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श्रमिक कल्याण फंड के पैसे से अखिलेश ने बांटी साइकिल, केजरीवाल ने विज्ञापन पर खर्चे

केंद्रीय श्रम मंत्रालय से पंजाब स्थित एक एक्टिविस्ट को आरटीआई के माध्यम से जो जवाब मिला वो चौंकाने वाला है. ये आरटीआई श्रम कल्याण फंड के उपयोग के संबंध में थी. श्रम मंत्रालय के जवाब में कहा गया है विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से 42,000 करोड़ रुपए इस फंड के तहत इकट्ठा किए गए लेकिन इसमें से सिर्फ 12,000 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए.

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अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यागदव
अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यागदव

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कर्नाटक में वोटरों को लुभाने में बीजेपी और कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ी रही हैं. जहां बीजेपी अपने चुनाव घोषणा पत्र में महिलाओं के लिए 3 ग्राम सोने से बना मंगलसूत्र, गरीब महिलाओं को स्मार्टफोन देने के वादे कर रही है तो वहीं कांग्रेस भी पीछे नहीं है. कांग्रेस ने सभी कॉलेज छात्रों को सेलफोन देने का वादा किया है. लेकिन खुद को गरीबों की हितैषी दिखाने वाली पार्टियों का असली चेहरा सूचना के अधिकार वाली एक याचिका (आरटीआई) से बेनकाब हो गया है.

केंद्रीय श्रम मंत्रालय से पंजाब स्थित एक एक्टिविस्ट को आरटीआई के माध्यम से जो जवाब मिला वो चौंकाने वाला है. ये आरटीआई श्रम कल्याण फंड के उपयोग के संबंध में थी. श्रम मंत्रालय के जवाब में कहा गया है विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से 42,000 करोड़ रुपए इस फंड के तहत इकट्ठा किए गए लेकिन इसमें से सिर्फ 12,000 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए. ये आंकड़ा 1996 में इस संबंध में एक्ट लागू किए जाने के बाद से अब तक का है. आरटीआई एक्टिविस्ट दिनेश चड्ढा ने इंडिया टुडे को बताया, विभिन्न राज्यों में विभिन्न श्रम बोर्डों के तहत दो करोड़ श्रमिक पंजीकृत हैं. इनका 27,000 करोड़ रुपया अब भी बिना इस्तेमाल किए पड़ा है. इस तरह सरकार हर श्रमिक के लिए दस हजार रुपए की देनदार है. गोवा जैसे राज्य में तो प्रति श्रमिक ये देनदारी 5 लाख रुपए की बैठती है.

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कर्नाटक, जो इन दिनों चुनाव प्रक्रिया से गुजर रहा है वहां सिर्फ 328 करोड़ रुपए का ही इस्तेमाल किया गया है. कर्नाटक में बिल्डिंग और अन्य निर्माण श्रमिकों के लिए शुल्क के तौर पर इकट्ठा किया गया 4000 करोड़ रुपया राज्य कोषागार में पड़ा है. ये पैसा श्रमिक कल्याण योजनाओं जैसे कि शिक्षा, शादी, रात्रि रैन बसेरे, मोबाइल टॉयलेट्स और स्वास्थ्य सुरक्षा आदि पर खर्च किया जाना था. श्रम यूनियनों का कहना है कि कई राज्यों में इस फंड का दुरुपयोग किया जा रहा है.

भारतीय मजदूर संघ के क्षेत्रीय सचिव पवन कुमार का कहना है कि यूपी में अखिलेश यादव सरकार के दौरान इस फंड का इस्तेमाल साइकिल बांटने में किया गया. इसी तरह दिल्ली में केजरीवाल सरकार श्रम कल्याण की जगह विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च कर रही है. यानी जो फंड गरीब श्रमिकों के लिए है उसे किन्हीं और कामों पर खर्च कर दुरुपयोग किया जा रहा है. आरटीआई डेटा दिखाता है कि कुछ राज्य सरकारों के गरीब-श्रमिक हितैषी होने के दावे कितने खोखले हैं. महाराष्ट्र में 2013 से अब तक 6107 करोड़ रुपए इकट्ठा किए गए लेकिन उसमें से खर्च सिर्फ 385 करोड़ रुपए ही किए गए. इसी दौरान गुजरात ने 1912 करोड़ इकट्ठा किए और महज 150 करोड़ रुपए ही खर्च किए. वहीं हरियाणा ने इकट्ठा किए 2050 करोड़ में से सिर्फ 227 करोड़ ही खर्च किए.

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एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल में केंद्र सरकार को फंड के बेहतर उपयोग के लिए दिशानिर्देश बनाने का आदेश दिया है. इंडिया टुडे को मिली जानकारी के मुताबिक श्रम मंत्रालय ने एक उपसमिति का गठन किया है जो इस मुद्दे पर विचार करेगी. वहीं श्रम यूनियनों का आरोप है कि केंद्र कानून के मुताबिक शुल्क भी एकत्र नहीं कर रहा. सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स के राष्ट्रीय सचिव स्वदेश देव राय कहते हैं, रेलवे और डिफेंस प्रोजेक्ट्स में केंद्र सरकार ये शुल्क तक एकत्र नहीं कर रही है. वरना ये फंड और कहीं ज्यादा होता. श्रमिक कल्याण फंड के लिए दस लाख रुपए से अधिक निर्माण लागत पर एक फीसदी के हिसाब से सेस (शुल्क) वसूल किया जाता है. बिल्डर या डेवेलपर अपने ग्राहकों से इस सेस की भरपाई करते हैं.

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