प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने के बाद भले ही यह कहा हो कि एक पुराना दोस्त नए दोस्तों से बेहतर है लेकिन रूस भी अब चीन की राह चल पड़ा है. ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान को आतंकवाद की वजह से अलग-थलग करने के मुद्दे पर रूस ने भारत का समर्थन करने की बजाय चुप्पी साधे रखी.
'टाइम्स ऑफ इंडिया' में छपी खबर के मुताबिक चीन पहले से ही जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा का नाम गोवा डिक्लेरेशन में लाने का रास्ता बंद कर चुका था. लेकिन रूस ने भी पाकिस्तान के इन दोनों आतंकवादी संगठनों को लेकर भारत के प्रस्ताव पर चुप्पी साधे रखी. जबकि ब्रिक्स में शामिल देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा घोषित आतंकवादी संगठनों की सूची को स्वीकार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
रूस की चुप्पी के परिणामस्वरुप भारत ब्रिक्स समिट में पाकिस्तान को उस तरह से घेर नहीं सका जैसा वह चाहता था. रूस के इस बदले रवैये की वजह उसके हाल ही में पाकिस्तान के साथ बढ़ी नजदीकी भी है. पाकिस्तान के साथ रूस ने एंटी- टेरर एक्सरसाइज बताकर कई सैन्य अभ्यास किए हैं.
अल-नुसरा का नाम घोषणापत्र में शामिल
भले ही रूस ने जैश-ए-मोहम्मद का नाम गोवा डिक्लेरेशन में शामिल करने में भारत की मदद न की हो लेकिन उसने सीरिया के जभात-अल-नुसरा संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित करने का समर्थन किया है. यह इसलिए क्योंकि रूस सीरिया में लगातार अल-नुसरा को अपना निशाना बना रहा है. अल-नुसरा संगठन सीरिया में बशर-अस असद की सरकार को गिराने के लिए लगातार विद्रोह छेड़े हुए है. अल-नुसरा की ही तरह संयुक्त राष्ट्र ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए तैयबा को भी प्रतिबंधित घोषित किया हुआ है. बता दें कि उरी और पठानकोट में हुए आतंकी हमलों के लिए जैश-ए-मोहम्मद ने ही जिम्मेदारी ली थी.
गोवा डिक्लेरेशन के आने से ठीक एक दिन पहले व्लादिमीर पुतिन ने पीएम मोदी को यह आश्वासन दिया था कि वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे भारत के हितों को नुकसान हो. लेकिन विदेश मंत्रालय के सचिव अमर सिन्हा ने यह स्वीकार किया कि दोनों देशों के बीच पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों को डिक्लेकेशन में शामिल करने को लेकर कोई एकमत नहीं था. क्योंकि इन संगठनों से दूसरे देशों को कोई नुकसान नहीं होता.