केरल के ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रशासन से फिर सवाल किए. कोर्ट ने पूछा, 'आपने भगवान को मूर्ति के रूप में बनाया है और उसकी पूजा करते हैं. जो इस संरचना में विश्वास रखता है और मंदिर आना चाहता है, तो क्या आप ये कहकर उसे आने से रोक सकते हैं कि वो एक महिला है?'
संविधान के तहत अधिकारों का अतिक्रमण
कोर्ट ने पूछा कि क्या परंपरा संविधान से ऊपर है? कोर्ट ने कहा, 'इस मामले में कोर्ट ये देख रहा है कि क्या किसी मंदिर की प्रथा संविधान के तहत दिए गए अधिकार का अतिक्रमण कर सकती है.' जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि वो संविधान में विश्वास करते हैं. जस्टिस मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा, 'वैसे भी कहा जाता है कि अगर एक कमरे में मां, पिता, गुरु और कुलपुरोहित हों तो सबसे पहले मां, फिर पिता, फिर गुरू और पुरोहित को नमस्कार (ग्रीट)किया जाता है.'
कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कोर्ट ने मंदिर ट्रस्ट से पूछा कि क्या एक महिला को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से रोका जा सकता है?
10 सालों से कोर्ट में चल रहा है मामला
इस ऐतिहासिक मंदिर में पुरानी परंपरा के मुताबिक तरुण अवस्था में प्रवेश कर चुकी महिलाओं का मंदिर में आना वर्जित है. ये मामला पिछले 10 साल से कोर्ट में चल रहा है. जनवरी में भी सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एनवी रमण की पीठ ने मंदिर में महिलाओं के रोक पर आपत्ति जताई थी.
जनहित याचिका दायर करने वाले वकीलों के संगठन इंडियन यंग लॉयर्स असोसिएशन ने दलील दी कि सती और दहेज जैसी पुरानी परंपराओं को भी खत्म किया गया है. याचिका में हर उम्र की लड़कियों के लिए मंदिर में प्रवेश की अनुमति मांगी गई है.