देश भर में आज लौह पुरुष सरदार पटेल की जयंती मनाई जा रही है. आज से ही औपचारिक रूप से जम्मू-कश्मीर राज्य दो हिस्सों में बंट गया है और देश को दो नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख मिल गए हैं. ऐसा कहा जाता है कि कश्मीर में 370 को लागू करने के लिए पहले प्रधानमंत्री नेहरू जिम्मेदार थे और सरदार पटेल इस पर सहमत नहीं थे, लेकिन तथ्य कुछ और ही कहानी कहते हैं. सरदार पटेल ने अनुच्छेद 370 को कश्मीर के लिए जरूरी बताया था.
जब हो रही थी 370 पर तीखी बहस, नेहरू थे देश से बाहर
सच तो यह है कि जब संविधान सभा में अनुच्छेद 370 पर बहस हो रही थी, तो उस समय नेहरू देश से बाहर थे और सरदार पटेल ने इस पर चले बहस की जानकारी नेहरू को दी थी. खुद सरदार पटेल ने संविधान सभा में बहस के दौरान इस बारे में तर्क दिया था कि कश्मीर की विशेष समस्याओं को देखते हुए उसके लिए अनुच्छेद 370 जरूरी है.
अनुच्छेद 370 को पास कराने में सरदार पटेल का क्या रोल था?
एम.जे. अकबर की किताब 'कश्मीर बिहाइंड द वेल' और अशोक पांडेय की किताब 'कश्मीरनामा' के अनुसार 12 अक्टूबर 1949 को संविधान सभा में अनुच्छेद 370 पर चल रही तीखी बहस के दौरान सरदार पटेल ने कहा था, 'उन विशेष समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जिनका सामना जम्मू-कश्मीर की सरकार कर रही है, हमने केंद्र के साथ राज्य के संवैधानिक संबंधों को लेकर वर्तमान आधारों पर विशिष्ट व्यवस्था की है.'
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पीयूष बबेले की पुस्तक 'नेहरू मिथक और सत्य' के अनुसार जवाहर लाल नेहरू ने 25 जुलाई 1952 को मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने एक पत्र में कहा था, 'जब नवंबर 1949 में हम भारत के संविधान को अंतिम रूप दे रहे थे. तब सरदार पटेल ने इस मामले को देखा. तब उन्होंने जम्मू और कश्मीर को हमारे संविधान में एक विशेष किंतु संक्रमणकालीन दर्जा दिया. इस दर्जे को संविधान में धारा 370 के रूप में दर्ज किया गया. इसके अलावा 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से भी इसे दर्ज किया गया. इस अनुच्छेद के माध्यम से और इस आदेश के माध्यम से हमारे संविधान के कुछ ही हिस्से कश्मीर पर लागू होते हैं.’
पुस्तक के अनुसार, सरदार पटेल के चुने हुए पत्र व्यवहार की भूमिका में वी शंकर इसकी पृष्ठभूमि बताते हैं, ‘दरअसल हुआ यह कि जुलाई 1947 में देसी राज्य मंत्रालय की स्थापना हुई. सरदार उसके मंत्री बने और वी पी मेनन उनके सचिव नियुक्त हुए. 5 जुलाई को सरदार ने एक वक्तव्य निकाला और राजाओं से यह अपील की कि वे प्रतिरक्षा, विदेशी मामले और संचार व्यवस्था के तीन विषयों में भारतीय उपनिवेश के साथ जुड़ जाएं. उस समय राजाओं से इससे अधिक की मांग करने का कोई प्रश्न ही नहीं था. भारत में विलय के अलावा राजाओं के एकाधिपत्य को कोई आंच नहीं आने वाली थी. उनके लिए अपनी भौतिक सत्ता छोड़ने का कोई प्रश्न खड़ा नहीं हुआ था.’
शंकर आगे बताते हैं कि वी पी मेनन ने बहुत पहले तीन विषयों प्रतिरक्षा, विदेशी मामले और संचार व्यवस्था के आधार पर राज्यों के विलय की योजना तैयार की थी और गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो को भेजी थी. परंतु उन्होंने इस योजना पर कोई ध्यान नहीं दिया और उसके बारे में कुछ नहीं किया.
लेकिन जब मेनन ने यही योजना बाद में सरदार को दिखाई तो 'सरदार के उत्साहपूर्ण समर्थन से तथा उनकी सूचनाओं के अनुसार वी पी मेनन ने इस योजना को पुनर्जीवित किया और समय के अनुरूप बनाया. इस योजना के अनुसार सरदार ने अपना 5 जुलाई 1947 का वक्तव्य निकालकर देसी राज्यों तथा उनके राजाओं से अपील की कि वे भारतीय उपनिवेश के साथ मिल जाएं.’
इस संदर्भ के बाद यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि नेहरू जो कह रहे थे, उसका क्या अर्थ है. नेहरू यही तो कह रहे थे कि जिस तरह बाकी राज्यों का भारत में विलय हुआ, उसी तरह जम्मू-कश्मीर का भी भारतीय राज्य में विलय हुआ. जिन तीन विषयों की ऊपर चर्चा की गई है, शुरू में जम्मू-कश्मीर की तरह ही अन्य राज्यों ने भी उन्हीं तीन विषय पर भारत में विलय किया था. जैसा कि ऊपर नेहरू समझाते हैं कि बाद में अन्य राज्यों ने भारत के साथ अपने रिश्ते को और घनिष्ठ कर लिया, जबकि जम्मू-कश्मीर ऐसा नहीं कर सका, क्योंकि उसकी परिस्थितियां अलग थीं. यही विचार जो कि शुरू से राज्यों के विषय में लागू किया गया था, संविधान सभा ने धारा 370 के माध्यम से संविधान में जम्मू कश्मीर के विशेष प्रावधान के संबंध में जोड़ दिया.
अनुच्छेद 370 में हुआ बदलाव
भारत की संविधान सभा में जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए चार सीटें रखी गई थीं. 16 जून 1949 को शेख अब्दुल्ला, मिर्जा अहमद अफजल बेग, मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी और मोती राम बागड़ा संविधान सभा में शामिल हुए. अगले तीन महीनों तक कश्मीर के भारत से संबंधों से लेकर अनुच्छेद 370 (जिसे मसौदे में 306 ए कहा गया था) को लेकर गोपालस्वामी आयंगर, पटेल और शेख अब्दुल्ला तथा उनके साथियों के बीच तीखे-बहस मुबाहिसे चले.
कश्मीरनामा के अनुसार, 16 अक्टूबर को एक मसौदे पर सहमति बनी, लेकिन आयंगर ने बिना शेख को विश्वास में लिए इसकी उपधारा 1 के दूसरे बिंदु में परिवर्तन कर दिया और यही परिवर्तित रूप संविधान सभा में पास करा लिया गया. शेख अब्दुल्ला ने इस बदलाव पर आपत्ति जताते हुए आयंकर को लेटर लिखा और संविधान सभा से इस्तीफे की धमकी दी.
18 अक्टूबर को शेख को लिखे एक जवाबी लेटर में आयंगर ने कहा कि यह बदलाव मामूली सा है. 3 नवंबर को नेहरू के अमेरिका से लौटने पर पटेल ने इसकी सूचना नेहरू को दी. अंतत: आयंकर द्वारा संशोधित 306 ए ही अनुच्छेद 370 के रूप में संविधान में शामिल हुआ. इस बदलाव की वजह से कश्मीर के किसी मुख्यमंत्री को बर्खास्त करना केंद्र सरकार के लिए संभव हो सका.
गौरतलब है कि कश्मीर को लेकर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला किया है. अगस्त महीने में गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प सदन में पेश किया था. उन्होंने कहा था कि कश्मीर में लागू धारा 370 में सिर्फ खंड-1 रहेगा, बाकी प्रावधानों को हटा दिया जाएगा. इसके अलावा नए प्रावधान के मुताबिक जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन कर दिया गया. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग कर दोनों को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है.