भारत ने 170 से अधिक देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र में ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते पर शुक्रवार को हस्ताक्षर किया. इस हस्ताक्षर को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. अब धरती के बढ़ते तापमान का मुकाबला करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के मोर्चे पर ये सभी देश मिलकर काम करेंगे.
बान की मून ने हस्ताक्षर को बताया ऐतिहासिक
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सभागार में एक उच्च स्तरीय समारोह में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए. समारोह में शासनाध्यक्षों, मंत्रियों, उद्योगपतियों और कलाकारों ने हिस्सा लिया और उसकी मेजबानी संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने की. इस मौके पर बान ने कहा कि यह इतिहास में एक अहम क्षण है. आज आप भविष्य से जुड़े एक संविदापत्र पर हस्ताक्षर कर रहे हैं. हम समय से होड़ कर रहे हैं. इससे पहले 1982 में 119 देशों ने समुद्री नियम संधि पर हस्ताक्षर किए थे. इस हस्ताक्षर के बाद देशों को अपने यहां से इस समझौते को मंजूरी दिलानी होगी. जब यूएनएफसीसी से जुड़े कम से कम 55 देश, जिनका वैश्विक उत्सर्जन कम से कम 55 फीसदी हो, इस समझौते को घरेलू स्तर पर मंजूरी प्रदान कर देंगे तब उसके 30 दिनों के अंदर यह प्रभाव में आ जाएगा.
'विकसित देश दूसरे देशों का रखें ख्याल'
भारत ने कहा है कि धनी देशों के दशकों के औद्योगिक विकास के बाद जलवायु परिवर्तन से लड़ने का बोझ गरीब देशों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता. भारत ने हर परिवार को बिजली की आपूर्ति की सरकार की योजना के तहत 2022 तक अपना नवीकरणीय विद्युत क्षमता चार गुणा बढ़ाकर 175 गिगावाट करने की योजना की घोषणा की है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसी हफ्ते एक कार्यक्रम में कहा था कि अपनी विकास जरूरतों के बावजूद भारत जलवायु की सुरक्षा के लिए पूरी तरह कटिबद्ध है.