बस साल भर पहले की बात है. आयरलैंड के दो परिवारों को अपने बेटों की दोस्ती रास नहीं आ रही थी. नेट सर्च से पता चला कि इंडिया में एक शख्स इसे पूरी तरह क्योर कर लेने का दावा करता है. हालांकि, उन्हें कुछ शक हुआ जब उसी शख्स द्वारा कैंसर और एड्स के इलाज का भी दावा किया गया था. कोई रास्ता न देख ट्रायल के लिए दोनों ने मिल कर शॉन और कॉनर को इलाज के लिए राजी किया. "देखो, तुम्हे भी पता है, और हमें भी. बस एक बार ट्राय कर लो. जाओ घूम आओ." इसी बात पर दोनों राजी हुए. फिर मई, 2014 में शॉन और कॉनर दोनों दिल्ली से सीधे हरिद्वार पहुंचे .
कैसे चला इलाज
आश्रम का माहौल शुरुआती तौर पर उन्हें बहुत अच्छा लगा. तब तक उन्हें इलाज की जटिलता के बारे में जरा भी मालूम नहीं था. रजिस्ट्रेशन के बाद उनकी काउंसेलिंग हुई. उन्हें दैनिक इस्तेमाल के सामान और कपड़े दिए गए. फिर वार्ड में उन्हें अलग अलग बेड मिले. अगले ही दिन इलाज की प्रक्रिया शुरू हो गई.
1. प्रिस्क्रिप्शन के मुताबिक सबसे पहले दोनों ने शपथ ली कि आगे से वे अलग अलग रहेंगे. इसके लिए बाकायदा उन्होंने स्टांप पेपर पर बने शपथ पत्र पर दस्तखत किए. शपथ पत्र की कॉपी आयरलैंड दूतावास के जरिए उनकी सरकार को भी भेज दिया गया.
2. फिर उन्हें तीन महीने तक आसक्ति-विरक्ति मुद्रा का अभ्यास कराया गया. इसमें दोनों को छह घंटे साथ और छह घंटे अलग रहना होता था. ये क्रम अल्टरनेट करके चलता. इसी मुद्रा में हफ्ते में दो दिन बारी बारी से दोनों को कड़ी धूप और एसी कमरे में रहना पड़ता था. धूप तेज न होने की स्थिति में पंचमहाभूत अग्निकुंडों के बीच छह घंटे गुजारने होते.
3. सुबह शाम दो बार इन्हें नेति क्रियाएं करनी होती. इसमें जल नेति, घृत नेति, मक्खन नेति, चाय नेति, कॉफी नेति से लेकर गो-मूत्रनेति तक का अभ्यास करना होता था. हालांकि एक दिन में एक ही प्रकार की नेति क्रिया करने की सलाह दी गई थी.
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