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संघ की सलाह- नीतीश से नजदीकियां बढ़ाए बीजेपी

वैसे तो नीतीश कुमार ने इंकार कर दिया है. 'अब गुंजाइश बची कहां है?' मीडिया के सवाल पर नीतीश का यही जवाब था. खबर आई थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बीजेपी को नीतीश कुमार के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाने की सलाह दी है.

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मोहन भागवत, नरेंद्र मोदी
मोहन भागवत, नरेंद्र मोदी

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वैसे तो नीतीश कुमार ने इंकार कर दिया है. 'अब गुंजाइश बची कहां है?' मीडिया के सवाल पर नीतीश का यही जवाब था. खबर आई थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बीजेपी को नीतीश कुमार के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाने की सलाह दी है. उसके बाद से ही अटकलों और संभावनाओं का दौर चल पड़ा.

बीजेपी और जेडीयू का 17 साल पुराना रिश्ता पिछले साल लोक सभा चुनाव के वक्त टूट गया. वैसे दोनों पार्टियों के रिश्तों में दरार तो उसी वक्त आ गई थी जब नीतीश ने एनडीए को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की सलाह दी. उसके बाद दोनों तरफ से बयानबाजी चालू हो गई और जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया तो इस रिश्ते का अंत हो गया.

माना जाता है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के चलते ही नीतीश ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया जिसे दोबारा हासिल करने के लिए उन्हें पूरी ताकत झोंक देनी पड़ी.

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नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की आधिकारिक मुलाकात 5 मई 2012 को हुई थी. एक बार फिर 26 मार्च को दोनों दिल्ली में मिलने जा रहे हैं. हालांकि, इस साल 26 फरवरी को भी लालू यादव की बेटी की शादी में मोदी और नीतीश की भेंट हुई थी. दरअसल, 26 मार्च को गंगा के गंगा सफाई के मसले पर प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई है. एक सवाल के जवाब में नीतीश ने सिर्फ इतना बताया कि मीटिंग के सिलसिले में वो दिल्ली पहुंच रहे हैं. यानी प्रधानमंत्री से मुलाकात के लिए उन्होंने अलग से कोई वक्त नहीं मांगा है.

दिल्ली में सोमवार को नितिन गडकरी के घर संघ और बीजेपी नेताओं की एक बैठक हुई थी. इसी बैठक में संघ ने नीतीश से दोस्ती की सलाह दी, लेकिन आखिरी फैसला बीजेपी पर छोड़ दिया.

नवंबर में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. फिलहाल संघ को इसी चुनाव की चिंता है. शायद दिल्ली चुनाव के नतीजों ने संघ की चिंता कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी है. लोक सभा के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने मैदान में अकेले उतरने का फैसला किया. तीन राज्यों में बीजेपी ने सरकार भी बना ली और जम्मू-कश्मीर सरकार में हिस्सेदार बन गई.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ तीन सीटों पर सिमट गई. दिल्ली के हालात भले ही बाकी राज्यों से अलग रहे लेकिन मोदी लहर बेअसर तो साबित हुई ही. अब संघ आगे रिस्क लेना नहीं चाहता और इसीलिए उसने बिहार की तैयारी पहले से ही शुरू कर दी है.

हाल ही में संघ ने बीजेपी को बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के बारे में भी चेताया था. संघ के सर्वे में पता चला कि यूपी में भी हालात बीजेपी के अनुकूल नहीं है, बल्कि बीएसपी वहां बेहतर स्थिति में है.

बिहार में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के विश्वास मत के दौरान बीजेपी ने समर्थन देने का भी फैसला किया था. मांझी ने सदन में जाने से पहले ही इस्तीफा दे दिया ये अलग बात है.

फिलहाल सत्ता समीकरणों के चलते बिहार में नीतीश की पार्टी जेडीयू के साथ कांग्रेस और आरजेडी हाथ मिलाए हुए हैं. लेकिन पता चला है कि एक बार फिर लालू और नीतीश के बीच सब कुछ उतना अच्छा नहीं चल रहा है. इसमें मांझी फैक्टर की भी भूमिका बताई जा रही है. कुछ दिन पहले आरजेडी के एक नेता ने नीतीश को सलाह दी थी कि उन्हें मांझी को उप-मुख्यमंत्री बना देना चाहिए, तो दूसरे ने मांझी को पार्टी में ही शामिल करने का प्रस्ताव रखा था. कम से कम एक मामले में तो लालू की चुप्पी को उनकी मंशा ही माना गया. जाहिर है ये सब नीतीश को कतई अच्छा नहीं लगा होगा.

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नीतीश के फिर से कुर्सी संभाल लेने के बाद, संघ को लग रहा है कि बीजेपी के लिए चुनावी राह थोड़ी मुश्किल हो रही है. इसीलिए संघ चाहता है कि बिहार विधान सभा चुनाव में बीजेपी जेडीयू के साथ गठबंधन कर ले - और मिल कर कांग्रेस और आरजेडी का मुकाबला करे.

नीतीश ने भी मोदी के खिलाफ अपने तेवर थोड़े नरम कर लिए हैं. नीतीश ने कहा था कि बिहार के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हैं. राजनीति में बयान कुछ और दिये जाते हैं और फैसले कुछ और होते हैं. शायद इसीलिए नीतीश के इंकार में भी इकरार के संकेत देखे जा रहे हैं.

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