भारत में आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है, जिसके बिना राजनीति अधूरी है . इतिहास गवाह है. सभी राजनीतिक दलों ने आरक्षण के मुद्दे का इस्तेमाल किया है. और उन्हे वक्त-बेवक्त इसका फायदा भी मिला. भारत में मुस्लिम आरक्षण पर आए दिन बातें होती हैं. हर सियासी पार्टी उन्हें लुभाना चाहती है. देश की आबादी का 18 फीसदी हिस्सा जो हैं वे. तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं. कांग्रेस, बसपा, जेडीयू, जनता दल और सपा आदि मुस्लिम आरक्षण का राग अलापते रहे हैं.
अभी इस मुद्दे पर महाराष्ट्र गर्म है. महाराष्ट्र की पिछली कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले एक अध्यादेश जारी किया था. जिसमें नौकरी और शिक्षा में मराठियों को 16 फीसदी और मुसलमानों को 5 फीसदी आरक्षण दिए जाने का प्रावधान था. लेकिन नई बीजेपी सरकार ने मुस्लिम आरक्षण खत्म करने का ऐलान किया है. सियासत तो होनी ही थी. हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी पुणे आए थे. लगे हाथ सरकार को ऐसा न करने के लिए चेता गए. महाराष्ट्र विधानसभा में उनकी दो सीटें हैं. इस आगाज़ से उनके हौंसले बुलंद हैं. एएमआईएम नेता औवेसी की नजर दूसरे प्रदेशों पर भी है. वे प्रधानमंत्री मोदी से भी मुसलमानों को आरक्षण देने की अपील करते हैं.
मुस्लिम आरक्षण का कार्ड कई चुनावों में काफी कामयाब रहा है. 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सपा सुप्रीमो मुलयम सिंह यादव ने मुसलमानो से 18 फीसदी रिजर्वेशन देने का वादा किया. मुस्लिमों ने इस पर उन्हें एकतरफा वोट दिया. सपा ने सूबे में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. लेकिन सरकार बनने के बाद अब तक वो वादा पूरा नहीं हुआ है. यूपी विधानसभा में इस वक्त 64 मुस्लिम विधायक हैं. वो भी कुर्सी मिल जाने के बाद से खामोश हैं. ओवैसी इसी खामोशी का फायदा उठाने के लिए उत्तर प्रदेश में दस्तक दे रहे हैं. ताकि मुस्लिम वोटर उनकी तरफ मुड़ जाए.
कांग्रेस भी इस मामले में पीछे नहीं है. लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने मुसलमानों के आरक्षण का वादा अपने घोषणापत्र में किया. कहा गया कि यदि दोबारा सत्ता में आए तो पिछड़े मुसलमानों को ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का रास्ता निकालेंगे. सभी दलित अल्पसंख्यकों को अनुसूचित जाति का दर्जा देंगे. कांग्रेस ने इतनी मुस्लिम वोट बैंक पॉलिटिक्स कर ली है कि उन्हें इस बार भरोसे के काबिल ही नहीं समझा गया.
आंध्रप्रदेश सरकार ने पिछड़े मुसलमानों को चार फीसदी आरक्षण दिया था. उसके खिलाफ एक मामला उच्चतम न्यायालय में चल रहा है. हालांकि अदालत ने अपने एक अंतरिम आदेश में राज्य में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को आरक्षण देने वाले कानून को बरकरार रखा है.
चुनाव होते हैं तो कई पार्टियां अक्सर मुसलमानों से आरक्षण का वादा करती हैं. सत्ता में आने पर भूल जाती हैं. उसके पीछे कई तरह की मजबूरियों का रोना भी रोती है. आरक्षण को लेकर अब मुस्लिम समाज भी दो भागों में बंट गया है. एक तबका वो है जो धार्मिक (अल्पसंख्यक) आधार पर आरक्षण का पक्षधर है और दूसरा आर्थिक आधार पर आरक्षण का.
आरक्षण के नाम पर सारे सियासी दल मुसलमानों को ऐसे इस्तेमाल करते रहे हैं जैसे तेज पत्ता. जिसका इस्तेमाल बिरयानी या पुलाव बनाने के लिए जरूरी है. लेकिन उसे हमेशा खाने से पहले निकाल कर बाहर फेंक दिया जाता है. उसकी महत्ता खाने में खुशबू और स्वाद लाने के लिए की जाती है. उसे खाया नहीं जाता. पहले कांग्रेस, फिर सपा जैसी पार्टियों ने ये बिरयानी बनाई और अब एएमआईएम इसे बनाने के तैयारी में है.