भाषा बोलते आए हैं.  

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4. शहजाद पूनावाला (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)

साल का अंत होते-होते कांग्रेस में भी बगावत की बू आ ही गई थी. नवंबर महीन में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के दौरान जब राहुल गांधी का अध्यक्ष चुना जाना लगभग तय हो ही गया था कि युवा नेता शहजाद पूनावाला ने बागी सुर अलाप दिए. उन्होंने कहा कि ये कोई इलेक्शन नहीं बल्कि सिलेक्शन हो रहा है. जिसपर बवाल खड़ा हो गया था. हालांकि, कांग्रेस ने कहा था कि पूनावाला के बयान को ज्यादा तरजीह देने की जरूरत नहीं है.

लेकिन इस दौरान गुजरात में चुनाव प्रचार चरम पर था, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक रैली के दौरान शहजाद की पीठ थपथपा दी. उन्होंने रैली में कहा कि एक युवा नेता ने पार्टी अध्यक्ष चुनाव पर सवाल किया तो उसे चुप करा दिया गया. पीएम की तारीफ के बाद पूनावाला ने उन्हें शुक्रिया भी किया था.

यूं तो पूनावाला पार्टी में किसी बड़े पद पर नहीं थे, लेकिन वे अक्सर टीवी चैनलों पर पार्टी की ओर से डिबेट करते हुए दिखते थे. इसके अलावा उनका सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से रिश्ता भी है. रॉबर्ट वाड्रा की बहन की शादी शहजाद के भाई तहसीन पूनावाला से हुई  है. शहजाद के राहुल गांधी के खिलाफ बागी तेवरों के बाद तहसीन पूनावाला ने उनके साथ किसी भी तरह के रिश्ते को कायम रखने से इनकार कर दिया था.  

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वैसे पूनावाला के बागी तेवरों का कोई खास असर नहीं हुआ था. अंत में राहुल गांधी ही पार्टी के अध्यक्ष बने थे, पर उनकी आवाज उठाना राजनीति में कुछ दिनों के लिए चर्चा का विषय बना रहा.   

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