यहां बात न सीबीआई की है, न उसकी कार्यप्रणाली की, न जांच के तरीके-नतीजे की, यहां सिर्फ एक कहानी...
कहीं किसी दूर देश में एक राज्य हुआ करता था, नाम कुछ भी रख लीजिये उत्तम प्रदेश ही सही, वहां एक रानी राज करती, सब उसे ‘पत्थर वाली रानी’ कहते. रानी गई तो राजा आया. उसने अपने बेटे को गद्दी पर बैठाया. उसे सब ‘पुत्तर वाला राजा’ कहते, राजकुमार ने शासन ऐसा बढ़िया संभाला कि कम्बल संग लाशें बंटती और पेड़ों पर बच्चियां फलतीं. जब भी राज्य में कोई कारनामा होता राजा जिबरिश करता. राजा जिबरिश करता, नए राजा की छाती चौड़ी होती, नाक ऊंची होती. राजा बग्घी चढ़ता प्रजा जयकारे लगाती.
राज-काज देखता राजा खुश था, प्रजा खुश थी, चहुंओर खुशहाली थी. राजा बादशाह बनने के सपने देखता, प्रजा भी सपने देखती, दिन-रात एक थे, सपने देखने की आजादी थी, दिन भी रात से लगते. नए राजा ने भी प्रजा के लिए दिन-रात एक कर रखे थे. राज्य की शांति में खलल तब पड़ गया जब एक रात राज्य में डकैती हो गई सेठ के यहां. राजा हैरान था कि डकैती कौन डाल सकता है? डकैत सारे तो दरबारी हो गए, बच कौन गया? ये डकैती नहीं चोरी है, बड़ी तफ्तीश हुई, पता चला सेंधमारी हुई है, किसने की? पांच जनों पर शक था, सेठ ने कहा उसने इन्हें अक्सर अपने घर के पास घूरते देखा है, सेंधमारी वाली शाम तो उस दीवार के पास भी देखा था जहां सेंध मारी गई.
पता चला ये पांचों हैं ही छंटे हुए बदमाश. इन्होंने ही सेंध मारी. सब मान गए, सजा होनी तय थी. पांचों बहुत घबराए, उस्ताद के पास जा रिरियाए, बचा ले गुरु!! उसने बताया कोई रास्ता नही बचा बस ‘उनसे’ जांच करवा लो, हो सकता है गला न नपे. पांचों राजा के पास भाग आए, बोले, महाराज चूं नहीं करेंगे बस एक बार ‘उनको’ बुलवा दो 'वो' कह दें तो फांसी दे देना. ‘वो’ आए सेंध देखी, सेठ को देखा था, सेठानी को देखा, एक नजर पांचों को देखा, उड़ा हुआ माल देखा, जांच की और पांचों को क्लीनचिट दी. वजह बताई, पहला चोर बहुत मोटा है, सेंध में नहीं घुस सकता. दूसरे के बाल झड़ते हैं, सेठ के यहां एक भी बाल न था. सेठानी कुछ कहती है सेठ कुछ कहता है, चौथे चोर को गठिया है रात को चल भी नहीं पाता, पांचवा चोर अकेले तो इतना सामान उठा न पाएगा? सामान खुद ही लुढ़का, दीवार तोड़ी, लुढकते-लुढ़कते चोरों के घर पहुंच गया, सामान क्यों लुढ़का?
दुनिया गोल है न! कहानी खत्म हुई, ये कहानी है ही ऐसी, न राजा असली है, न चोर असली है, न राजा का बेटा, न पेड़, न मौतें, न बच्चियां, न ‘वो’, न ‘उनके’ तरीके, न ‘उनके’ नतीजे बस दुनिया गोल है.
(आशीष मिश्रा पेशे से इंजीनियर और युवा व्यंग्यकार हैं)