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व्यंग्यः इस देश का क्या होगा!

क्षितिज की सीमाओं से तम का साम्राज्य सिमटने लगा था, स्ट्रीट लाइट्स वानप्रस्थ आश्रम जाने को ही थी. फ्लैट, अपार्टमेंट्स और बंगलों से घिरी कंक्रीट की सड़क को पार कर संकरी गली में आशुमुनि ने परमपूज्य साहिलेश्वर की पर्णकुटी की ओर कदम बढ़ाए, ऑटो के रंभाने के पावन स्वर ने आशु मुनि को प्रात:काल के आगमन का शुभ सन्देश दिया, सहसा कानों में गूंज उठी गाय की घंटियों की तालबद्ध आवाज ने आशु मुनि का ध्यान खींचा.

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Narendra Modi
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क्षितिज की सीमाओं से तम का साम्राज्य सिमटने लगा था, स्ट्रीट लाइट्स वानप्रस्थ आश्रम जाने को ही थी. फ्लैट, अपार्टमेंट्स और बंगलों से घिरी कंक्रीट की सड़क को पार कर संकरी गली में आशुमुनि ने परमपूज्य साहिलेश्वर की पर्णकुटी की ओर कदम बढ़ाए, ऑटो के रंभाने के पावन स्वर ने आशु मुनि को प्रात:काल के आगमन का शुभ सन्देश दिया, सहसा कानों में गूंज उठी गाय की घंटियों की तालबद्ध आवाज ने आशु मुनि का ध्यान खींचा.

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प्रात:काल की रमणीय वेला में गौ माता के दर्शन को पलटे आशु मुनि ने पाया कि रास्ता मांगने को अखबार वाला साइकिल की घंटी बजा रहा था, ‘जा ना बे’ कहते हुए आशु मुनि ने जिह्वा तक आ पहुंचे अपशब्द को भीतर ठेला और किनारे हो गए, अखबार वाले ने मौन नहीं तोड़ा पश्च प्रदेश उठाकर टांगो का सारा जोर दाहिने पैडल पर लगाया और साइकल के चक्र को गति देते हुए आंखों से ओझल हो गया.

अखबार वाले के जाने के पश्चात् आशुमुनि ने खुद को सड़क किनारे कूड़े के ढेर पर खड़ा पाया, परिवार नियोजन के अस्थाई उपाय, शीतल पेय की खाली बोतलें, प्याज के छिलकों से भरी एक झिल्ली, टूटे हुए अण्डों के खोल, उलझे बालों का गुच्छा इतना कुछ आशुमुनि का मन वितृष्णा से भर देने को काफी था, बगल में ही श्रीमती ग्रामसिंह नवजात शारमेय पुत्रों को दुग्धपान करा रहीं थीं, आशुमुनि को अपने क्षेत्र में घुसपैठ करते देख श्वानप्रिया ने अलसाई सी भौं उछाली.

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भौंकने से सहमकर वहां से हटे, तो चरण किसी लिजलिजी वस्तु पर जा पड़े, लिजलिजाहट कैनवास के जूतों से रीढ़ की हड्डी के मार्ग तक आते तक में गिनगिनाहट में बदल गई, जी को कड़ा कर दृष्टिपात किया तो चरणपादुका तले दाल नजर आई, कोई अभागन दाल का पूरा पात्र ही पलट गई थी, उस अंजान आत्मा की सास की लम्बी आयु की कामना करते हुए आशुमुनि ने उत्तरीय से नासिका और मुख को ढांपा और लगे हाथ झल्लाहट में चू पड़ने को आतुर नोजल पेस्ट को भी पोंछ वहां से तीर की भांति निकले, पीछे खाली पड़ा कूड़ेदान उतना ही उपेक्षित लग रहा था जितने आडवाणी जी बीजेपी में.

वहां से छूटे तो सीधा साहिलेश्वर की पर्णकुटी पर रुके, बाहर पड़े फुटमैट पर यथासंभव जूते रगड़ते हुए आशुमुनि वहीं से कातर स्वर में प्रभु..प्रभु चिल्लाने लगे, उस समय आशुमुनि पैरों को फुटमैट पर इस तीव्रता से रगड़ रहे थे कि अगर उनकी टांगे गाजर और फुटमैट किसनी होती तो साहिलेश्वर को दोपहर के खाने के साथ गाजर का हलवा भी मिल जाता. साहिलेश्वर पहले ही गवाक्ष से आशुमुनि को आते देख चुके थे, झटके से द्वार खोला और जूते पर लगे पीलेपन को उनके द्वार पर ला चुपड़ने के एवज में तर्जनी पर मध्यमा को लपेट अंटी-बिरंटी बांधें-बांधे दर्जनों मिशेल-साशा से सुशोभित कर डाला, उस समय उनके अधर एमीनेम से सैकड़ों गुना तेज चल रहे थे और क्रोध की लालिमा से तप्त उनका मुखमंडल ज्येष्ठ के सूर्य से सहस्त्र गुना ज्यादा भभक रहा था.

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आशुमुनि इस तेज का सामना नहीं कर पा रहे थे उनके मस्तक पर पूस की ठण्ड में भी स्वेदबिंदु बह चले, भयाक्रांत आशुमुनि के मस्तक से टप-टप टपके स्वेदबिन्दुओं में यूं ही आधा फुटमैट साफ हो चुका था, सुबह-सुबह अनपेक्षित अपमान करा चुकने के बाद आशुमुनि ने जैसे-तैसे सफाई दी और दाल की दुर्घटना से लेकर आने का कारण तक बता डाला, फुटमैट धोने का वचन देने पर साहिलेश्वर का क्रोध शांत हुआ और उस क्षमाशील विशाल ह्रदय के स्वामी ने उन्हें पर्णकुटी में धंसने की आज्ञा भी दे दी.

पर्णकुटी क्या थी पूरा जादू का पिटारा था, नाना प्रकार के मच्छर-मक्खी यत्र-तत्र कलरव कर रहे थे. चातक, चकोर, कोकिल, भारद्वाज अनेक पक्षी लैपटॉप के स्क्रीनसेवर पर दिख पड़ते थे, जुराबें कुर्सियों पर और अधखुली किताबें गुदड़ी में नजर आ रही थीं, इन सबसे दृष्टि हटा और घड़ी भर पहले हुए अपमान को भुला आशुमुनि चहके.
'इस देश का कभी कुछ नहीं हो सकता!’
'किसने उधार नहीं लौटाया?' साहिलेश्वर घनगम्भीर स्वर में बोले.
'प्रभु वो बात नही है?’ आशुमुनि आदर और भय में बेशर्मी घोल बोले.
'तो बॉस ने छुट्टी नहीं दी या बत्ती दी?' साहिलेश्वर सारकास्टिक हो पड़े.

'देव मैं तो आपसे इस देश की दुर्दशा के बारे में बात करने आया हूँ, आपने तो जाना आज सुबह मेरे साथ क्या हुआ, सफाई की कद्र ही नहीं लोगों में, कोई स्वच्छता अभियान इन्हें सुधार नहीं सकता, सब फोटो खिंचाने के चोंचले हैं. लोग सड़कों पर कूड़ा डालते हैं और कूड़ेदान खाली पड़े रहते हैं, जहां लिखा हो यहां कचरा फेंकना मना है वहीं कचरा फेंक जाते हैं, जहां लिखा होता है ‘कूत के पूत यहां मत मूत’ वहां पेशाब कर जाते हैं, सुलभ शौचालय खाली रह जाते हैं, सिविक सेन्स नाम की कोई चीज है ही नहीं, सड़क पर चलने का शऊर नहीं, खुद की सलामती के लिए हेलमेट तक नहीं पहनते, गलती सरकार की भी है, न कचरे को सही ढंग से निपटाते हैं न ढंग के ट्रेचिंग पॉइंट बनाते हैं, न सीवरेज की सहूलियत, न वाटर ट्रीटमेंट की, सब गन्दा-साफ एक हुआ पड़ा है.' आशुमुनि नकटी टेबल के नीचे चिपकाते हुए बोले जा रहे थे.

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'सुबह-सुबह किस पेज की अपडेट पढ़ आये? आजकल लाइक-वाइक नहीं आते क्या फोटोज में, इतना क्यों खदबदा रहे हो, बाहर ठण्ड है वत्स, तुम भी ठण्ड रखो और ये नाक में ऊंगली डालना बंद कर मेरी बात सुनो.'

आशुमुनि की व्याकुलता बढती जा रही थी वो अगला प्रश्न पूछने ही जा रहे थे कि पुन: साहिलेश्वर का स्वर गूंजा, पाषाण भी भय से कांप जाएं ऐसा स्वर, हृदय में भीतर तक बिंध जाने वाले स्वर में जब साहिलेश्वर ने बोलना शुरू किया तो आशुमुनि स्तब्ध रह गए उनका एक-एक शब्द सिहरा देने वाला था, साहिलेश्वर ने कहा 'समस्या न देश के साथ है न देशवासियों के साथ न सरकार के साथ, समस्या समझ की है, सरकार कभी उस भाषा में बात ही नहीं करती जो आमजन को समझ में आती है. और आमजन की बात सरकार नहीं समझती. जैसे जनता सरकार चुनते वक्त कामना करती है अच्छे दिनों की, कालाधन लौटने की, लाहौर जीतने की, रावलपिण्डी को भिन्डी जैसे काटने की, गाय को राष्ट्रपशु घोषित करने की, नौ रूपए लीटर पेट्रोल और बारह आने के डीजल की. जनता मत देकर बतलाना चाहती है कि हम टमाटर चवन्नी के पंसेरी भर चाहते हैं, किराने की दुकान पर इक्लेयर्स के बदले डॉलर ठुकराना चाहते हैं पर ऐसा हो पाता है क्या? सरकार उसका कुछ और ही मतलब निकाल लेती है उसे मिलता है ‘मौका’ और तुम्हें मिलता है पावन ठुल्लू-ए-बाबा.

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'तो प्रभु उपाय क्या है?' आशुमुनि चिंचियाए.

'सीधी सी बात है शब्दकोष बदलें, सरकार जनता की बात समझे और जनता सरकार की, इसके लिए कुछ चीजें बदलनी होंगी, शुरुआत के लिए तो बस तमाम कूड़ेदानों पर लिखवा दो ‘यहाँ कचरा फेंकना मना है’, तमाम सुलभ शौचालयों पर लिखवा दिया जाए ‘यहां पेशाब करना मना है’, सड़कों पर से स्पीडब्रेकर हटवा कर लिखवा दो ‘आपको पीर बाबा/शनिदेव की कसम धीरे चलें वरना शाम तक बुरी खबर मिलेगी’, हेलमेट न पहने तो चालान पर ‘इससे मेरी धार्मिक भावनाएं आहत हुईं’ लिखकर जाए फिर देखो कैसे सब सही होता है.'

आशुमुनि एक बार फिर परमपूज्य साहिलेश्वर की तीक्ष्णबुद्धि पर लम्पलोट होकर फुटमैट धोए जा रहे थे और साहिलेश्वर आज पुन: न नहाने के बहाने सोचने में खो गए.

(आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर और फेसबुक पर सक्रिय व्यंग्यकार हैं.)

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