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'सबका इंटरनेट, सबका विकास', महज नारेबाजी या कमिटमेंट भी?

'सबका इंटरनेट , सबका विकास'. सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने यही नारा दिया है. अब ये महज नारा है या इसके पीछे कोई दूरसंचार कंपनियों का कमिटमेंट भी है? फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यही है .

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नेट न्युट्रलिटी
नेट न्युट्रलिटी

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'सबका इंटरनेट , सबका विकास'. सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने यही नारा दिया है. दूरसंचार कंपनियों के इस एसोसिएशन का ये नारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्लोगन 'सबका साथ, सबका विकास' से प्रेरित है. अब ये महज नारा है या इसके पीछे कोई दूरसंचार कंपनियों का कमिटमेंट भी है? फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यही है .

एक अरब तक पहुंचने की चुनौती
दूरसंचार कंपनियों ने नेट न्युट्रलिटी के प्रति समर्थन जरूर जताया है - और उसी के तहत ये नया प्लेटफॉर्म बनाया गया है. कंपनियों ने इंटरनेट सेवाओं का विस्तार उन एक अरब लोगों तक करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है, जो अब भी इंटरनेट की पहुंच से बाहर हैं. इंटरनेट के विस्तार के लिए इसके तहत निवेश बढ़ाने की भी बात कही जा रही है. नेट न्यूट्रलिटी पर जारी विवाद को देखते हुए कंपनियां लामबंद हो रही हैं - जो साफ तौर पर दिखाई भी दे रहा है.

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छह गुना कीमत बढ़ाने की चेतावनी क्यों ?
नेट न्यूट्रलिटी पर छिड़ी बहस के बीच दूरसंचार कंपनियों ने खुलेआम चेतावनी भी दे डाली है. कंपनियों का कहना है कि अगर माहौल उनके बिजनेस के प्रतिकूल हुआ तो इंटरनेट की कीमत में छह गुना तक इजाफा हो सकता है.

यानी कारोबार को बचाने के लिए सारा बोझ यूजर पर डाल दिया जाएगा. ये तो सेवा है जो पैसे देने पर मिलती है. ये कोई धर्मार्थ कार्य तो है नहीं जो लोगों के दान से चलता है. फिर यूजर से ऐसी कौन सी गलती हुई है जिसका सजा देने पर कंपनियां तुली हुई हैं?

कंपनियों का कहना है कि बदले हालात में अगर इंटरनेट की कीमत छह गुना नहीं बढ़ाई गई तो उनका कारोबार व्यावहारिक नहीं रहेगा. तो क्या छह गुना ज्यादा कीमत देना यूजर के लिए व्यावहारिक होगा? अगर वाकई ऐसा हुआ तो क्या उन्हें लगता है कि इंटरनेट के मौजूदा यूजर उसके महंगे होने की सूरत में भी इस्तेमाल जारी रख पाएंगे - नए लोगों तक पहुंचने की बात तो बेमानी ही होगी.

ऐसी हालत क्यों हुई?
दूरसंचार कारोबार को ये दिन आखिर क्यों देखने पड़ रहे हैं? उनका बिजनेस ठंडा क्यों पड़ रहा है? क्या इस बारे में कंपनियों ने कभी विचार किया है?

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इसके पीछे दूरसंचार के क्षेत्र में तकनीकी तरक्की ही है या फिर वाकई कोई और वजह है? क्या इस बात पर गौर किया गया है?

व्हाट्सएप के चलते एसएमएस का कारोबार प्रभावित हुआ है, समझ में आ रहा है. स्काईप, वाइबर और व्हाट्सएप के कॉलिंग फीचर के चलते उनके वॉयस कॉल के बिजनेस पर असर पड़ रहा है - ये भी समझ में आ रहा है.

ऐसा तो नहीं है कि ये सब दूरसंचार कंपनियों का कारोबार खत्म करने के लिए किसी खास रणनीति के तहत हो रहा है. ये तो सीधे सीधे तकनीकी विकास के चलते हो रहा है. तो क्या तकनीकी विकास इसलिए रोक दिया जाना चाहिए क्योंकि किसी का कारोबार चौपट हो रहा है?

टेलीग्राम बंद क्यों हुआ?
आखिर टेलीग्राम के बंद होने की वजह क्या थी? एक दौर था जब संपर्क का सबसे तेज साधन टेलीग्राम हुआ करता था. लेकिन वक्त की रेस में उसे पिछड़ना पड़ा. टेलीग्राम को बंद इसीलिए करना पड़ा क्योंकि नए दौर में उसका कोई मतलब नहीं रहा. इसका कारण भी एक ही रहा - तकनीकी विकास.

अगर मोटे तौर पर देखें तो क्या इस तकनीकी रिवोल्युशन का नुकसान ब्लैकबेरी को नहीं उठाना पड़ा है? जहां तक कारोबार की बात है तो ब्लैकबेरी मैसेंजर से होने वाली कमाई तो सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है. एंड्रॉयड के चौतरफा विकास के दौर में जब वो पिछड़ने लगा तो उसने अपना दायरा बढ़ाने का फैसला किया - लेकिन उसका भी कोई खास फायदा नहीं मिला.

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फिर एक अरब लोगों तक इंटरनेट की पहुंच कैसे बन पाएगी? ऐसे में तो 'सबका इंटरनेट, सबका विकास' महज एक खूबसूरत स्लोगन बन कर ही रहा जाएगा.

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