केंद्रीय विद्यालय की छठी से आठवीं कक्षा में अब जर्मन की जगह संस्कृत तीसरी भाषा होगी. केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को यह सूचित किया. संस्कृत बनाम जर्मन: जानिए सब कुछ
न्यायाधीश एच एल दत्तू की बेंच से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने केंद्रीय विद्यालयों में तीसरी भाषा के रूप में जर्मन की जगह संस्कृत भाषा को शामिल किए जाने के केंद्र के फैसले से पैदा हुए विवाद में हलफनामा दाखिल करने की इजाजत मांगी. पीठ ने उन्हें हलफनामा दाखिल करने की इजाजत दी और इसकी सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी.
इससे पहले, 21 नवंबर को अदालत केंद्रीय विद्यालय के छात्रों के अभिभावकों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई को राजी हो गया था. पीठ ने मामले की सुनवाई गुरुवार के लिए मुकर्रर की थी और जनहित याचिका पर केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था. याचिकाकर्ताओं के वकील की दलील है कि भाषा चयन संबंधी फैसले का अधिकार छात्रों और अभिभावकों पर छोड़ देना चाहिए और सरकार को, विशेषकर शैक्षिक सत्र के बीच अपना फैसला नहीं थोपना चाहिए.
मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) के संचालन मंडल ने 27 अक्टूबर को अपनी बैठक में फैसला किया था कि ‘संस्कृत के विकल्प से जर्मन भाषा की पढ़ाई रोकी जाएगी.’ जर्मन को छात्रों के लिए अतिरिक्त विषय के तौर पर रखा गया है. फैसले से सभी 500 केंद्रीय विद्यालयों के कक्षा छह से आठ के 70,000 से ज्यादा छात्रों पर असर पड़ेगा. उन्हें अब जर्मन की बजाए संस्कृत की पढ़ाई करनी होगी.
फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा, ‘केंद्रीय विद्यालयों ने इस तथ्य पर गौर करना मुनासिब नहीं समझा कि इस तरह का फैसला बीच सत्र में नहीं लिया जा सकता क्योंकि इससे प्रभावित छात्रों की समूची शैक्षिक तैयारियों में गड़बड़ी होगी.’ उन्होंने कहा था, ‘सरकार को ऐसे समय में और प्रभावित छात्रों तथा अभिभावकों के साथ बिना किसी मशविरा के इस तरह का बिना सोचा समझा और मनमाना फैसला नहीं लेना चाहिए.’ याचिका में दलील दी गयी है कि ‘प्रतिवादियों की ओर से देश भर के सभी केवी में संस्कृत की जगह जर्मन भाषा को हटाने का फैसला इस तरह के केवी में पढ रहे छात्रों के हित और फायदे पर विचार किये बिना हड़बड़ी में किया गया.
- इनपुट पीटीआई