राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि संघ को किसी भी विचारधारा में नहीं बांधा जा सकता है. संघ किसी भी विचार में विश्वास नहीं करता है और उसे किसी भी पुस्तक से दर्शाया जा सकता है. जिसमें संघ के दूसरे प्रमुख एम एस गोलवलकर की किताब भी शामिल है. उन्होंने कहा, 'संघ का मुख्य मूल्य यह है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता है.'
मोहन भागवत भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के प्रमुख सुनील अम्बेकर की नई किताब के विमोचन के मौके पर यह बात कही.
संघ को किसी विचारधारा में नहीं बांध सकते
मोहन भागवत ने कहा, 'संघ की विचारधारा के रूप में कुछ भी कहना या वर्णन करना गलत है. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने कभी नहीं कहा कि वे संघ को पूरी तरह से समझ सकते हैं. इतने लंबे समय तक सरसंघचालक होने के बावजूद गुरु जी ने कहा कि मैं शायद संघ को समझने लगा हूं.'
संघ प्रमुख ने पुस्तक के विमोचन के दौरान एक सांस में हनुमान, शिवाजी और आरएसएस संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का नाम लिया. भागवत ने अपने संबोधन में आरएसएस को उदारवादी चेहरे के रूप में पेश करते हुए संघ के भीतर असंतोष पनपने के महत्व पर जोर दिया.
बीजेपी से मतभेद पर क्या बोले
एबीवीपी के प्रमुख सुनील अम्बेकर की नई किताब के विमोचन के मौके पर उन्होंने कहा, "हमारे यहां मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं." उन्होंने कहा कि ऐसा जरूरी नहीं है कि आरएसएस से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति का किसी खास मुद्दे पर संघ के समान ही विचार हो. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मोहन भागवत ने यहां तक कहा कि बीजेपी के साथ मतभेद होना आम बात है. लेकिन आरएसएस बहस में नहीं, बल्कि सहमति तक पहुंचने में विश्वास करता है.
किताबों पर प्रतिबंध में भरोसा नहीं
मोहन भागवत ने कहा, "आरएसएस पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने में विश्वास नहीं करता, कोई भी हमारे बारे में बोल सकता है. हम भले ही दृष्टिकोण से सहमत हो या ना हों, आरएसएस प्रतिबंध के लिए कभी नहीं कहता." उन्होंने आरएसएस के वरिष्ठ कार्यकर्ता और किताब के लेखक अम्बेकर की तारीफ करते हुए कहा कि यह पुस्तक संघ के बारे में दुनिया को बताने का एक ईमानदार प्रयास है.