शिवसेना की महाराष्ट्र सरकार के बारे में क्या राय है इस पर जाएं तो 'नई सरकार नई बहू जैसी होती है, सास की उपेक्षा करेगी तो जनता कान पकड़ेगी' . कुछ लोग इसमें घरेलू हिंसा को बढ़ावा देने के संकेत ढूंढ सकते हैं पर हमें तो शिवसेना के पारिवारिक संस्कारों की झलक नजर आई. शिवसेना हमेशा परिवार के बारे में और परिवार के दायरे में सोचने वाली पार्टी रही है.
वैसे भी स्व. बाल ठाकरे के बाद उद्धव ठाकरे और अब आदित्य ठाकरे को आगे कर शिवसेना ने दिखा ही दिया है कि पारिवारिक मूल्यों पर उनका कितना गहरा विश्वास है. उधर, कांग्रेस में राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपने की सुगबुगाहट मची है, ये कोई छोटी बात नहीं है.
आज जब संबंध अपने असल मायने खोते जा रहे हैं, तब कांग्रेस और शिवसेना के ये छोटे-छोटे प्रयास परिवार की महत्ता दिखा रहे हैं. पारिवारिक फिल्में कम बन रही हैं तो ऐसी ‘फैमिली पार्टियां’ ही समाज को सही दिशा दिखा सकती हैं.
इस सब के बाद भी महाराष्ट्र में सरकार बीजेपी की बन गई. राज्य में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस का शपथ ग्रहण समारोह भी कई मायनों में अनूठा रहा क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने एक तीर से कई निशाने जो कर डाले.
सबसे पहले नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा के बाद यहाँ भी आडवाणी जी को शपथ ग्रहण में बुलाकर उनके कलेजे पर सांप लोटाया. दूसरे ‘वानखेड़े स्टेडियम’ में कार्यक्रम करा शाहरुख खान की भी टांग खिंचाई कर ली, बेचारे जा नहीं सकते वहां बैन लगा है ना.
वानखेड़े स्टेडियम में कार्यक्रम और जबर्दस्त खर्च कर उन्होंने उन तमाम लोगों के मुंह पर भी करारा तमाचा जड़ा जो अरविन्द केजरीवाल के विधानसभा की बजाय रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के फैसले को जनता के खून-पसीने की गाढ़ी कमाई के पैसों की बर्बादी बता रहे थे.
अंतिम समय तक लग रहा था कि शिवसेना कार्यक्रम में न बुलाए जाने पर अपना इतिहास दोहराते हुए वानखेड़े स्टेडियम की पिच तो खोद ही आएगी पर ऐसा हुआ नहीं, उद्धव ठाकरे पहुँच गए भले बीजेपी ‘न उद्धव से लेना न माधो’ को देना वाले मूड में रही हो.
सरकार को शिवसेना बहू कहे या खुद को सास पर असलियत तो ये है कि शिवसेना उस ननद की तरह है जो नेग कम मिलने पर पहले मुंह बना के चली गई थी और अब इस इन्तजार में बैठी थी कि कोई कलश पकड़ने को कहे तो मैं सोने की अँगूठी और कांजीवरम् की साड़ी की मांग रखूं.
अपने तरीके से शिवसेना ने उप-मुख्यमंत्री का पद मांग भी लिया, उप-मुख्यमंत्री का पद और दस मंत्रियों को शपथ ग्रहण कराने की मांग के बदले 63 विधायक देने का ऑफर पहले भी आया था. कसम से ऐसा ऑफर तो बिग बिलियन डे सेल पर एक रुपये में पेन ड्राइव बेचने वाले फ्लिपकार्ट ने भी किसी को न दिया होगा.
शिवसेना को अपने विधायक संभाल कर रखने चाहिए. बीजेपी ने दिल्ली में दिखा दिया था कि वो सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ में यकीन नहीं रखती, लेकिन कल को अगर शिवसेना से ‘हिसाब’ न जमा या एन.सी.पी. से गठबंधन हो गया, तो शिवसेना के काम ओएलएक्स और क्विकर आ सकती हैं. वो क्या कहते हैं खचाक से खेंच..
(आशीष मिश्रा फेसबुक पर सक्रिय युवा व्यंग्यकार हैं और पेशे से इंजीनियर हैं.)