साईं बाबा के खिलाफ द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की बयानबाजी का मसला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. मुंबई के साईंधाम चैरिटेबल ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. याचिका में मांग की गई है कि अदालत केंद्र और महाराष्ट्र को जरूरी निर्देश देकर कानून-व्यवस्था बिगड़ने से बचाए. इसमें कहा गया है कि शंकराचार्य गैरजरूरी बयान देकर विवाद खड़ा कर रहे हैं.
याचिका बुधवार को जस्टिस अनिल आर. दवे और यू.यू. ललित की बेंच के सामने लाई गई. लेकिन जस्टिस अनिल आर. दवे ने यह कहते हुए इस पर सुनवाई से इनकार कर दिया कि वे खुद एक साईं ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं.
याचिका में यह भी मांग की गई है कि अदालत मीडिया को वैसी कोई भी खबर दिखाने या छापने से रोके, जिससे साईं बाबा का अपमान होता हो, उनकी छवि धूमिल होती हो या उनके भक्तों की भावनाओं पर बुरा असर पड़ता हो. साथ ही मांग की गई है कि देश के किसी भी मंदिर से साईं की मूर्ति को न हटाया जाए.
साथ ही याचिका में कहा गया है कि जिन मंदिरों से साईं बाबा की मूर्ति हटाई जा चुकी है, वहां मूर्ति वापस लगाने के निर्देश दिए जाएं. इसके अलावा यह निश्चित किया जाए कि किसी भी मंदिर से साईं की मूर्ति अब न हटाई जाए.
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने बीते 23 जून को कहा था कि साईं बाबा भगवान नहीं हैं और उनकी पूजा नहीं की जानी चाहिए. शंकराचार्य के इस बयान के बाद विवाद लगातार गहराता चला गया. शंकराचार्य और उनके समर्थकों का दावा है कि साईं बाबा मुसलमान थे.
छत्तीसगढ़ के कवर्धा गांव में 24 और 25 अगस्त को 'धर्म संसद' का आयोजन किया गया. इसमें भी साईं बाबा के बारे में विवादास्पद बातें कही गईं और इस बारे में कुछ सामूहिक फैसले किए गए.
बहरहाल, अब मामला चीफ जस्टिस के सामने है. वे यह तय करेंगे कि याचिका सुनवाई के लिए किस बेंच को दी जाए.