राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की वे रीढ़ हैं. आरएसएस की सोच-समझ, उसकी हिंदुत्ववादी विचारधारा के प्रति समर्पित ये करीब 2,500 की संख्या में देश भर में फैले हुए हैं. इनमें अधिकांश ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं, अनुशासित सांस्कृतिक राष्ट्रवादी होते हैं और अपना पूरा जीवन समाज सेवा और आरएसएस के मंत्र के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर देते हैं. ये राजनीति और राजनैतिक सत्ता से भी एकदम दूर बने रहते हैं और उसमें तभी सहभागी बनते हैं, जब संगठन के काम के लिए उन्हें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जैसे सहयोगी संगठनों में भेजा जाता है.
ये चुपचाप काम करने वाले, खांटी आरएसएस प्रचारक विचारधारा के प्रति पूरी निष्ठा के साथ संगठन और जन संपर्क की कला में माहिर होते हैं और बीजेपी में नियुक्त होने पर संगठन मंत्री (महासचिव, संगठन) का पदभार संभालते हैं. इनमें कुछ ही ने अपने रास्ते बदले. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे ही लोगों में हैं. मोदी ने संगठन मंत्री रहते हुए राजनीति में जाने की इच्छा जाहिर की और एक विरले अपवाद की तरह उन्हें यह छूट मिल भी गई.
आरएसएस ने दशकों पहले पहली दफा भारतीय जनसंघ की मदद के लिए प्रचारक उधार दिए थे. दीनदयाल उपाध्याय सबसे चर्चित प्रचारकों में थे, जिन्हें जनसंघ में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मदद के लिए भेजा गया था. तभी से पार्टी में संगठन के काम के लिए आरएसएस प्रचारक नियुक्त करने का सिलसिला बीजेपी में भी चला आ रहा है. लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद उनकी मांग बढ़ गई है. जाहिर है,राजनैतिक संस्कृति और आरएसएस की कार्यशैली एक हो गई है. सरकार और संगठन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों की बढ़ती भूमिका मोदी के नेतृत्व में आए पीढ़ीगत बदलाव का ही प्रतीक है. आइए जानते हैं इन नए चेहरों कोः
ओपी माथुर
सुनहरा अतीत: आरएसएस के पूर्व प्रचारक, राजस्थान में बीजेपी के संगठन मंत्री रहे.
चुनावी महारथी: महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत के बाद उत्तर प्रदेश में पार्टी प्रबंधन का जिम्मा मिला.
लक्ष्य पर नजर: उनका लक्ष्य है 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को विजय दिलाना.
धर्मेंद्र प्रधान
ऊंची छलांग: ओडिसा में एबीवीपी के पूर्व सह संगठन मंत्री से बीजेपी महासचिव बने.
चुनिंदा शागिर्द: उन्हें केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री बनाने के लिए सही शख्स माना गया.
प्रधानमंत्री का सपना: देश की ऊर्जा सुरक्षा और प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया अभियान के तहत आर्थिक गतिविधियों को प्रशस्त करने के लिए सरकारी तेल कंपनियों का उपयोग जरूरी और इसे अंजाम देने का काम प्रधान के भरोसेमंद कंधों पर.
राम माधव
मध्यस्थ: पर्दे के पीछे सक्रिय रहे, संघ परिवार में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी को लेकर उभरीं गलतफहमियां दूर कीं.
कद और पद: जुलाई में बीजेपी में शामिल किए गए और पार्टी महासचिव बनाए गए.
दूरियां मिटाने का जिम्मा: सरकार और संघ परिवार के बीच तालमेल बनाए रखने में उनकी भूमिका बेहद अहम है. संघ के आनुषंगिक संगठनों में आर्थिक सुधारों को लेकर तमाम तरह की आशंकाओं को दूर करना.
जेपी नड्डा
अध्यक्ष की पसंद: एबीवीपी के पूर्व पूर्णकालिक कार्यकर्ता, तीन बीजेपी अध्यक्षों-नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और अमित शाह-के मातहत पार्टी महासचिव.
सही पसंद: नरेंद्र मोदी ने उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनाने के लिए चुना.
स्वास्थ्य का भविष्य: सबके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के नरेंद्र मोदी के चुनावी वादे को पूरा करने की महती चुनौती. स्वास्थ्य सुधारों के अगले चरण को सख्ती से आगे बढ़ाने के लिए नरम रुख वाले हर्षवर्धन की जगह लाए गए.
सुनील बंसल
यूनियन नेता: आरएसएस के प्रचारक, इस वर्ष के शुरू तक एबीवीपी में पूरी तरह सक्रिय रहे.
चुनावी महारथी: उत्तर प्रदेश में पार्टी को जीत दिलाने के लिए बीजेपी के संगठन महासचिव नियुक्त किए गए.
वोट पर पकड़: उनकी सबसे बड़ी चुनौती 2017 विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में बीजेपी का संगठन फिर खड़ा करने की है. लोकसभा चुनावों में अमित शाह के साथ मिलकर काम करने से उन्हें अगली चुनौती से निबटने का जिम्मा भी सौंपा गया.
मनोहर लाल खट्टर
पुराना तजुर्बा: आरएसएस के प्रचारक, हरियाणा में बीजेपी के संगठन मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.
नई भूमिका: राज्य विधानसभा चुनाव में पार्टी की सफलता के बाद हरियाणा में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री.
चुनौती: सुशासन से पूरे राज्य में बीजेपी की पैठ बढ़ाना और पार्टी को राज्य की राजनीति में पूरी तरह से स्थापित करना.