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व्यंग्य: बॉलीवुड के सभी विलेन करते हैं ये 10 गलतियां

जानिए क्या थीं वो गलतियां जो लगभग हर खलनायक दोहराता गया.

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संजय दत्त
संजय दत्त

सारा शहर जिन्हें लायन के नाम से जानता है, आज उन ‘अजित’ का जन्मदिन है. अजित के बहाने याद आ रहे हैं तमाम पुराने खलनायक. खलनायक जो काइयां रहे. धनवान रहे. बलवान रहे. बावजूद इसके कभी नायक से जीत नहीं सके. क्योंकि हर बार उन्होंने कुछ चुनी हुई गलतियां दोहराईं. ज्यादातर ये गलतियां अस्सी और नब्बे के दशक के खलनायक दोहराते थे. कुछ गलतियां अब भी दोहराई जा रही हैं. जानिए क्या थीं वो गलतियां जो लगभग हर खलनायक दोहराता गया.

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बच्चे को क्यों छोड़ दिया : एक ईमानदार मजदूर यूनियन लीडर, पुलिसवाले या किसान और उसकी बीवी को मारने के बावजूद विलेन हर बार छोटे बच्चे को मारना भूल जाता है और वही बच्चा बड़ा होकर उससे बदला लेता है. सवाल ये है कि जब विलेन निर्मम होता ही है तो फिर बच्चे को मारने में क्यों आलसिया जाता है?

भाई कहां गया: विलेन ने हीरो के पिता को मारा. मां को बेटों से जुदा किया और उनमें से एक को अपने साथ लेता गया? ये विलेन हैं या बेबीसिटर? जब विलेन दुश्मन के बच्चे में बुढ़ापे का सहारा खोजने लगता है तो विनाश तो तय है. अंत में हीरो टैटू, ताबीज के सहारे भाई को पहचान जाता है और बेचारे विलेन की दोतरफा कुटाई हो जाती है.

कितने आदमी थे: कंस से गब्बर तक लगभग हर दूसरे खल चरित्र के पतन का कारण यही होता है कि वो स्वावलंबी नहीं रहे. एक-एक मुस्टंडे को चुन-चुनकर यूं भेजते रहते हैं. गोया लाल बजरी पर टेनिस खेल रहे हों और सर्विस चुन रखी है. बजाय एक-एक को भेजकर मरवाने के अगर सारे गुर्गों को लेकर एक साथ पिल पड़ें तो मजाल है हीरो की एक साथ इतनों से पार पा सके.

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गद्दारी की एक ही सजा होती है मौत: विलेन जब हीरो का कुछ नहीं बिगाड़ पाता तो खिसिया जाता है. ऐसे मौके पर खम्भा नोचने की बजाय अपने ही लोगों को मार अपनी ताकत कम कर लेता है. किसी बेचारे ने एक छोटी सी जानकारी इधर-उधर कर दी तो उसे ‘गद्दारी की एक ही सजा होती है..मौत’ सरीखा भारी-भरकम डायलॉग सुना गोली मार दी. इससे बाकियों में असंतोष बढ़ता है. खलनायक को चाहिए अब तक उस पर इतना इन्वेस्ट किया तो एकबार उसका इन्क्रीमेंट और महीने की छुट्टियां बढ़ाकर देख ले. स्किल्ड इम्प्लॉयी आजकल मिलते कहां हैं? ऐसे ही कोई अगर एक बार में हीरो को न मार सका हो तो उसे भी गोली मारने से बचना चाहिए.इसलिए नहीं कि इससे खलनायक को कुछ फायदा होगा बल्कि इसलिए क्योंकि हम भी कभी-कभी टास्क पूरा नहीं कर पाते और एच.आर. वाले भी फिल्म देखते हैं.

एक वही लड़की मिली थी: विलेन को सारी दुनिया में वही लड़की पसंद क्यों आती है जिसका अफेयर हीरो से चल रहा हो? कमिटेड लड़कियों को तो लोग फेसबुक पर भी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने से बचते हैं पर विलेन तो ये पता होने पर भी उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाता है. लड़की अगर हां कर दे तो बड़े-बड़े चंगेज खानों के खेत बिक जाते हैं. फिर ना कह देने के बाद विलेन की क्या बिसात?

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तकिया कलाम ले डूबेगा: विलेन सबसे ज्यादा मेहनत अपने तकिया कलाम दोहराने में कर डालता है. कई बार विलेन को हीरो इसलिए भी मार डालता है क्योंकि अंत तक में वो उसके तकिया कलम सुन-सुनकर पक चुका होता है.

छोड़ दे मेरी मां को: सबकुछ कर जब विलेन हार चुका होता है तो हीरो को बुलाने के लिए उसकी मां-बहन को कैद कर लेता है. ये उसकी सबसे बड़ी गलती होती है. हम हिन्दुस्तानी घरवालों के मामले में बड़े सेंटी होते हैं और इस हरकत के बाद विलेन का मरना या सुधरना निश्चित होता है.

बंद करो ये नाच-गाना: हीरो विलेन के अड्डे तक आया और उसके गुर्गों ने उसे धूल चटाकर कैद भी कर लिया. फिर जाने विलेन को क्या सूझी,लाइट-साउण्ड के साथ डान्स का कार्यक्रम भी रखवा लिया. अगले को मारना है तो मारो ये मैटिनी शो दिखाकर इंटरटेन क्यों कर रहे हो? इस तीन-चार मिनट के गाने के बीच जूनियर आर्टिस्ट्स को फुटेज खाकर कारस्तानी दिखाने का मौका मिल जाता है और हीरो कैद से बाहर.

मारना है तो पूरा मार: हीरो से विलेन की दो-दो हाथ हो जाती है. विलेन ने हीरो को जमकर धुना. चाकू से काटा. सरिए से पीटा और मरने के लिए छोड़ हीरोइन से गुफ्तगू करने चल पड़ा. खलनायक इस मौके पर भूल जाते हैं कि ऐसे में हीरोइन का आर्तनाद सुनकर पहले मुर्दा शरीर में जान आएगी फिर दो उंगलियां हिलेंगी और पीछे मुड़कर माजरा समझते तक में आंधी-तूफान के साथ खलनायक की दुनिया उजड़ जाएगी.

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सारे सिक्के एक ही जेब में मत रखो: विलेन सारी जिन्दगी अक्लमंद होता है. शरीफ बना होता है. पीछे सुराग नही छोड़ता पर ऐन मौके पर जब हीरो से भिड़ंत होती है सारी चल-अचल संपत्ति एक जगह पर ला धरता है ऐसे में बड़ा आसान हो जाता है कि अंत में एक माचिस मारकर उसके सारे साम्राज्य में आग लगा दी जाए या रंगे हाथों देर से आई पुलिस के हत्थे मय सबूतों के चढ़ाया जा सके.

(युवा व्यंग्यकार आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर हैं और इंदौर में रहते हैं)

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