सरदार पटेल राजनीति में वंशवाद के घोर विरोधी थे. कहा जाता है कि सरदार पटेल ने हिदायत दे रखी थी कि जब तक वो दिल्ली में हैं, तब तक उनके रिश्तेदार दिल्ली में कदम न रखें और संपर्क न करें. उन्हें डर था कि इस कारण उनके नाम का दुरुपयोग हो सकता है. हालांकि उनका परिवार बहुत बड़ा नहीं था. सरदार पटेल के परिवार में एक बेटा और एक बेटी थे जो आजादी के बाद राजनीति में आए.
मणिबेन पटेल सरदार पटेल की बड़ी संतान थीं जबकि डाया भाई उनके छोटे पुत्र थे. मणिबेन पटेल का जन्म 1903 में हुआ जबकि डाया भाई का जन्म 1906 में हुआ था.
सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल
मणिबेन पटेल
सरदार पटेल की बेटी मणिबेन अपने सार्वजनिक जीवन में पिता के ही मार्ग पर चलती रहीं. उनकी मौत 1988 में हो गई और अंतिम समय तक महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलती रहीं. मणिबेन आजीवन अविवाहित भी रहीं.
राजनीति की बात करें तो मणिबेन पटेल 1952 में हुए पहले आम चुनाव में खेड़ा (दक्षिण) लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब रही थीं. 1957 में भी वह चुनाव (आणंद सीट) जीतने में कामयाब रहीं, लेकिन 1962 में उन्हें हार मिली. गुजरात के नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आने और राज्य में महागुजरात आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका के कारण पार्टी के खिलाफ माहौल था जिसका असर आणंद सीट पर भी पड़ा और वह यह लोकसभा चुनाव हार गईं. कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहीं मणिबेन का सरदार पटेल के खास साथी वल्लभ विद्यानगर के संस्थापक भाई काका की स्वतंत्र पार्टी से मुकाबला था. स्वतंत्र पार्टी के नरेंद्र सिंह महेड़ा ने यह चुनाव जीत लिया.
पंडित नेहरू के साथ सरदार पटेल
मणिबेन 1964 से 1970 तक राज्यसभा में रहीं. 1970 के आसपास उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया और कांग्रेस में मचे घमासान के बीच मणिबेन ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस के बजाए मोरारजी देसाई जैसे पुराने कांग्रेसियों के साथ जाना पसंद किया था.
कांग्रेस (ओ) के टिकट पर वह 1973 में साबरकांठा उपचुनाव में जीत हासिल कर फिर से लोकसभा में पहुंच गईं. 1977 में मणिबेन ने मेहसाना सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस विरोधी लहर में एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत गईं. 1990 में निधन से पहले तक वह महात्मा गांधी से जुड़ी कई संस्थाओं के लिए काम करती रहीं.
डाया भाई पटेल
मणिबेन के छोटे भाई डाया भाई पटेल ने शुरू से बगावती रास्ता चुना. उन्होंने मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में शुरुआती पढ़ाई की. हालांकि गुजरात विद्यापीठ से उन्होंने पीजी किया. साल 1939 में पहली बार वो बॉम्बे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के सदस्य चुने गए और 18 साल तक निगम के सदस्य बने रहे. वह 1944 में बॉम्बे के मेयर भी बने.
गांधी के साथ सरदार पटेल
स्वतंत्रता सेनानी और भारत छोड़ो आंदोलन में जेल जाने वाले डाया भाई पटेल का राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश 1957 में होना था, लेकिन उन्हें ऐसा लगा कि पंडित नेहरू पार्टी में पटेल की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए राजी नहीं हैं तो उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया. डाया भाई ने इंदुलाल याग्निक समेत कई अन्य नेताओं ने मिलकर महागुजरात जनता परिषद के नाम से पार्टी बनाई.
महागुजरात जनता परिषद पार्टी के टिकट पर डाया भाई चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन बहन मणिबेन की पिता की पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात पर तीखी टिप्पणी से आहत होकर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. हालांकि बाद में 1958 में डाया भाई महागुजरात जनता परिषद पार्टी के सदस्य के तौर पर राज्यसभा के सदस्य बने.
इस बीच 1959 में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना हुई. सरदार पटेल के बेहद करीबी और विश्वासपात्र भाई काका जैसे कई साथी इस नई स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गए और उनके साथ डाया भाई भी पार्टी में शामिल हो गए.
1964 में डाया भाई स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा के लिए चुने गए. 1958 से वह तीन बार राज्यसभा में रहे और 1973 में उनकी मौत हो गई.
पत्नी और साले की असफल राजनीति
डाया भाई पटेल की पत्नी और साले भी राजनीति में रहे. डाया भाई पटेल राज्यसभा के सांसद रहने के कारण 1962 के लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र पार्टी ने उनकी पत्नी भानुमति बेन पटेल को भावनगर और साले पशा भाई पटेल को साबरकांठा से चुनाव में खड़ा किया था. पशा भाई एक बड़े उद्योगपति भी थे. दोनों ही सीटों पर इन दोनों को हार मिली.
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के साथ सरदार पटेल (GettyImages)
साबरकांठा लोकसभा सीट से पशा भाई पटेल के सामने केंद्रीय मंत्री गुलजारीलाल नंदा थे और उन्हें कड़ी टक्कर मिली. पशा भाई यह 24609 वोट से चुनाव हारे थे. इससे पहले वह 1957 में भी वडोदरा से लोकसभा चुनाव हार गए थे.
डाया भाई ने की थी दो शादी
डाया भाई ने दो शादी की. पहली शादी यशोदा बेन के साथ हुई. यशोदा के निधन के समय डाया भाई 27 साल के थे और उन्होंने दूसरी शादी कर ली. भानुमति बेन उनकी दूसरी पत्नी थी जिनसे उनके दो बेटे (विपिन और गौतम पटेल) हुए.
विपिन और गौतम दोनों भाई राजनीति से दूर रहे. वर्तमान में सरदार पटेल के नाम पर होने पर हो रही राजनीति से भी उन्होंने खुद को हमेशा दूर रखा. 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया तो उनके पोते विपिन भाई पटेल ही यह सम्मान लेने गए थे.
विपिन भाई पटेल के निधन के बाद गौतम भाई पटेल सरदार पटेल के बेहद निकट संबंधियों में रह गए हैं. गौतम भाई पटेल भारत में सरदार पटेल की विरासत और उससे जुड़ी शोहरत से हमेशा से दूर रहे हैं.