राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दो सहयोगी संगठनों ने हिंदी माध्यम से भी इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई की वकालत की है. इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय को प्रस्ताव भी दिया है. संघ के सहयोगी संगठनों संस्कृत भारती और संस्कृत संवर्धन फाउंडेशन की बीते दिनों हुई बैठक के बाद यह प्रस्ताव तैयार कर सरकार को भेजा गया है. संस्कृत भारती को उम्मीद है कि केंद्र में अनुकूल सरकार होने के कारण नई शिक्षा नीति में उसके प्रस्ताव को जरूर शामिल किया जाएगा.
दरअसल, शिक्षा और भाषा क्षेत्र में काम कर रहे संघ के सहयोगी संगठनों का मानना है कि मेधावी होने के बाद भी अंग्रेजी कमजोर होने से हिंदी पट्टी के विद्यार्थी इंजीनियरिंग और मेडिकल क्षेत्र में जाने का साहस नहीं कर पाते. अगर जाते भी हैं तो उन्हें भाषा की समस्या आती है. अंग्रेजी कमजोर होने मात्र से ही किसी मेधावी बच्चे के लिए इंजीनियर और डॉक्टर बनने के रास्ते खत्म नहीं होने चाहिए. मेधावियों के सपनों के संसार में भाषा बाधक नहीं बननी चाहिए.
संघ का मानना है कि अगर भारत में व्यावसायिक पाठ्यक्रम हिंदी में नहीं पढ़ाए जाएंगे तो फिर किस देश में पढ़ाए जाएंगे. ऐसे में संघ ने हिंदी भाषा में भी व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव तैयार किया. मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से तैयार की जा रही नई शिक्षा नीति को लेकर शिक्षाविदों और संगठनों की ओर से सुझाव मांगे गए. जिस पर संस्कृत भारती और संस्कृत संवर्धन फाउंडेशन की ओर से बीटेक, एमटेक और एमबीबीएस-एमडी आदि पाठ्यक्रमों की हिंदी में भी पढ़ाई शुरू करने का प्रस्ताव भेजा गया है.
हिंदी भाषी छात्रों के हितों साथ है संस्कृत भारती
संस्कृत भारती के दिल्ली प्रांत मंत्री कौशल किशोर तिवारी आजतक डॉटइन से कहते हैं कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी हिंदी भाषी छात्रों के लिए तो द्वार खोलना ही पड़ेगा. अंग्रेजी कमजोर होने से ही मेधावी छात्रों के लिए तो इंजीनियरिंग और मेडिकल की दुनिया खत्म नहीं हो जाती. मानव संसाधन विकास मंत्रालय को संस्कृत भारती की ओर से कई प्रस्ताव दिए गए हैं, जिसमें एक प्रस्ताव इंजीनियरिंग, मेडिकल समेत हर प्रोफेशनल कोर्सेज में हिंदी में पाठ्यक्रम शुरू करने का है. सरकार से कहा गया है कि वह प्रोफेशनल कोर्सेज के लिए हिंदी में भी सिलेबस की डिजाइन कराए. सरकार को संस्कृत भारती की मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.