कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. कार्यकर्ताओं और नेताओं का आत्मविश्वास इस कदर डगमगाया हुआ है कि कहीं पार्टी की सरकार भी बन रही हो, तब भी प्रवक्ता यही कहते नजर आएंगे कि हम हार के कारणों की समीक्षा करेंगे. राहुल गांधी ने पिछले कुछ समय में इतनी हार झेली है कि वो भारत-आयरलैंड मैच की हाईलाइट्स भी देखने लगें तो डर लगने लगता है कि भारत कहीं मैच न हार जाए.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नही जीत पाई. चुनाव के बाद घर पर खाली बैठे अजय माकन कैंडी क्रश सागा में दोस्तों से लाइफलाइन ले-लेकर हफ्ते भर में लेवल टेन से आगे नही बढ़ पाए हैं. ऐसे वक्त में जब कांग्रेस के साथ कहीं कुछ सही होता नजर नही आ रहा है, आम आदमी पार्टी के आतंरिक कलह के बीच उन्हें आशा की किरण नजर आई है.
आम आदमी पार्टी के हाल सुन पांच बजे के बाद का सरकारी दफ्तर याद आता है. कोई रुकना ही नही चाहता. मुफ्त की दावत हो तब भी प्लेट में लोग खाना ऐसे नहीं छोड़ते जैसे आम आदमी पार्टी छोड़ रहे हैं. डेली सोप सरीखी आतंरिक कलह देख शक होता है आम आदमी पार्टी की किस्मत एकता कपूर ने लिखी है. ऐसे में केजरीवाल का वो ऑडियो सामने आया, जिसमें उन्हें कांग्रेस के विधायकों को तोड़ सरकार बनाने की बात कहते सुना जा सकता है. इस ऑडियो के बाद पार्टी में कलह और बढ़ गया है. लेकिन यही कलह कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी का काम कर रहा है.
जबसे कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों को तोड़ सरकार बनाने की बात सामने आई है, कांग्रेस में खुशी की लहर छा गई है. पिछले कुछ समय से कांग्रेस को चुकी हुई पार्टी मान लिया गया था. वो लोकसभा में हारे, विधानसभा चुनावों में सिमटे. उनसे अच्छी हालत तो वर्ल्डकप में बांग्लादेश की है. नेताओं को लगने लगा था वो कितनी भी मेहनत कर लें कभी जीत नहीं सकते. कभी सरकार नहीं बना सकते.
कांग्रेस पार्टी खुद मजबूर थी. बदलाव के नाम पर सिर्फ राहुल को प्रमोट कर अध्यक्ष बनाने की बात होती थी. मानो किसी ने सुझा दिया हो कि फांसी लगाने की बजाय जहर का इंजेक्शन लगाने से सब ठीक हो जाएगा. इतने दुख तो गोपी बहू ने भी नही झेले होंगे, जितने कांग्रेस को झेलने पड़े. लेकिन जबसे कांग्रेस में ये खबर फैली कि उनके असंतुष्ट विधायक सरकार बनाने लायक समझे जा रहे हैं, पार्टी में सब ठीक होता लग रहा है. नेताओं में ये विश्वास लौट आया है कि पार्टी में हर कोई ‘राहुल’ नहीं है. वो भी कुछ कर सकते हैं. बाहर की पार्टियां अब भी उनसे उम्मीद रखती हैं. लोग उन्हें अब भी भूले नही हैं. कुछ लोग इसे कांग्रेस युग की वापसी बता रहे हैं. एक पुराने नेता तो ये कहते नजर आए कि जब हमारे असंतुष्ट विधायकों के दम पर सरकार बनाने की सोची जा सकती है तो सोचिए सारे जीते हुए विधायक मिलकर क्या नहीं कर सकते हैं?