गंगा को दुर्दशा से एक नया मंत्रालय नहीं उबार सकता और न ही उसके लिए ‘साबरमती मॉडल’ पर्याप्त होगा. यह राय विशेषज्ञों ने जाहिर की है. विशेषज्ञों का कहना है कि नदी का गौरव बहाल रखने के लिए कानूनी प्रावधानों की दरकार है.
भारत के हर हिस्से में बसने वाले करोड़ों हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र मानी जाने वाली और पुराणों एवं लोकगाथाओं का सदियों से हिस्सा बनी रहने वाली 2,525 किलोमीटर की इस नदी को स्वच्छ करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष जोर दिया है. गंगा सिर्फ भारत में आस्था का ही एक नाम नहीं है, बल्कि 11 राज्यों की 40 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को पानी मुहैया कराती हुई जीवनरेखा भी है. पर्यावरणविदों का मानना है कि इस नदी के जीवन के लिए असंख्य बांध सबसे बड़ा खतरा हैं.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तेज-तर्रार नेता उमा भारती की देखरेख में गंगा के लिए अलग मंत्रालय से कुछ उम्मीद तो जगी, लेकिन अभी तक कोई ठोस योजना सामने नहीं आई है. पर्यावरण वैज्ञानिक और राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए) के सदस्य बी.डी. त्रिपाठी ने कहा, ‘सफाई गंगा के लिए समाधान नहीं है. तीन मुख्य धाराएं- भागिरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी सभी पर कई बांध और बैराज बन चुके हैं. इनके कारण बड़े पैमाने पर नदी का पानी भूमि में समा जा रहा है. नहरों के जरिए जो पानी गंगा में गिरता है उसकी मात्रा काफी कम है.’
गंगा को साफ करने के लिए 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथारिटी (एनजीआरबीए) का गठन हुआ था. त्रिपाठी के मुताबिक नदी प्रबंधन से जुड़े कई मुद्दे मौजूदा विधायी ढांचे में नहीं आते हैं. इसमें पर्यावरणीय प्रवाह की देखरेख, नदी घाटी की पारिस्थितिकी एवं जैवविविधता का संरक्षण, भूजल का स्तर बनाए रखना, विभिन्न धाराओं में नदी के पानी की दिशा मोड़ने की योजना का दृढ़ीकरण, मलबे का निस्तारण, नदी के प्रवाह में रुकावट और संयोजकता का क्षरण एवं बाढ़ के मैदान और सक्रिय बाढ़ क्षेत्र का इस्तेमाल आदि मौजूदा विधायी ढांचे में नहीं आते.
त्रिपाठी ने कहा, ‘गंगा एक राष्ट्रीय नदी है और इसीलिए राष्ट्रीय नीति की जरूरत है. अब जबकि एक पृथक मंत्रालय है तो हमें इस वास्तविकता को महसूस करने की जरूरत है कि गंगा का प्रबंधन केंद्रीय स्तर पर एक कानूनी ढांचे के तहत यह सुनिश्चित करने के लिए होना चाहिए कि पूरे देश में नदी, उसके बहाव और उसकी घाटी से संबंधित मुद्दे का समाधान एकरूपता से हो.’
गंगा की सफाई का वादा करते हुए मोदी जहां गुजरात की साबरमती नदी को उदाहरण के रूप में पेश करते हैं, वहीं कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह गंगा के लिए कहीं से भी उपयोगी नहीं ठहरता.
साबरमती गुजरात की सबसे बड़ी नदी है और इसका उद्गम राजस्थान के उदयपुर जिले में अरावली पर्वत श्रंखला में स्थित धेबर झील से है. यह नदी वहां से दक्षिण पश्चिम की दिशा में बहती हुई 371 किलोमीटर की यात्रा के बाद अरब सागर के खंभात की खाड़ी में गिरती है. यह गुजरात में शुरू से समुद्र तक बहती है और इसी के किनारे राज्य की राजधानी गांधीनगर व उससे सटा अहमदाबाद है. यहां पर्यटकों को लुभाने के लिए नदी के किनारों को विकसित किया गया है.
पर्यावरणविदों ने उल्लेख किया कि साबरमती साफ नहीं हुई है. केवल इसमें नर्मदा नदी का पानी बहाया जा रहा ताकि यह साफ दिख सके. साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स नामक एनजीओ के समन्वयक और पर्यावरणविद हिमांशु ठक्कर ने कहा, ‘अहमदाबाद में साबरमती में जो पानी बहता दिखता है वह नर्मदा का है और यह गुजरात के सूखाग्रस्त इलाकों के लिए है.’
इसी से मिलती-जुलती बात टॉक्सिक वाच अलायंस के गोपाल कृष्ण ने भी कही, ‘गुजरात का जल प्रबंधन मॉडल गंगा के लिए कामयाब नहीं हो सकता, क्योंकि यह गुजरात के लिए भी उपयोगी साबित नहीं हुआ है. नर्मदा का जल साबरमती में बहाना कोई समाधान नहीं है. साबरमती नदी के किनारे विकसित करना नदी के बाढ़ क्षेत्र पर एक हमला है.’