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व्यंग्यः केजरीवाल के नाखून की चुभन ने बदला उद्धव ठाकरे को, आडवाणी से बोले मोदी, अफवाह न सुनें

मैं बचपन में ट्रक ड्राइवर बनना चाहता था. फिर कई दिनों तक खिलौनों की दुकान खोलने का मन बना रहा. टीचर्स पीटते तो सोचता मास्टर बनकर इनके बच्चों को पीटूंगा. एक दिन पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरने वाले के पास ढेर सारे नोट देखे तब पेट्रोल पंप पर काम करना चाहा. रजनीकांत का राज जाना तो कई दिनों तक बस कंडक्टर बनने की सोची. मगर आखिर में मेरी किस्मत ने मुझे इंजीनियर बना दिया. लेकिन अब सोच रहा हूं सब छोड़छाड़ कर शिवसेना ज्वाइन कर लूं. मेरे जैसे लोगों का बड़ा स्कोप है वहां. पार्टी अध्यक्ष भी बनाया जा सकता हूं.

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नाखून चुभते ही उद्धव के बदले सुर
नाखून चुभते ही उद्धव के बदले सुर

मैं बचपन में ट्रक ड्राइवर बनना चाहता था. फिर कई दिनों तक खिलौनों की दुकान खोलने का मन बना रहा. टीचर्स पीटते तो सोचता मास्टर बनकर इनके बच्चों को पीटूंगा. एक दिन पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरने वाले के पास ढेर सारे नोट देखे तब पेट्रोल पंप पर काम करना चाहा. रजनीकांत का राज जाना तो कई दिनों तक बस कंडक्टर बनने की सोची. मगर आखिर में मेरी किस्मत ने मुझे इंजीनियर बना दिया. लेकिन अब सोच रहा हूं सब छोड़छाड़ कर शिवसेना ज्वाइन कर लूं. मेरे जैसे लोगों का बड़ा स्कोप है वहां. पार्टी अध्यक्ष भी बनाया जा सकता हूं.

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केंद्र में मोदी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार से नाराज होकर महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना ने ऐलान कर दिया कि वे विपक्ष में बैठेंगे. जबकि कुछ दिन पहले उद्धव ठाकरे राज्य सरकार में दसियों विभाग से लेकर उपमुख्यमंत्री तक की कुर्सी पर भी तोल-मोल कर रहे थे. कभी हां-कभी ना कर रहे उद्धव हमेशा से ऐसे नहीं रहे हैं. न ही उन्हें इन चुनावों की हार ने ऐसा बनाया है. उनके इस रवैये की असल वजह हमें सूत्रों के सहारे पता चली है. दरअसल इस चुनाव की भागदौड़ में किसी रोज अरविन्द केजरीवाल का नाखून उन्हें लग गया था. तब से उद्धव अपनी बातों से यू-टर्न लेने लगे हैं.

हालांकि हर कोई पूछ रहा है कि दिल्ली से अरविंद चुपचाप महाराष्ट्र कैसे पहुंचे जो उनके नाखून ने खेल कर दिया. ये हैरानी की बात है. लेकिन उससे भी ज्यादा हैरान कर देने वाली बात ये सामने आ रही है कि भाजपा का साथ छूटने के बाद शिवसेना का ‘राष्ट्रवादी’ तमगा छीना जा सकता है. शिवसेना विधायक कल महाराष्ट्र सदन में नारंगी साफा पहन कर पहुंच गए थे और ये सबको पता है कि ‘नारंगी’ और ‘नागपुर’ का क्या संबंध है. भगवे के मिसयूज की बात भाजपा के साथ नागपुर वालों को भी खटक गई है. इसीलिए तत्काल प्रभाव से ‘राष्ट्रवाद’ के साथ ‘हिन्दुत्व’ का लाइसेंस भी छीनने की बात चल पड़ी. उधर, महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस समझ नहीं पा रहे कि शिवसेना और एनसीपी में से किसका हाथ थाम लें. कमोबेश उनकी हालत घर पर मेहमान के सामने चाय ले जाने वाले बच्चे की तरह हो गई है.

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चलते-चलतेः इस सब चकल्लस से दूर आडवाणी जी अलग ही सोच में डूबे हुए हैं. हाल ही में जन्मदिन पर उनसे किसी ने कह दिया कि उन्हें गोवा का मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है. नरेन्द्र मोदी ने उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हुए ऐसी अफवाहों पर कान न देने की सलाह दी तो उन्होंने कहा,'चलो वो नहीं तो महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर की शपथ ही दिला दो. शपथ ग्रहण के लिए शेरवानी अब भी नेप्थलीन की गोलियों के बीच इन्तजार कर रही है.'

(युवा व्यंग्यकार आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर हैं और इंदौर में रहते हैं.)

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