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सरबजीत सिंह ने जेल से लिखी थी चिट्ठी

सरबजीत पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में तिल-तिल कर मरते रहे और उनपर होने वाले जुल्मों की खबर से पूरा हिंदुस्तान दर्द महसूस करता रहा. लेकिन अब जब सरबजीत की बेरहमी से हत्या की जा चुकी है. उनके गांव को याद आ रही है सरबजीत की जुबानी सुनी जुल्मों की कहानी.

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सरबजीत पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में तिल-तिलकर मरते रहे और उनपर होने वाले जुल्मों की खबर से पूरा हिंदुस्तान दर्द महसूस करता रहा. लेकिन अब जब सरबजीत की बेरहमी से हत्या की जा चुकी है, उनके गांव को याद आ रही है सरबजीत की जुबानी सुनी जुल्मों की कहानी.

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किसी ने सोचा भी नहीं था कि तेईस साल पहले गायब हुए सरबजीत को इस तरह वतन की मिट्टी नसीब होगी. लेकिन लोगों के जेहन में एक बार फिर कौंध गई वो चिट्ठी, जिसमें लोगों ने पाकिस्तान के जुल्मो-सितम की कहानी सरबजीत की जुबानी सुनी थी.

भारत भेजी अपनी चिट्ठी में सरबजीत ने लिखा थाः
'मुझे पिछले दो तीन महीनों से खाने में कुछ मिलाकर दिया जा रहा है. इसे खाने से मेरा शरीर गलता जा रहा है. मेरे बाएं हाथ में बहुत दर्द हो रहा है और दाहिना पैर लगातार कमजोर होता जा रहा है. खाना जहर जैसा है. इसे ना तो खाना संभव है, ना खाने के बाद पचाना संभव है'.

सरबजीत ने चिट्ठी तब लिखी थी जब लाहौर के कोट लखपत जेल में दर्द बर्दाश्त से बाहर हो गया था. लेकिन जेल अफसरों का कसाई से भी बदतर व्यवहार जारी था.

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सरबजीत ने जेल में धीमा जहर देने की आशंका जताते हुए लिखाः
'जब भी मेरा दर्द बर्दाश्त से बाहर होता है और मैं जेल अधिकारियों से दर्द की दवा मांगता हूं तो मेरा मजाक उड़ाया जाता है. मुझे पागल ठहराने की पूरी कोशिश की जाती है. मुझे एकांत कोठरी में डाल दिया गया है और मेरे लिए रिहाई का एक दिन भी इंतजार करना मुश्किल हो गया है'.

सरबजीत की चिट्ठी के हर एक लफ्ज ने भिखीविंड के लोगों का कलेजा चाक कर दिया.

खुद को बेगुनाह बताते हुए सरबजीत ने लिखाः
'मैं एक बहुत ही गरीब किसान हूं और मेरी गिरफ्तारी गलत पहचान की वजह से की गई है. 28 अगस्त 1990 की रात मैं बुरी तरह शराब के नशे में धुत था और चलता हुआ बॉर्डर से आगे निकल गया. मैं जब बॉर्डर पर पकड़ा गया तो मुझे बेरहमी से पीटा गया. मैं इतना भी नहीं देख सकता था कि मुझे कौन मार रहा है. मुझे चेन में बांध दिया गया और आंखों पर पट्टी बांध दी गई'.

सरबजीत पर पाकिस्तान की जेल में जुल्म होता रहा और कोर्ट में सारी शिकायतें नजरअंदाज की जाती रही.

'पाकिस्तान की पुलिस और अदालत नर्क से भी बदतर हैं. वो मुझसे कबूल कराना चाहते हैं कि मैं सरबजीत सिंह नहीं मंजीत सिंह हूं. यहां के सारे जांच अधिकारी मानकर बैठे हैं कि पंजाब प्रांत में हुए धमाके के पीछे मैं ही हूं'.

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जेल में सरबजीत पल-पल मौत को करीब आते देखते रहे, लेकिन एक पराक्रमी योद्धा की तरह जुल्मों-सितम से लड़ते रहे. वतन वापसी की उम्मीद कभी नहीं छोड़ी. अब जब ये पराक्रमी योद्धा वतन वापस लौटा है. तो अपनी मिट्टी देख पाने के लिए शरीर में जान बाकी नहीं रही.

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