कभी पूरी दुनिया में शिक्षा और ज्ञान के केंद्र के रूप में परचम लहराने वाला बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर इतिहास दोहराने को तैयार है. एक सितंबर से इस विश्वविद्यालय में क्लास शुरू होने वाली है.
पांचवीं सदी में एशिया के विभिन्न इलाकों के छात्र इस विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए आते थे. परंतु बाद में हमलावरों ने इसे नष्ट कर दिया. अब 21वीं सदी में एक बार फिर इस प्राचीन अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की गरिमा बहाल होने वाली है.
अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. गोपा सबरवाल ने बताया, 'गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेकर एक दर्शन की अवधारणा के साथ कक्षाएं शुरू हो रही हैं. इसकी सारी तैयारी कर ली गई हैं. यह संस्था नहीं, बल्कि नालंदा बनाने का मिशन है.'
विश्वविद्यालय प्रशासन के मुताबिक, पहली सितंबर से दो विषयों की पढ़ाई होने जा रही है. यहां कुल सात विषयों में पढ़ाई होगी. विश्वविद्यालय में जापान और भूटान के एक-एक छात्र समेत कुल 15 छात्रों ने एडमिशन कराया है. पहले सत्र में इतिहास और पर्यावरण विज्ञान की पढ़ाई शुरू की जानी है. दोनों विषयों के लिए 20-20 छात्रों का चयन किया जाना है. इन छात्रों को पढ़ाने के लिए 10 अध्यापकों (फैकल्टी) का चयन किया जा चुका है.
डॉ. गोपा के मुताबिक, अभी नामांकन की प्रक्रिया जारी रहेगी और हर हाल में एक सितंबर से पढ़ाई शुरू हो जाएगी. पढ़ाई शुरू कराने के लिए इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर के दो कमरे लिए गए हैं.
नालंदा विश्वविद्यालय के लिए प्रस्तावित 446 एकड़ के स्थायी परिसर में फिलहाल एक दीवार बन गई है, जबकि कक्षाएं, कार्यालयों और संकाय सदस्यों के लिए आवास के रूप में एक अस्थायी परिसर का निर्माण कराया जा रहा है. विश्वविद्यालय के भवन निर्माण का कार्य 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.
गौरतलब है कि प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर से करीब 10 किलोमीटर दूर राजगीर में बनाए जा रहे इस विश्वविद्यालय के निर्माण की योजना की घोषणा वर्ष 2006 में भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड ने संयुक्त रूप से किया था और बाद में यूरोपीय संघ के देशों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई.
विश्वविद्यालय के आसपास के करीब 200 गांवों के भी विकास की योजना बनाई गई है. एक अधिकारी ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक, इस विश्वविद्यालय के आधारभूत संरचना के लिए करीब 100 करोड़ डॉलर के खर्च होने की संभावना है.
प्रारंभ में पूर्व नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की परिकल्पना तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी. डॉ. कलाम उस समय जब जिले में एक रेल कोच कारखाने के शिलान्यास के मौके पर आए थे, तो उन्होंने तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार से नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने के बारे में चर्चा की थी.इसके बाद नीतीश ने इसकी स्थापना की पहल की थी.
गौरतलब है कि पांचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे. छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे. इतिहासकारों के मुताबिक, चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी. उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है.
प्राचीन काल में नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा शिक्षण केंद्र था.