लोकसभा में तेलंगाना बिल के समर्थन पर बीजेपी में गंभीर आंतरिक मतभेद उभर आए हैं. मोदी और सुषमा खेमे के नेताओं में इस मुद्दे पर मतभेद हो गया है. सुषमा स्वराज लोकसभा में विपक्ष की नेता हैं.
मोदी खेमे का मानना है कि तेलंगाना बिल का समर्थन करके पार्टी ने सीमान्ध्र और तेलंगाना में किसी भी तरह के चुनावी फायदे से हाथ धो लिया है. समीकरण कुछ इस तरह से है.
अगर आंध्र प्रदेश का विभाजन नहीं होगा तो टीआरएस, जगन रेड्डी और चन्द्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी बीजेपी का समर्थन चुनाव में करती. लेकिन राज्य के बंटवारे के बाद टीआरएस कांग्रेस का समर्थन करेंगे. जगन बीजेपी का साथ नहीं देंगे क्योंकि वह आंध्र प्रदेश के बंटवारे के खिलाफ हैं.
अब बीजेपी कांग्रेस के गेम प्लान को बिगाड़ने के प्रयास में है. उसने इस दिशा में पहल करते हुए संवैधानिक संशोधनों के लिए दबाव डाला है. उसने तर्क दिया है कि एक नए राज्यपाल को शक्तियां देना संवैधानिक मामला है और इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा.
अगर बीजेपी अपनी यह मांग मनवाने में सफल हो जाती है तो बिल को लोकसभा में फिर से भेजा जाएगा जहां इसे पास कराने के लिए यूपीए को न केवल दो तिहाई बहुमत चाहिए होगा बल्कि सदन को सुचारू रूप से चलाना भी होगा. दोनों ही बातें संभव नहीं दिखाई देती हैं.
सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस ने भी इससे निबटने की तैयारी कर ली है. वह भी इस मामले को संविधान में संशोधन से जोड़ने के किसी भी प्रयास को विफल कर देने की तैयारी कर चुकी है. इसके लिए पार्टी तृणमूल, वाम दलों और जेडी(यू) की मदद लेने की व्यवस्था कर रही है. उनके समर्थन से वह बिल पास करवा देना चाहती है.
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