रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ने कस्टमर को ज्यादा अधिकार देने के लिए अधिकारों का घोषणा पत्र तैयार किया है, जिसमें कस्टमर के पांच मूल अधिकारों का उल्लेख है. ये अधिकार उपयुक्त व्यवहार, ईमानदार डीलिंग, निजता और शिकायत निवारण से सम्बंधित हैं. आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन का ये फैसला बेशक सराहनीय है, लेकिन इसके साथ बैंक से जुड़ी उन अन्य पांच अधिकारों की मांग फिर सामने आ रही है, जिन पर ध्यान देना इतना ही जरुरी है. जानिये क्या हैं वो पांच अधिकार जो हर बैंक कस्टमर अपने बैंक से चाहता है..
1. हर किसी के लिए एक पेन- बैंक के काम-काज निबटाते हुए किसी कस्टमर को जिस चीज की कमी सबसे ज्यादा सालती है वो होती है एक पेन, ये सबसे पेनफुल स्थिति होती है जब बैंक पहुंचकर आपको पता चले कि आप पेन, तो लाना ही भूल गए हैं. दुनिया के सबसे विनम्र व्यक्ति को देखना हो, तो उसे देखिये जो बैंक में आपसे पेन मांग रहा हो. ऐसे में लाखों-करोड़ों का लेन-देन करने के लिए लाइन में खड़ा व्यक्ति भी याचक की मुद्रा में आ चुका होता है. चलिए आप उन लापरवाहों में नहीं हैं, जो पेन ले जाना भूल जाते हैं लेकिन किसी ने आपसे मांग लिया तब? जरुरत के वक़्त ट्रेन और बैंक में दिया हुआ पेन कभी नहीं मिलते, इसलिए बैंक को चाहिए कि पेन ले जाने वाले और भूल जाने वाले दोनों की सुविधा का ध्यान रखते हुए हर कस्टमर को बैंक में घुसते ही एक पेन पकड़ा दिया जाए.
2. पे पर कॉल- एक कन्या सबसे ज्यादा रचनात्मक तब होती है जब वो अपनी ब्लूटूथ डिवाइस को नाम दे रही हो और एक पुरुष सबसे रचनात्मक तब होता है जब वो लगभग गले पड़कर बीमा या लोन देने पर उतारू एजेंट को फोन पर टाल रहा होता है, ये लोगों की भलमनसाहत होती है कि इतने पर भी अपना आपा खोए बिना प्यार से मना करते हैं. बैंक को चाहिए कि या तो वो हमारा नंबर ऐसों को न दें या ऐसी हर कॉल झेलने के बदले तयशुदा राशि अकाउंट में स्वत: जमा करें, जो लोग ऐसी कॉल्स उठाने की बजाय बात किये बिना फोन काट देते हैं, उन्हें भी पैसे मिलने चाहिए, उस जख्मी अँगूठे के एवज में जो कॉल्स कट करते-करते ऐसा हो गया है.
3. ये लाइन छोटी कर दो- बैंक की शाखा में लाइन में लगने से बचने के लिए एटीएम की लाइन में खड़े होकर ख्याल आता है कि फिर बैंक ही क्या बुरा था? बैंक वालों को चाहिए कि और कुछ करें न करें कैसे भी ये लाइन छोटी कर दें. साथ ही महीने के अंत में एटीएम से निकालने के बाद बची हुई राशि बताने वाले मैसेजेज बंद करने की सुविधा भी होनी चाहिए, हर महीने बेइज्जती सही नहीं जाती.
4. ऐसे तो न देखो मुझे- सोचिये कि आप बैंक सिर्फ पासबुक प्रिंट कराने या ऑनलाइन बैंकिंग के लिए ई-मेल का पता बदलवाने बैंक गए हैं. कांच के पार से हाथ रोककर क्लर्क आपको यूं देखेगा मानो कह रहा हो, यहां हम करोड़ों का कालाधन जमा कराने की तैयारी में हैं तुझे पासबुक प्रिंट कराने की पड़ी है?
5. सांस लेने के पैसे भी ले लो- बैंक की शाखा से कितने ट्रांजैक्शन, एटीएम से नौ ट्रांजैक्शन, दूसरे बैंक के एटीएम से पांच ट्रांजैक्शन, मेट्रो-नॉन मेट्रो में अलग-अलग संख्या में ट्रांजैक्शन और अगर गलती से भी ज्यादा हुए तो हर ट्रांजैक्शन के बदले पैसे, इन्टरनेट बैंकिंग में हर लेन-देन के बदले हर बार पैसे, यहां तक की ट्रांजैक्शन की डीटेल बताने वाले मैसेजेज तक के पैसे लिए जाते हैं, कभी-कभी तो लगता है एटीएम और बैंक में जितने समय तक खड़े होकर सांस ली है उसके पैसे भी न चार्ज कर लिए जाएँ.