सरबजीत सिंह की मौत के बाह हुए पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि उनकी मौत टार्चर के कारण हुई. जेल में उनके साथ जो टॉर्चर हुआ था वो सरबजीत के लिए काल बन गया.
इसके अलावा सरबजीत के शरीर के कुछ टुकड़ों को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है. यह रिपोर्ट 15 दिनों बाद आएगी.
सरबजीत की मौत पर संसद शोक में है. सरबजीत की मौत पर पूरा देश गमगीन है. सरबजीत जीते-जी अपने घर लौटने के लिए तरस गये, लेकिन उनकी रिहाई को उनकी बहन दलबीर कौर ने एक ऐसा आंदोलन बना दिया कि अब उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होगा.
दलबीर के शोक में अपनी संवेदना मिलाने के लिए नेताओं का तांता लग गया. देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे गए और उसके बाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी.
26 अप्रैल की शाम जैसे ही ये खबर आई कि लाहौर के कोट लखपत जेल में सरबजीत पर जानलेवा हमला हुआ है, दलबीर ने अपने भाई की जान बचाने के लिए अपनी तरफ से पहल शुरू कर दी. पाकिस्तान में मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी से गुहार लगायी और फिर 28 अप्रैल को परिवार के साथ लाहौर जा पहुंची. वो 23 सालों बाद अपने भाई से मिली, उसे छुआ भी.
सरबजीत के साथ किसी अनहोनी का अंदेशा तो 26 अप्रैल को ही होने लगा था, लेकिन दलबीर आखिरी सांस तक अपने भाई की सलामती के लिए जूझती रही. उसने पाकिस्तानी हुक्मरान से गुहार लगायी कि उसके भाई को अच्छे इलाज के लिए पाकिस्तान से बाहर भेजा जाए. वो जानती थी कि उसकी आवाज पाकिस्तान के नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाएगी. फिर भी वो लड़ती रही. जिन्ना अस्पताल के डॉक्टरों और नर्सों की बेरहमी को बेपरदा करते हुए.
लाहौर के जिन्ना अस्पताल की दरो-दीवारों से टकराकर जब सारी उम्मीदें चकनाचूर होने लगीं, तब दलबीर हिंदुस्तान लौट आई. भाई के परिवार के लिए. हत्यारे पाकिस्तान की जलालत से बचने के लिए.
अपने बेगुनाह भाई की मौत तो दलबीर को हमेशा सालती रहेगी. लेकिन ये तो सारे जमाने ने देख लिया कि बिना ऊंची पकड़ के, बस अपनी इच्छाशक्ति के बूते एक बहन ने भाई की जिंदगी के मसले को पूरे हिंदुस्तान का सुलगता सवाल कैसे बना दिया.