संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर और पॉन्चजन्य ने नागपुर में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाषण को आरएसएस की विचारधारा के अनुरूप बताया है. दोनों पत्रिकाओं ने इस बात पर जोर दिया है कि प्रणब मुखर्जी और आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के भाषणों में कई तरह की समानताएं हैं.
प्रणब मुखर्जी ने पिछले हफ्ते संघ के कार्यक्रम में दिए अपने भाषण में देश की बहुलतावादी संस्कृति पर जोर दिया था. संघ विचारधारा की पत्रिकाओं का कहना है, 'यही बात तो पिछले कई वर्षों में आरएसएस प्रचारित करता रहा रहा है और हिंदू धर्म भी इसी का प्रतीक है.'
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, आरएसएस के हिंदी मुखपत्र पॉन्चजन्य और अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने 7 जून के प्रणब के कार्यक्रम को अपने हाल के संस्करण में कवर किया है.ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर द्वारा लिखे संपादकीय में कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी के दौरे का असल संदेश 'राजनीतिक से ज्यादा राष्ट्रीय है.'
संपादकीय में कहा गया है, 'डॉ. प्रणब मुखर्जी जैसे अनुभवी और विद्वान हस्ती की मौजूदगी और प्रोत्साहन से भारत के इस 'स्वाभाविक आत्म' की सामाजिक स्वीकार्यता को और बल मिला है.'
पॉन्चजन्य ने प्रणब मुखर्जी के दौरे को 'उस बहुलता की जीत बताया है जिसे हिंदुत्व बढ़ावा देता है.' रतन शारदा द्वारा लिखे गए लेख में कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी ने उसी तरह की बहुलता पर जोर दिया है कि जिसे हिंदुत्व बढ़ावा देता है, जबकि इस्लाम और ईसाइयत यह मानते हैं कि 'उनका सच ही एकमात्र सच है.'
पत्रिका की कवर स्टोरी में कहा गया है, 'संघ उनसे यह उम्मीद नहीं करता कि वे उसकी ही भाषा बोलेंगे, लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा उसकी संघ हमेशा वकालत करता रहा है. यह सब उन्होंने एक कांग्रेसी होेने की सीमा के भीतर बोला है.'
गौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गत 7 जून को नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लिया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर अपने विचार रखे थे.
RSS के मंच से प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'मैं यहां पर राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझाने आया हूं. भारत दुनिया का पहला राज्य है और इसके संविधान में आस्था ही असली देशभक्ति है. उन्होंने कहा कि विविधतता हमारी सबसे बड़ी ताकत है. हम विविधता में एकता को देखते हैं. हमारी सबकी एक ही पहचान 'भारतीयता' है.'