scorecardresearch
 

हेडगेवार के कुलदेवता पर प्रणब ने जूते पहन पुष्प चढ़ाए, भागवत बोले, कोई बात नहीं

प्रणब मुखर्जी जब संघ के हेडगेवार के निवास स्थान पर गए तो एक बड़ा दिलचस्प क़िस्सा हुआ.

Advertisement
X
नागपुर में प्रणब मुखर्जी
नागपुर में प्रणब मुखर्जी

Advertisement

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह के लिए नागपुर आये तो RSS के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के निवास स्थान पर भी गए. इसी स्थान से हेडगेवार ने अपने 17 सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन 1925 में विजयदशमी (दशहरे) के दिन की थी.

प्रणब मुखर्जी जब संघ के हेडगेवार के निवास स्थान पर गए तो एक बड़ा दिलचस्प क़िस्सा हुआ. जब प्रणब मुखर्जी को हेडगेवार के निवास स्थान पर हेडगेवार के कुलदेवता को पुष्प अर्पित करना था, तो उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत से कहा कि उन्होंने पैरों में जूते पहने हुए हैं. इस पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उनसे कहा कि भावना अच्छी होनी चाहिए, आप आइए पुष्प अर्पित कीजिए, कोई बात नहीं.

उसके बाद प्रणब मुखर्जी ने डॉक्टर हेडगेवार के कुलदेवता को पुष्प अर्पित किया. उसके बाद प्रणब मुखर्जी संकरी सीढ़ियां चढ़कर दूसरी मंज़िल पर उस जगह पर भी गए जहां पर हेडगेवार स्वयंसेवकों के साथ गुप्त  बैठक किया करते थे.

Advertisement

वहीं स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की ताकत उसकी सहिष्णुता में निहित है और देश में विविधता की पूजा की जाती है. लिहाजा देश में यदि किसी धर्म विशेष, प्रांत विशेष, नफरत और असहिष्णुता के सहारे राष्ट्रवाद को परिभाषित करने की कोशिश की जाएगी तो इससे हमारी राष्ट्रीय छवि धूमिल हो जाएगी.

प्रणब मुखर्जी ने कहा कि वह इस मंच से राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर अपना मत रखने के लिए बुलाए गए हैं. इन तीनों शब्दों को अलग-अलग देखना संभव नहीं है. इन शब्दों के समझने के लिए पहले हमें शब्दकोष की परिभाषा देखने की जरूरत है.

प्रणब ने कहा कि भारत एक मुक्त समाज था और पूर्व इतिहास में सिल्क रूट से सीधे जुड़ा था. इसके चलते दुनियाभर से तरह-तरह के लोगों का यहां आना हुआ. वहीं भारत से बौद्ध धर्म का विस्तार पूरी दुनिया में हुआ. चीन समेत दुनिया के अन्य कोनों से जो यात्री भारत आए उन्होंने इस बात को स्पष्ट तौर पर लिखा कि भारत में प्रशासन सुचारू है और बेहद मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर रहा है. नालंदा जैसे विश्वविद्यालय छठी सदी से लेकर 1800 वर्षों तक अपनी साख के साथ मौजूद रहे. चाणक्य का अर्थशास्त्र भी इसी दौर में लिखा गया.

Advertisement
Advertisement