लोकसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने सामान्य जाति में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला किया है. इसके तहत सरकारी नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है. सरकार के इस फैसले और सुप्रीम कोर्ट के (इंदिरा साहनी फैसले, 1992) की 50 फ़ीसदी सीमा के बीच कहीं कोई टकराव नहीं है. क्योंकि 50 फीसदी की यह सीमा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के मामले में है. यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने में नहीं है.
राज्यों की ओर देखा जाए तो मौजूदा व्यवस्था में सबसे ज्यादा आरक्षण हरियाणा में दिया जाता है. यहां कुल 70 फीसदी आरक्षण है, जबकि तमिलनाडु में 68, महाराष्ट्र में 68 और झारखंड में 60 फीसदी आरक्षण है.
वहीं, राजस्थान में कुल 54 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 50 फ़ीसदी, बिहार में 50 फ़ीसदी, मध्य प्रदेश में भी कुल 50 फ़ीसदी और पश्चिम बंगाल में 35 फीसदी आरक्षण व्यवस्था है.
आंध्र प्रदेश में तो कुल 50 फ़ीसदी आरक्षण दिया जाता है. इसमें महिलाओं को 33.33 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण है. पूर्वोत्तर की बात की जाए तो अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम में अनुसूचित जनजाति के लिए 80 फीसदी आरक्षण है.
क्या है आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था....
गौरतलब है कि अभी 15 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति को दिया जाता है. जबकि अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण है. वहीं, 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग यानि कि ओबीसी को दिया जाता है. 50.5 प्रतिशत आरक्षण अनारक्षितों को दिया जाता है.
विधानसभा चुनाव में हुए नुकसान के बाद उठाया कदम....
राजनीतिक जानकारों की मानें तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार के बाद सवर्णों को आरक्षण दिए जाने का कदम सरकार ने लिया है. आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाके में जहां सवर्ण आंदोलन हुए वहां विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 34 सीटों में से 7 सीटें मिली थीं, जबकि 2013 के चुनाव में यहां बीजेपी ने 20 सीटें जीती थीं.
यही हाल बीजेपी का राजस्थान में भी रहा. राजपूत बहुत इलाकों में बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा. यहां 15 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत हार का अंतर नोट को मिले वोट से कम था. राज्य में बीजेपी-कांग्रेस ने 41 राजपूतों को टिकट दिया था जिनमें से 17 चुनाव जीतने में कामयाब रहे. छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 2.1 फीसदी वोट नोट को मिले. सबसे बड़ी बात तो यह कि बीजेपी के सभी सवर्ण प्रत्याशी चुनाव हार गए.