सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2000 में लालकिला हमला मामले में लश्कर ए तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक की मौत के सजा के अमल पर आज रोक लगा दी. इस हमले में सेना के दो जवानों सहित तीन लोग मारे गए थे.
प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इसके साथ ही आरिफ के आवेदन पर केंद्र को नोटिस भी जारी किया. आरिफ ने अपने आवेदन में इस आधार पर अपनी रिहाई का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया था कि वह पहले ही 13 साल से ज्यादा समय जेल में गुजार चुका है और इतनी लंबी अवधि के बाद उसे फांसी नहीं दी जानी चाहिए. उसने कहा कि उसकी मौत की सजा पर अमल का मतलब उसे अपराध के लिए दो बार सजा देने के समान होगा, क्योंकि वह 13 साल से अधिक वक्त जेल में काट चुका है जो करीब उम्रकैद की सजा के बराबर है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि आरिफ न्याय प्रक्रिया में हुए लंबे विलंब और सरकार की ओर से सजा के कार्यान्वयन में हुई देरी की वजह से शारीरिक और मानसिक बीमारी से ग्रस्त है. शीर्ष कोर्ट ने 10 अगस्त 2011 को आरिफ की मौत की सजा बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी थी. आरिफ को सत्र न्यायालय ने मौत की सजा सुनाई थी, जिसकी पुष्टि दिल्ली हाईकोर्ट ने की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा बरकरार रखते हुए कहा था कि हमला भारत को आतंकित करने के लिए पाकिस्तान की ओर से किया गया एक दुस्साहसिक प्रयास और देश के खिलाफ युद्ध है. आरिफ ने 13 जुलाई 2007 के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी मौत की सजा को बरकरार रखा गया था, लेकिन अलग-अलग सजा पाने वाले छह अन्य को बरी कर दिया था. हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर आरिफ की अपील खारिज कर दी थी.