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370 पर शाबाशी, लिंचिंग पर झाड़ा पल्ला, मोहन भागवत के संबोधन की 5 बड़ी बातें

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी के अवसर पर कहा कि मोदी सरकार ने कई कड़े फैसले लेकर बताया कि उन्हें देश की जनभावना की समझ है. जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने, भारतीय सेना की तैयारी और सुरक्षा नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार की जमकर तारीफ की है.

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (फोटो-RSS)
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (फोटो-RSS)

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  • आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी पर संबोधित किया
  • भागवत ने 370 पर मोदी की तारीफ करते हुए कड़े फैसले नेता बताया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी के अवसर पर जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने, भारतीय सेना की तैयारी और सुरक्षा नीति के मोर्चे पर मोदी सरकार की जमकर तारीफ की है. भागवत ने कहा कि मोदी सरकार ने कई कड़े फैसले लेकर बताया कि उन्हें देश की जनभावना की समझ है.उन्होंने साफ कर दिया है कि देश में हो रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं से संघ से कोई नाता नहीं है.

1.धारा 370 हटाना जनभावना का सम्मान

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के लिए मोदी सरकार को एक साहसी फैसला लेने वाली सरकार बताया. उन्होंने कहा कि जन अपेक्षाओं को प्रत्यक्ष तौर पर सरकार ने साकार करके दिखाया है. देशहित में उनकी इच्छाएं पूर्ण करने का साहस दोबारा चुने हुए शासन में किया, जनभावनाओं का सम्मान करते हुए धारा 370 को अप्रभावी बनाने के सरकार के काम से यह बात सिद्ध हुई है.

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2. मॉबलिंचिंग से RSS का संबंध नहीं

मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि देश में ऐसी कुछ घटनाएं देखने को मिलती है और हर तरफ से देखने को मिलती हैं. कई बार तो ऐसा भी होता है कि घटना होती नहीं है लेकिन उसे बनाने की कोशिश की जाती है. संघ का नाम लिंचिंग की घटनाओं से जोड़ा गया, जबकि संघ के स्वयंसेवकों का ऐसी घटनाओं से कोई संबंध नहीं होता. लिंचिंग जैसा शब्द भारत का है ही नहीं क्योंकि यहां ऐसा कुछ होता ही नहीं था.

उन्होंने कहा कि कानून और व्यवस्था की सीमा का उल्लंघन कर हिंसा की प्रवृत्ति समाज में परस्पर संबंधों को नष्ट कर अपना प्रताप दिखाती है. यह प्रवृत्ति हमारे देश की परंपरा नहीं है, न ही हमारे संविधान में यह फिट बैठती है. कितना भी मतभेद हो कानून और संविधान की मर्यादा के अंदर ही न्याय व्यवस्था में चलना पड़ेगा. हमारे देश की परंपरा उदारता की है, मिलकर रहने की है।

3. उग्रवादी हिंसा में कमी और सेना की तैयारी

भागवत ने कहा कि हमारी स्थल सीमा और जल सीमाओं पर सुरक्षा सतर्कता पहले से अच्छी है. केवल स्थल सीमा पर रक्षक व चौकियों की संख्या और जल सीमा पर(द्वीपों वाले टापुओं की) निगरानी अधिक बढ़ानी पड़ेगी. देश के अंदर भी उग्रवादी हिंसा में कमी आई है और उग्रवादियों के आत्मसमर्पण की संख्या भी बढ़ी है.

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उन्होंने कहा कि सौभाग्य से हमारे देश के सुरक्षा सामर्थ्य की स्थिति, हमारे सेना की तैयारी, हमारे शासन की सुरक्षा नीति तथा हमारे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कुशलता की स्थिति इस प्रकार की बनी है कि इस मामले में हम लोग सजग और आश्वस्त हैं.

4. दुनिया में बढ़ा भारत का दबदबा

भागवत ने कहा कि बीते कुछ सालों में भारत की सोच की दिशा में एक परिवर्तन आया है. भारत की तरक्की न चाहने वाले व्यक्ति दुनिया में भी है और देश के भीतर भी हैं. भारत को बढ़ता हुआ देखना जिनके स्वार्थों के लिए भय पैदा करता है, ऐसी शक्तियां भी भारत को दृढ़ता व शक्ति से संपन्न होने नहीं देना चाहती. हालांकि भारत का दुनिया भर में दबदबा बढ़ा है.

5.सामाजिक समरसता पर जोर

मोहन भागवत ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में सद्भावना, संवाद और सहयोग बढ़ाने की कोशिशों के लिए प्रयासरत होना चाहिए. समाज के सभी वर्गों का सद्भाव, समरसता व सहयोग और कानून संविधान की मर्यादा में ही अपने मतों की अभिव्यक्ति यह आज की स्थिति में नितांत आवश्यक बात है. साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ बातों का निर्णय न्यायालय से ही होना पड़ता है, निर्णय कुछ भी हो आपस के सद्भाव को किसी भी बात से ठेस ना पहुंचे ऐसी वाणी और कृति सभी जिम्मेदार नागरिकों की होनी चाहिए. यह जिम्मेदारी किसी एक समूह की नहीं है बल्कि यह सभी की जिम्मेदारी है और उसका सभी को पालन करना चाहिए.

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