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फिल्मों में इन खलनायकों से थर्राए मुस्टंडे हीरो

सदाशिव अमरापुरकर नहीं रहे. पर्दे पर उनका चेहरा देखते ही पता चल जाता था कि किसी का अनिष्ट होने वाला है. इसीलिए हमेशा उनसे चिढ़ रही है. खलनायकों के साथ यही तो विडंबना होती है, वो अपना काम कितने भी अच्छे से कर जाएं, कभी प्यार नहीं पाते. सदाशिव अमरापुरकर के बहाने याद कीजिए, बॉलीवुड की फिल्मों के उन खलनायकों को जिनको आप हमेशा से देखते आए हैं.

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खलनायकों के प्रकार
खलनायकों के प्रकार

सदाशिव अमरापुरकर नहीं रहे. पर्दे पर उनका चेहरा देखते ही पता चल जाता था कि किसी का अनिष्ट होने वाला है. इसीलिए हमेशा उनसे चिढ़ रही है. खलनायकों के साथ यही तो विडंबना होती है, वो अपना काम कितने भी अच्छे से कर जाएं, कभी प्यार नहीं पाते. सदाशिव अमरापुरकर के बहाने याद कीजिए, बॉलीवुड की फिल्मों के उन खलनायकों को जिनको आप हमेशा से देखते आए हैं.

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लालची खलनायक: आमतौर पर ये हिरोइन के चाचा-मामा-ताऊ होते हैं. कुछ मामलों में सौतेले बाप भी. इनका सीधा सा उद्देश्य होता है, 21 साल तक लड़की को पाल-पोसकर बड़ा करना फिर चुपके से एक दिन ठिकाने लगा देना. अक्सर लड़की के 21 साल के होने तक में कहीं से कोई मुस्टंडा हीरो टपक पड़ता है और इनके इरादों पर पानी फेर देता है. अगर इनसे पूछिए कि 21 साल की होने का इंतजार ही क्यों कर रहे थे तो पता लगेगा किसी वसीयत ने इनके हाथ बांध रखे हैं. इमोशनली ब्लैकमेल करने के लिए, 'मैंने इसी दिन के लिए तुझे पाल-पोस कर बड़ा किया था' टाइप डायलॉग का इस्तेमाल करते रहते हैं.

‘बहुत बड़े लोग’ किस्म के खलनायक: इन खलनायकों के बारे में सबसे बेहतर ज्ञान हीरो की मां देती है. बकौल मां,' बेटा वो बहुत बड़े लोग हैं. उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.' अपने हीरो से इनका कोई पुराना झगड़ा तो नहीं होता पर किसी चौराहे उनकी गाड़ी हीरो पर कीचड़ उछाल देती है और त्वरित प्रतिक्रिया में ‘अंधे की औलाद दिखाई नहीं देता क्या?’ सुनकर खुन्नस पाल लेते हैं या फिर किसी डिस्कोथेक में लड़की को छेड़ने पर बेचारे खलनायक का दुलारा बेटा हीरो के हाथ पीटा जाता है. इनका फेवरेट डायलॉग 'मैं तुम्हारे खानदान का नामोनिशान मिटा दूंगा' होता है.

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खानदानी दुश्मन: ये बड़े आम से खलनायक होते हैं और उतने ही खतरनाक भी. इनका टंटा अक्सर ‘सूरजगढ़’ वाली जमीन को लेकर रहता है. घोड़े पर बैठ वैसे तो ये अपने-अपने इलाकों में चिड़िया मार-मारकर ही खुश होते रहते हैं, पर जाने क्यों इनके बच्चों को आपस में ‘In a relationship’ हो पड़ने की खुजली मची रहती है.

सुप्रीमो खलनायक: इनके ग्रुप के नाम बड़े मजेदार होते हैं जैसे ‘मीजिया ग्रुप’ और उससे भी मजेदार होते हैं इनके नाम डॉक्टर डैंग, मोगैम्बो, शाकाल, सर जूडा और लायन. आधा समय तो ये अपने ही गिरोह के लोगों को ठें-ठें करते रहते हैं और बाकी के वक्त अपने हाइड्रोलिक सिस्टम से लैस ठिकाने को उलटे-पलटते रहते हैं. आपको इनमें इंटरेस्ट न हो तो इनके बगल-बगल चलने वाली सुन्दरी में जरूर होगा.

खोजी खलनायक: ये बेचारा एक सीधा-सादा सा जिज्ञासु बन्दा होता है जो बिना किसी से चूं-चपड़ किये चुपचाप एक अदद नक्शा, नागमणि, हीरा, बैग या खजाना तलाश रहा होता है. हर बार ऐन मौके पर आकर अनजाने में हीरो इसकी सारी मेहनत पर पानी फेर देता है. खलनायक के साथ त्रासदी ये होती है कि जिस चीज को पाने के लिए वो अपना खून जला रहा होता है वो कमर में लटकाए हीरो सीसीडी में कॉफी गटक रहा होता है.

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लम्पट खलनायक: बड़े बाप की इस औलाद के पास काम-धंधा तो कुछ होता नहीं. सारा दिन लड़कियों की इज्जत के पीछे पड़ा होता है. ऐसे लोगों को अक्सर ‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं', सुनना पड़ता है क्योंकि इसके पहले वो उसी से ‘ऐसे-कैसे तुम्हे छोड़ दें बड़े दिन में हाथ लगी है बुलबुल’ कह चुके होते हैं.

भूतिया खलनायक: जरूरी नहीं कि ये मर्द हो, कई बार ये महिलाएं भी निकल जाती हैं जो पायल छनकाती पुराने मकानों में भटकती रहती हैं. अगर मर्द हों तो दरवाजे चर्राते हैं या बाथरूम में नल की टिप-टिप के साथ कदमताल करते हैं. इनका सारा भूतियापा तभी सामने आता है, जब हिरोइन बेचारी खुले बालों में शॉवर ले रही होती है. दर्शक बेचारे का ये सोच-सोचकर कलेजा मुंह को आता है कि वो गायब भूत से डरे या खुले बालों में भयंकर दिख रही हीरोइन से.

तकिया कलाम वाला खलनायक: इस विलेन से ज्यादा खतरनाक तो इसके डायलॉग या तकिया कलाम होते हैं जैसे ‘मैं वो बला हूं..’, ‘सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है’. यहां तक तो ठीक लेकिन जब ये खुद को बार-बार ‘जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह’ कहने लगते हैं या ‘हम रूपनगर के चीते हैं. शिकार पर ही जीते हैं’ सरीखे डायलॉग दोहराने लगते हैं तो लोग गोलियों की बजाय बोली सुन ही मर जाते हैं.

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