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SC ने पूछा- वेदों में स्त्री-पुरुषों में भेदभाव नहीं तो सबरीमाला मंदिर में क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव वेदों, उपनिषदों या किसी भी शास्त्र में नहीं किया गया है, तो सबरीमाला में ऐसा क्यों है?

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SC में जनहित याचिका पर सुनवाई
SC में जनहित याचिका पर सुनवाई

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केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल के बीच की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मंदिर बोर्ड तथा सरकार से कई सवाल किए. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव वेदों, उपनिषदों या किसी भी शास्त्र में नहीं किया गया है, तो सबरीमाला में ऐसा क्यों है?

यंग लॉयर्स एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई
इस नियम के खिलाफ यंग लॉयर्स एसोसिएशन नाम की एक संस्था ने याचिका दाखिल की है. कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करेगा कि क्या महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को स्थाई किया जा सकता है या नहीं?

कोर्ट ने पौराणिक ग्रंथों का उदाहरण दिया
कोर्ट ने कहा कि- भगवत गीता के मुताबिक भगवान कृष्‍ण हर जगह हैं और हर किसी में वास करते हैं. भगवान ने महिला और पुरूषों में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया है. भगवद गीता ग्रंथ में भी इसका जिक्र है. ऐसे में भगवान के मंदिर में किसी महिला के प्रवेश पर कैसे पाबंदी लगाई जा सकती है. कोर्ट ने पूछा कि क्‍या हिंदू धर्म में ऐसा कोई नियम है कि जो यह कहता हो कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं है. यह टिप्‍पणी सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश दीपक मिश्रा की बेंच ने शुक्रवार को केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की है.

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राज्य सरकार कानून का पालन करे
सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार से कहा कि इस मामले को लेकर नियम व कानून की बात करें और कोई भावनात्‍मक दलील न दें . अगर हिंदू धर्म में इस बात का उल्‍लेख है कि किसी को भगवान के घर अर्थात मंदिर में प्रवेश से रोका जा सकता है तो वो उस कानून व ग्रन्थ की जानकारी अदालत को दे. यहां पर तर्क सुना जाएगा, भावनात्‍मक अपील नहीं.

कोर्ट से 6 हफ्ते का समय मांगा
केरल सरकार ने इस मामले में अपना जवाब दायर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से 6 हफ्ते का समय मांगा. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्‍वीकार कर लिया है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 अप्रैल को होगी. वहीं, मंदिर प्रबंधन और केरल सरकार की ओर से अदालत के सामने दलील दी गई कि सबरीमाला मंदिर में कई दशकों से यह प्रथा चली आ रही है. लोगों की धार्मिक आस्‍था इससे जुड़ी है.

मंदिर की व्यवस्था कानून नहीं
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मंदिर की व्‍यवस्‍था तो कही जा सकती है, मगर कानून नहीं. कानून के अनुसार महिला और पुरूष समान हैं और दोनों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अदालत के सामने पैरवी के लिए वरिष्‍ठ वकील राजू रामचंद्रन को एमिकस क्युरी नियुक्‍त किया है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मामले में वरिष्‍ठ वकील राम जेठमलानी को कहा कि क्‍या वो इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में पैरवी कर सकते हैं.

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कई दशकों से चल रही है प्रथा
पिछली सुनवाई पर केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दायर करते हुए कहा था कि सबरीमाला मंदिर में कई दशकों से महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है. यह व्‍यवस्‍था लोगों की धार्मिक आस्‍था के अनुसार पहले से ही तय है. इसलिए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती. सरकार ने कहा था कि कई सदियों पुरानी परंपरा का बचाव करना हमारा कर्तव्य हैं.

संविधान में महिलाओं को अधिकार
राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में ये भी कहा था कि ये महज पुरानी परंपरा की बात नहीं है. हमारा संविधान भी मंदिरों को ये अधिकार देता है कि वो मंदिर में किसे प्रवेश देता है किसे नहीं. साथ ही संविधान हमें धार्मिक स्वतंत्रता का हक भी देता है. केरल सरकार ने अपनी पूर्व की बात से यू टर्न लेते हुए 2007 में तत्कालिन केरल सरकार के हलफनामे को वापस ले लिया था और नया हलफनामा दायर किया था. पूर्व में वर्ष 2007 में सीपीआई सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि कोर्ट इस मामले में खुद ही निर्णय ले.

मासिक धर्म वाली उम्र की महिलाओं पर पाबंदी
इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट सभी आयु की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का आदेश पारित करे. अभी तक मासिक धर्म वाली उम्र की महिलाओं का, मंदिर में प्रवेश पर रोक है. इस आयु वर्ग से पूर्व की लड़कियों और उसके बाद की प्रौढ़ महिलाओं और वृद्धाओं के प्रवेश पर सबरीमाला मंदिर में कोई रोक नहीं है.

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