राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक डॉ. मोहन मधुकर भागवत ने हिंदुत्व को हिंदुस्तान की एकता और यहां रहने वाले सभी लोगों की पहचान बताते हुए कहा कि हिंदुस्तान इस देश में रहने वाले हर व्यक्ति की मातृभूमि है और संघ का लक्ष्य हिंदुत्व के आधार पर समाज को संगठित कर एक ताकतवर राष्ट्र का निर्माण करना है.
गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर आरएसएस की पटना महानगर इकाई द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि गुरू नानक देव जी के समय से इस संस्कृति को हमारे देश का सामान्य नागरिक हिंदू संस्कृति के नाते जानता है और सारी दुनिया उनको हिंदू नाम से पहचानती है ऐसे में हिंदुत्व अपनी देश की एकता का आधार है. उन्होंने कहा कि हमारा देश विविधता में एकता की शिक्षा देने वाला देश है और पीढी दर पीढी चलती आयी संस्कृति इस एकता का आधार है.
भागवत ने कहा कि हमारे समाज में इतनी भाषाएं और विविधता है, कई प्रांत, रहन-सहन, खान-पान और रीति-रिवाज हैं कि बाहर से आने वालों को लगता है कि यहां सैकडों देश एक हो गए हैं. उन्होंने कहा कि बाकी सारी दुनिया की सोच है कि एकता तभी हो सकती है जब सबलोग एक जैसे होते हैं इसलिए वे सारी दुनिया को अपने ही सांचे में ढालने का प्रयास करते हैं.
संघ प्रमुख ने कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने प्राचीन समय से ही विविधताओं में एकता को देखा और यही जीवन का सर्वोच्च, शाश्वत और सुखद प्राप्ति का एकमात्र उपाय है. उन्होंने कहा कि जब इस जीवन में प्रतिष्ठा और मरने के बाद शांति इस मातृभूमि के अलावा और कहीं नहीं मिलती तो झगडा क्यों करना, यहां सबको जीना है.
भागवत ने कहा कि सबकी माता भारत माता है और कोई बाहर से नहीं आया क्योंकि स्वयं को हिंदू न कहने वाले लोगों में यहूदी और पारसी को छोड दें किसी के पूर्वज बाहर से नहीं हैं और सभी के पूर्वज समान हैं. उनका डीएनए एक है और हिंदू पूर्वज थे. भागवत ने कहा कि एक मातृभूमि के पुत्र और समान पूर्वजों के वंशज और हिंदू संस्कृति से प्रभावित हम सभी हिंदू हैं.
भागवत ने कहा कि नेता या राजनीतिक दल तभी सहायक सिद्ध हो सकते हैं जब समाज की विचाराधारा अच्छी हो. उन्होंने कहा कि अच्छे नेता, सरकार, पार्टी और अच्छी नीति तब सहायक साबित होती है जब समाज अच्छा होता है.
संघ प्रमुख ने कहा कि आजादी के बाद देश की जो प्रगति हुई उसका श्रेय कोई एक व्यक्ति या समूह नहीं ले सकता बल्कि यह संपूर्ण समाज के कृतित्व का फल है. उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान खास तौर से एक वर्ष से देश में ऐसे विचार प्रकट होने लगे हैं कि हम महाशक्ति के रूप में खडे नहीं हो पाएंगे और इसको लेकर जनमानस निराश होता चला जा रहा है.