कैग में महानिदेशक (ऑडिट) रह चुके आर पी सिंह के जेपीसी के समक्ष बयान से काफी ‘ड्रामा’ हो गया. जेपीसी के कुछ सदस्यों ने सिंह के दावे की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया.
संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष पेश होते हुए पूर्व महानिदेशक, ऑडिट (डाक एवं दूरसंचार) सिंह ने कहा कि अनुमानित नुकसान लेखा संहिता का हिस्सा नहीं है और इस बात को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया जाता है.
सिंह ने ही 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान के आंकड़े पर सवाल उठाया था.
सिंह दूसरी बार जेपीसी के समक्ष पेश हुए हैं. इससे पहले वह 14 नवंबर 2011 को समिति के समक्ष पेश हो चुके हैं. भाजपा सदस्यों की मांग पर सिंह के जेपीसी के समक्ष दोबारा पेश होने के लिए कहा गया था.
भाजपा के यशवंत सिन्हा और भाकपा के गुरूदास दासगुप्ता ने पूछा कि रिपोर्ट तैयार करने में सिंह अपनी भूमिका से कैसे इनकार कर सकते हैं जबकि फील्ड स्टाफ को सिंह ने ही नियम और दिशानिर्देश जारी किये थे. समझा जाता है कि सिंह ने एक सर्कुलर पढ़ा, जिसमें कहा गया था कि उन्हें मुख्यालय को जानकारी मुहैया करानी है और मुख्यालय आंकड़े एकत्र करने के बाद रिपोर्ट तैयार करेगा.
सिंह ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट के मसौदे के एक पैराग्राफ से अनुमानित नुकसान को हटा दिया था क्योंकि वह तार्किक नहीं था लेकिन मुख्यालय ने अंतिम रिपोर्ट में बाद में इसे शामिल कर लिया.
कैग (भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक) के पूर्व अधिकारी ने जेपीसी को बताया कि उनसे एक शाम रिपोर्ट पर दस्तखत करने को कहा गया. फिर उनसे कहा गया कि वह अगली सुबह दस बजे तक इस रिपोर्ट को वित्त मंत्रालय और दूरसंचार मंत्रालय भेज दें.
सिन्हा द्वारा यह पूछने पर कि उन्होंने रिपोर्ट पर दस्तखत करने से इनकार क्यों नहीं किया, सिंह ने कहा कि उनके पास अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का पालन करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था.
समझा जाता है कि एक मौके पर सिन्हा आपा खो बैठे और सिंह को गैर भरोसेमंद कह दिया, जिस पर जेपीसी अध्यक्ष पीसी चाको ने हस्तक्षेप कर मामला शांत कराया.