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व्यंग्य: एक इंटरव्यू जो किरण बेदी ने नहीं दिया

बीजेपी की मुख्यमंत्री उम्मीदवार किरण बेदी का एक इंटरव्यू, जो उन्होंने दिया ही नहीं.

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इंटरव्यू के लिए किरण बेदी राजी तो हो गईं थी, पर स्टूडियो आने को तैयार न थीं. वैसे भी कुछ दिन पहले एक स्टूडियो में उनके गुस्से को देखते हुए मैंने भी इस बात पर ज्यादा जोर नहीं दिया. शर्त के मुताबिक मैंने मेल पर संभावित सवालों की सूची भेज दी. क्योंकि बगैर अपनी टीम के अप्रूवल के अब वो इंटरव्यू नहीं देतीं. इस सूची में, चुनाव जीतने की स्थिति में केजरीवाल के खिलाफ क्या कदम उठाएंगी, अगर मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं तो भी क्या बीजेपी में बनी रहेंगी जैसे सवाल शामिल थे.

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नरेंद्र टंडन ने इस्तीफा क्यों दिया और कैसे वापस लिया, अन्ना हजारे से अब उनके कैसे रिश्ते हैं, राजनीति को लेकर अब उनकी क्या राय है, खासकर बीजेपी जॉइन करने के बाद, जैसे सवालों को मैंने इंटरव्यू के दौरान ही पूछने का फैसला किया.

रिपोर्टर: किरण बेदी जी, हमारे शो में आपका बहुत बहुत स्वागत है.
किरण बेदी: ठीक है. सवाल पूछो. फालतू की बातें मुझे पसंद नहीं हैं.

रिपोर्टर: किरण जी...
किरण बेदी : ये किरण जी-किरण जी क्या लगा रखा है. 'साब' बोलो. पुलिस अफसर रही हूं. अब मुख्यमंत्री बनने जा रही हूं. इस मुल्क में सिर्फ दो ही लोग मुझे नाम लेकर बुला सकते हैं. नंबर वन मोस्ट पॉपुलर मोदी जी, और नंबर टू सबसे सफल शाह जी. बाकी सब को मुझे 'साब' ही बोलना होगा. आई बात समझ में.

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रिपोर्टर: लेकिन...
किरण बेदी: कोई लेकिन-वेकिन नहीं. नहीं मानोगे तो इंटरव्यू नहीं दूंगी. मैं उठ जाउंगी... पता है न तुम्हें. फिर सोशल मीडिया पर चीखते रहना तुम लोग. वैसे भी वायरल बीमारियों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.

रिपोर्टर: ठीक है साब जी.
किरण बेदी: चलो-चलो, इट्स ओके. पूछ, क्या पूछना है?

रिपोर्टर: साब जी, आपने पीएम की कार उठाई थी या पीएमओ की.
किरण बेदी: मैंने कब ऐसा कहा. अब तुम लोग ‘ओ’ हटाकर अखबारों में ‘पीएमओ’ को ‘पीएम’ लिख दोगे तो मैंने क्या करना. घूम घूम कर सफाई थोड़े ही देती फिरूंगी? बोल दिया है इस बारे में. अब बकवास करने की कोई जरूरत नहीं है.

रिपोर्टर: साब, आपने आम आदमी पार्टी की ओर से आया मुख्यमंत्री पद का ऑफर क्यों ठुकराया?
किरण बेदी: मेरी ईश्वर में आस्था है.

रिपोर्टर : इसमें ईश्वर की बात कहां से आ गई.
किरण बेदी: उस पार्टी का नेता खुद को ही भगवान समझता है.

रिपोर्टर: अच्छा...
किरण बेदी: मुझे वह पार्टी अच्छी लगती है जो भगवान में आस्था रखती हो.

रिपोर्टर: अच्छा, इसीलिए आपने बीजेपी ज्वाइन किया.
किरण बेदी: हां. अब बस करो. चुप हो जाओ. तुम्हारे बहुत सवाल हो गये.

रिपोर्टर: साब, एक और सवाल. आप दिल्ली पुलिस का कमिश्नर नहीं बन पाईं : और शायद इसीलिए वीआरएस ले लिया था.
किरण बेदी : हां, लिया था. मैंने कहा न मेरी ईश्वर में आस्था है. मैं मानती हूं कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है.

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रिपोर्टर: अब आप उसी दिल्ली में मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं. कैसा लग रहा है?
किरण बेदी:
अच्छा लग रहा है. तुम्हें? तुम्हें खराब तो नहीं लग रहा? तुम्हें भी अच्छा लगना चाहिए.

रिपोर्टर : लेकिन साब, दिल्ली पुलिस तो तब भी आपको रिपोर्ट नहीं करेगी. दिल्ली पुलिस तो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंडर में आती है.
किरण बेदी : मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी. चलो उठो यहां से. चलो... या पुलिस को बुलाऊं?

अगर स्टूडियो होता तो शायद किरण बेदी खुद उठ कर चली जातीं, लेकिन वेन्यू दूसरा था. इसलिए उन्होंने रिपोर्टर को ही भगा दिया. ऐसी तमाम बातें अधूरी ही रह गईं. शायद फिर कभी मौका मिले.

(यह व्यंग्य लेखक की कल्पना मात्र है.)

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