इंडियन सुपर लीग शुरू हो चुका है. मुंबई ने पहले ही मैच में कोलकाता को हरा भी दिया. खबर मिलते ही कई खेलप्रेमियों का एक ही प्रश्न था, सीएसके भी खेल रही है न? खैर उन्हें तो इंडियन प्रीमियर लीग और इंडियन सुपर लीग में फर्क समझने में वक्त लगेगा पर फुटबॉल प्रेमी इस खबर से बहुत उत्साहित नजर आ रहे हैं. हिंदुस्तानी फुटबॉल प्रेमी फीफा फुटबॉल वर्ल्डकप खत्म होने के बाद भरे चौमासे शीतनिद्रा में सो गए थे पर अचानक शुरू हुए इंडियन सुपर लीग ने उन्हें वक्त के पहले ही उठा दिया.
हिंदुस्तान में फुटबॉल प्रेमियों के रंग-ढंग ही अलग होते हैं. फुटबॉल प्रेमी मैच के वक्त अपनी पसंदीदा टीम को चीयर करने से ज्यादा ध्यान इस बात पर देते हैं कि बाकियों को पता हो सके उनकी पसंदीदा टीम है कौन सी? और अक्सर ये वही टीम होती है जो पिछले कुछ सीजन्स से लगातार जीत रही होती है. विदेशों में फुटबॉल का सीजन चाहे जो होता हो हमारे यहां फुटबॉल खेलने का असल मौसम तब बनता है जब नगर निगम की चोक हो चुकी नालियों के टें बोल जाने से गली में पानी भरना शुरू हो. उस वक्त जींस घुटनों तक चढ़ा बनियान में फुटबॉल खेलते हर शख्स के अंदर पेले और माराडोना की आत्मा एक साथ घुस जाती है.
अपने लक्षणों और विशेषताओं के चलते फुटबॉल प्रेमियों को वर्गीकृत भी किया जा सकता है. आमतौर पर यहां चार किस्म के फुटबॉल प्रेमी पाए जाते हैं. पहली किस्म में वो तमाम लोग जो फुटबॉल को 'सॉकर' कहते हैं या कहना जानते हैं, भले उन्हें रोनाल्डो और रोनाल्डिन्हो में फर्क न पता हो लेकिन इतना जानने भर से फुटबॉल प्रेमी होने का लर्निंग लाइसेंस पाया जा सकता है लेकिन जो लोग फेसबुक पर ‘आई लव मेसी’ या ‘नेमार इज रॉकस्टार, आई लव दिस गेम, व्हाट अ मैच’ अपडेट करते रहते हैं वो पहली किस्म के लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं. ये दूसरी किस्म के फुटबॉल प्रेमी होते हैं. इनके फुटबॉल प्रेम की अधिकतम सीमा यहां तक होती है कि बाजार में कहीं भी दस नंबर की जर्सी दिख जाए तो लपक के खरीद लेते हैं और उसके बाद पहली किस्म वालों को यूं देखते हैं जैसे कान्वेंट स्कूल वाले बच्चे सरकारी स्कूल वालों को देखते हैं.
तीसरी किस्म के फुटबॉल प्रेमी वो होते हैं जो देशों से ज्यादा भाव क्लबों को देते हैं. किस क्लब ने कौन से साल में किस खिलाड़ी को कितने में खरीदा? यही वो तपस्वी लोग होते हैं जो टाइमजोन में फर्क होने के चलते रात को तीन-तीन बजे उठकर चेल्सिया और बार्सिलोना के मैच देखते हैं. चौथी किस्म के फुटबॉल प्रेमी इन तीनों किस्मों से कहीं ज्यादा खतरनाक होते हैं. इन्हें फुटबॉल इतिहास की एक-एक चीज यूं रटी होती है मानों उस मैच के दौरान बीच मैदान पर बैठे रहे हों. गलती से आपने ‘द हैंड ऑफ द गॉड’ का जिक्र कर दिया तो ये आपको लगेंगे बताने कि किस तरह मैच के 51 मिनट बीतने के बाद ये गोल हुआ. इनसे आप ये तक जान सकेंगे कि गेंद को हवा में किसी अर्जेंटीना के खिलाड़ी ने नहीं बल्कि इंग्लैंड के मिडफील्डर ने उछाला था. 1986 के बाद ये आपको सीधे 1962 में चिली और इटली के बीच का ‘बैटल ऑफ सेन्टियागो’ सुना डालेंगे और अगर आपने जरा सी भी दिलचस्पी और दिखाई तो आपको ये भी पता चल जाएगा कि एक बार फ्रांस और कुवैत के चलते मैच के बीच कुवैत के शेख बीच मैदान में कूद ही पड़े थे.
कई बार तो लगता है भारत कहीं न कहीं फुटबॉल के मैदान में पीछे इसलिए भी रह गया क्योंकि फुटबॉल पसंद करने वाले उसे मैदान पर बढ़ावा देने के बजाय, सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर ये दिखाने में लगे रहते हैं कि फुटबॉल के बारे में वो जानते कितना हैं. इंडियन सुपर लीग शुरू होने के बाद शायद हमें वो लोग फिर से दिख सकें जो फुटबॉल वर्ल्ड कप में नेमार की रीढ़ की हड्डी टूटने पर पल-पल हेल्थ बुलेटिन जारी किया करते थे, इस बार ‘आई लव फिकरू तेरेफा, व्हाट अ मैच, आई लव दिस गेम’ कहते ही सही.
(आशीष मिश्रा फेसबुक पर सक्रिय युवा व्यंग्यकार हैं और पेशे से इंजीनियर हैं.)