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व्यंग्य: साहित्य में दूध पीते एलियंस का महत्व

खबरें दिखाने-सुनाने के लिए चाहिए ही क्या? एक भावहीन चेहरा लीजिए, दस नीरस खबरें उठाइए और बुलवा दीजिए. काम की बात, बात खत्म.

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खबरें दिखाने-सुनाने के लिए चाहिए ही क्या? एक भावहीन चेहरा लीजिए, दस नीरस खबरें उठाइए और बुलवा दीजिए. काम की बात, बात खत्म. या दूसरा तरीका (पत्रकारिता के विद्यार्थी इसे कॉपी के पिछ्ले पन्नों में लिखकर रख सकते हैं!) स्टूडियो को यूं तैयार कीजिए मानो किसी सस्ती साइंस फिक्शन फिल्म का सेट हो.

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अनगढ़ से एनिमेशन तैयार कीजिए, एनिमेशन जितने दोयम दर्जे के होंगे, उतने मौलिक समझे जाएंगे. ढेरों साउंड इफेक्ट. बीच-बीच में किसी अंग्रेजी फिल्म के धुंधले दृश्य ठूंसिए. सबसे अंत में सबसे खास, कोई झन्नाट सी खबर उठाइए और दे मारिए दर्शकों के मुंह पर. लॉजिक तो तलाशने की कोशिश ही न कीजिएगा. खबर जितनी रचनात्मक हो सके उतनी रखिए. रचनात्मक यूं समझिए कि अगर टीवी स्क्रीन के सामने बैठा दर्शक खीझकर अपने बाल नोंच डाले मतलब आप रचनात्मकता की पराकाष्ठा पार कर गए.

खबर कुछ भी हो सकती है. आलू में गणपति, दुनिया खत्म होने की भविष्यवाणी. गाय का दूध पी गए एलियन, प्याज मांगती चुड़ैल, स्वर्ग की सीढ़ी...

मैं सोचा करता कि 'दूध पीते एलियंस ' 'प्याज मांगती चुड़ैल' या 'घने जंगल में स्वर्ग की सीढ़ी' खबर कैसे हो सकती है? और ठोंक-बजाकर बतौर खबर चला भी दी तो फायदा क्या? फिर मैंने उन्हें इस सबके लिए पुरस्कृत होते देखा और मेरी आंखों के सामने से स्मॉग हट गया. आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि पहले सैफ अली खान को भी ऐसा कुछ पाते देखा था. सैफ का तो समझ भी आता है उन्हें इसलिए दे डाला क्योंकि वो ज्यादा फिल्में न कर एक तरह का अहसान ही करते हैं. इनका समझना चाहा तो लगा हो सकता है कचहरी बंद करने के वादे के बदले में मिला हो. कैसा समय आ गया है, पुरुस्कार क्यों मिले इसकी वजह भी खोजनी पड़ती है.

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ये हताशा का दौर है. गाय-बैल साम्प्रदायिक पशु हैं उनके नाम पर बलवे हो जाते हैं. ऐसे में गाय का दूध पीते एलियंस की खबरों से लोगों में विश्वास पनपता है. इस बात का नहीं कि एलियन होते हैं बल्कि इस बात का कि दूसरी दुनिया के लोग भी गौ का महत्व समझते हैं. पड़ोसी इंसान होकर भी जब दुश्मन लगता है, भरोसा करने की हिम्मत न होती हो, ऐसे में परग्रहियों के गौवंश प्रेम को देख साम्प्रदायिक माहौल कितना सुधरता है ये सोचिए.

सौ किताबें और हजार साहित्यकार मिलकर देश-समाज का इतना भला नहीं कर सकते जितनी एक खबर. यही शिक्षा का मूल है. यही साहित्य है. यही खबर, यही पत्रकारिता और यही साहित्य में दूध पीते एलियंस का महत्व है.

खबरें कोई भी सुना सकता है, लेकिन असर कोई विरला ही छोड़ पाता है. ऐसा असर जो सदियों तक रहे. निकट भविष्य में ऐसा समय आएगा जब धरती पर एलियंस का राज होगा और फिर किसी रोज उन्हें पता लगेगा कि वो जब इस धरा की रेकी कर रहे थे तब कोई महामानव उनपर स्पेशल रिपोर्ट बना रहा था. सोचिए तब इंसानों का भौकाल कितना टाइट हो पड़ेगा एलियंस के सामने. ऐसे दूरदर्शी को पद्मभूषण क्या भारत रत्न भी कम है. नोबेल भी नहीं टिकता.

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