जब-जब कांग्रेस वैचारिक तौर पर संकट में आई, तब-तब प्रणब दा के ड्राफ्ट ने उसे बचाया. पिछले कई दशकों से प्रणब मुखर्जी उर्फ़ प्रणब दा ने कांग्रेस का राजनीतिक प्रस्ताव पास कराया, जिसमें सीधा हमला RSS पर रहा. अब वही प्रणब दा RSS के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जाने गए तो चोट और दर्द कांग्रेसियों को होना ही था.
इसीलिए कांग्रेस का एक तबका 2007 में सोनिया गांधी को याद दिलाता रहा कि आरएसएस के मुखिया रहे गुरु गोलवरकर की 100वीं जयंती पर 2007 में उन्होंने निमंत्रण के बावजूद जाने से इंकार कर दिया था.
प्रणब मुखर्जी ने जो बोला, उस पर कांग्रेस ने आरएसएस पर हमला बोल दिया. लेकिन कांग्रेस के भीतर नेताओं की लंबी लाइन है जो प्रणब के वहां जाने पर हामी भरने के ही खिलाफ थे. लेकिन प्रणब दा के कद को देखते हुए पार्टी ने राहुल-सोनिया के कहने पर दादा के भाषण तक आधिकारिक तौर पर ख़ामोशी बरती. हालांकि आनंद शर्मा, अहमद पटेल, अर्जुन मोढवाडिया जैसे नेता व्यक्तिगत तौर पर दादा के जाने पर सवाल खड़ा करते रहे.
आखिर में दादा ने भाषण भी दे दिया, बस यही कांग्रेस ने लपक लिया. दादा ने किसी के खिलाफ सीधे कुछ नहीं बोला, लेकिन कांग्रेस ने उसको आरएसएस से जोड़कर समझाया क़ि दादा ने उनके सच का सामना करा दिया.
कुल मिलाकर दादा ने जो भी किया लेकिन, बेटी शर्मिष्ठा का ट्वीट, उस पर अहमद पटेल का लिखना, फिर आनन्द शर्मा का हमला बताता है कि दादा ने कांग्रेस के लिहाज से ठीक नहीं किया. लेकिन अपने भाषण में दादा ने काफी कुछ संभलकर बोला, इसलिए कांग्रेस सामने से तो दादा के साथ होकर आरएसएस पर हमलावर है, लेकिन हेडगेवार पर दादा की टिपण्णी उसको नागवार गुजरी है, जिस पर वो फ़िलहाल तो चुप है, लेकिन जानती और महसूस करती है कि दादा ने लंबे वक़्त के लिए दर्द दे दिया है.