सबरीमाला की आसपास की पहाड़ियों पर रहने वाले आदिवासियों ने आरोप लगाया है कि सरकार और त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) प्रसिद्ध सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत देकर सदियों पुरानी प्रथा को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं.
उन्होंने दावा किया कि रजस्वला लड़कियों और महिलाओं पर लगी बंदिशें केरल के जंगलों में रहने वाले आदिवासी समाजों के रीति-रिवाज का हिस्सा हैं. आदिवासियों ने यह भी कहा कि सबरीमला मंदिर और इससे जुड़ी जगहों पर जनजातीय समुदायों के कई अधिकार सरकारी अधिकारी और मंदिर का प्रबंधन करने वाले टीडीबी अधिकारी छीन रहे हैं.
अट्टाथोडू इलाके में आदिवासियों के मुखिया वी के नारायणन (70) ने कहा, ‘देवस्वोम बोर्ड ने सबरीमाला के आसपास की कई पहाड़ियों में पड़ने वाले आदिवासी देवस्थानों पर भी कब्जा कर लिया है.’ उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी मंदिर से जुड़े सदियों पुराने जनजातीय रीति-रिवाजों को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं.
नारायणन ने कहा, ‘मेरी त्वचा देखिए. हम आदिवासी हैं. जिन संस्थाओं पर हमारे रीति-रिवाजों के संभालने की जिम्मेदारी है, वही उन्हें खत्म कर रहे हैं.’ यहां आदिवासियों के मुखिया को ‘मूप्पेन’ कहा जाता है. उन्होंने कहा कि रजस्वला लड़कियों और महिलाओं को अशुद्ध मानना एक द्रविड़िय रिवाज है और आदिवासी लोगों की प्रकृति की पूजा से जुड़ा है.
सबरीमाला आचार संरक्षण समिति के प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे नारायणन ने कहा, ‘भगवान अयप्पा हमारे भगवान हैं. किसी खास आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हमारे रीति-रिवाज का हिस्सा है. घने जंगलों में भगवान अयप्पा के मंदिर में पूजा करने के लिए रीति-रिवाजों का पालन करना बहुत जरूरी है. इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए. अशुद्ध महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं देनी चाहिए.’