दिल्ली से सटे हरियाणा के एक गांव में वाड्रा ने जिस शख्स से जमीन खरीदी थी, उसे ही बड़ी कीमत पर वो जमीन बेच दी थी. पैसों के इस लेन-देन का सवाल संसद तक सुलगने लगा है. हरियाणा में हमारे संवाददाता आशीष महर्षि ने पड़ताल की.
दिल्ली से महज 30 किलोमीटर दूर अमीपुर गांव की जमीन को रॉबर्ट वाड्रा ने बेहद सस्ते दाम पर पहले खरीदा और फिर फिर ऊंची कीमत पर बेच दिया. यहीं पर रॉबर्ट वाड्रा ने एक ही शख्स हरबंस लाल पाहवा से चार-चार जमीन सौदे किये. हरियाणा में फरीदाबाद जिले के अमीपुर गांव में वाड्रा ने कुल 46 एकड़ जमीन खरीदी और फिर उसे पाहवा को ही ऊंचे दाम पर बेच दिया. इन सभी सौदों में हरियाणा सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट, 1972 का सीधा उल्लंघन हुआ.
आजतक की पड़ताल से साबित हुआ कि कैसे वैध जमीन सौदों के नाम पर पैसों का लेन-देन हुआ. 8 सितंबर 2005 को रॉबर्ट वाड्रा ने फरीदाबाद जिले के अमीपुर गांव के हरबंस लाल पाहवा से 12 एकड़ जमीन खरीदी. इसके लिए 32 लाख रुपये से कुछ ज्यादा कीमत चुकाई गई. 14 अप्रैल 2006 को रॉबर्ट वाड्रा ने पाहवा से ही 30 लाख रुपये में और दस एकड़ जमीन खरीदी. और तीसरी डील, उसी साल 13 जनवरी को वाड्रा ने हरबंस लाल पाहवा से ही अमीपुर गांव में 19 एकड़ और जमीन खरीदी. इस बार 54 लाख रुपये पर. और 28 अप्रैल 2006 को वाड्रा की पत्नी प्रियंका गांधी ने अमीपुर गांव में ही पाहवा से 5 एकड़ जमीन का 15 लाख रुपये में सौदा किया.
जमीन का ये सौदा कानून का उल्लंघन है, क्योंकि वाड्रा दंपती ने जो 46 एकड़ जमीन खरीदी है, वो हरियाणा सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट 1972 के तहत अधिकतम जमीन रखने की क्षमता से कहीं बहुत ज्यादा है. हरियाणा में एक आदमी या एक परिवार को ज्यादा से ज्यादा 26.9 एकड़ खेती लायक जमीन रखने की इजाजत है, जिस जमीन पर कम से कम एक फसल पैदा होती हो. या फिर इतनी ही जमीन रखने की इजाजत तीन बच्चों वाले परिवार को है.
ये ना सिर्फ लैंड सीलिंग एक्ट का उल्लंघन है, बल्कि पैसों का ऐसा अजीब लेन-देन का मामला है, जिसमें वाड्रा ने उसी शख्स को जमीन बेच दी, जिससे खरीदी थी. वो 46 एकड़ जमीन लैंड डीलर हरबंस लाल पाहवा को दोहरी कीमत पर और तीन किस्तों में बेचा गया. इस तरह पांच साल से भी कम समय में बेचने वाला खरीदार बन गया और खरीदने वाला विक्रेता.
आज तक के पास इस बात के दस्तावेज हैं कि किस तरह हरियाणा के अमीपुर गांव में राबर्ट वाड्रा ने 46 एकड़ जमीन खरीदी, जिसमें लैंड सीलिंग एक्ट का उल्लंघन हुआ. राबर्ट वाड्रा ने उसी हरबंस पाहवा से जमीन खरीदी, जिसकी कंपनी ने जमीन के लिए लोन दिया. तीन साल बाद वाड्रा ने उसी जमीन को दोगुनी कीमत पर पाहवा को बेच दिया.
आजतक ने इस मसले पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व डायरेक्टर विपिन मलिक से बात की, जो बड़े-बडे टैक्स मामलों को देखते रहे हैं. मलिक का कहना है कि इन जमीन सौदों में जो कुछ दिखता है, उससे मामला कहीं कुछ ज्यादा है.
सवाल ये है कि पाहवा और रॉबर्ट वाड्रा के बीच क्या रिश्ता है, जिससे कि दोनों ने एक दूसरे से जमीन खरीदने और फिर बेचने का अजीबो-गरीब काम किया. ये पूरी पहेली तब खुलती गयी, जब आजतक की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम ने वाड्रा के कारोबार से जुड़े सारे तार खंगाल डाले. वाड्रा के बैलेंस शीट्स को देखते हुए हमारी नजर एक करोड़ 55 लाख रुपये पर अटक गयी और एक बार फिर यहां हरबंस लाल पाहवा का नाम था. दस्तावेज बताते हैं कि पाहवा की कंपनी- कार्निवल इंटरकॉन्टिनेंटल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड ने वाड्रा की कंपनी 'स्काइलाइट हॉस्पिटेलिटी' को एक करोड़ 55 लाख़ रुपये का कर्ज दिया. वाड्रा की कंपनी रियल अर्थ में 18 फरवरी 2008 से 23 मार्च 2009 तक पाहवा डायरेक्टर रहे.
लेकिन वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी की माने तो इस लैंड डील में वाड्रा को संदेह का लाभ भी मिल सकता है. आजतक ने हरबंस लाल पाहवा से गुड़गांव स्थित उनके घर में मिलने की कोशिश की. टीम ने वाड्रा के साथ उनकी डीलिंग्स का ब्यौरा हासिल करना चाहा.
आजतक के पास राबर्ट वाड्रा और हरबंस लाल पाहवा के बीच कारोबारी रिश्तों के भी दस्तावेजी सबूत हैं. वाड्रा की कंपनी के बैलेंस शीट साफ दिखाता है कि वाड्रा ने एक करोड़ 55 लाख का लोन हरबंस लाल पाहवा से लिया. वही पाहवा जो वाड्रा की कंपनी रियल अर्थ में एक साल से भी ज्यादा समय तक डायरेक्टर रहे. जिन विशेषज्ञों से हमने बात की, उनके मुताबिक पैसे के लेन देन के तरीकों को लेकर तमाम सवाल पैदा होते हैं जिसकी जांच करायी जानी चाहिए.