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व्यंग्य: किसके दवाब में हुई संजय दत्त की पैरोल रद्द?

‘संजय दत्त फिर पैरोल पर छूटे’ ये ऐसी हेडलाइन है, जिसे लूप में लगाकर मीडिया वाले भी आराम से सो सकते हैं. यकीन रहता है आज नहीं तो पंद्रह दिन बाद फिर छूटेंगे ही.

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‘संजय दत्त फिर पैरोल पर छूटे’ ये ऐसी हेडलाइन है, जिसे लूप में लगाकर मीडिया वाले भी आराम से सो सकते हैं. यकीन रहता है आज नहीं तो पंद्रह दिन बाद फिर छूटेंगे ही.

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जब से संजय दत्त को जेल हुई वो जेल में उतने ही दिन रहे होंगे जितने दिन नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में रहे. एक बार फिर संजय दत्त पैरोल पर छूटकर बाहर आए और पैरोल पीरियड खत्म होते तक एक और पैरोल की अर्जी दे दी. स्कूल में ‘सफरिंग फ्रॉम फीवर सिंस लास्ट नाइट’ वाली अर्जी भी इतनी जल्दी नही स्वीकार की जाती, जितनी जल्दी संजय दत्त की पैरोल की अर्जी स्वीकार कर ली गई. बावजूद इसके आखिरी समय में उन्हें कुछ लोगों के असंतोष के चलते जेल जाना पड़ा.

संजय दत्त का आवेदन रद्द होने की वजह उन्हें बार-बार मिल रही बेजा पैरोल का विरोध बताया जा रहा है, जिसके दवाब में उन्हें छुट्टी मिलते-मिलते रह गई. ये विरोध उन तमाम लोगों का है जो कार्यस्थल से छुट्टी न मिलने के कारण असंतुष्ट हैं. इंसान अपने दुखों से उतना दुखी नहीं रहता जितना बगल वाले को बुधवार के दिन आउटिंग करते देख होता है. फिर असंतोष क्यों न भड़के?

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संजय दत्त को छुट्टी मिलते देख उन लोगों पर क्या बीतती होगी जो आधे दिन की छुट्टी मंजूर करवाने के लिए भांजी का तीन महीने में दूसरी बार रोक्का करवा लेते हैं. दो दिन की छुट्टी चाहिए हो तो दस बरस पहले शांत हुए ताऊजी का उठावना करवाना पड़ता है. जिन रिश्तेदारों से कभी फोन पर बात करनी पड़ जाए तो एस्प्रिन लेनी पड़ती है उनके मामा के बेटे को ब्लड डोनेट करने का बहाना बनाना पड़ता है. ऐसे वक्त पर लगता है संजय दत्त को तो इतनी आसानी से पैरोल मिल रही है जितनी आसानी से पैंट में रखी गाड़ी की चाभी नहीं मिलती.

ऑफिस जाने की जल्दी में खुद के नहाने के लिए तौलिया ढूंढ़ने में जितनी मशक्कत करनी पड़ती है. उससे भी कम मेहनत में वो जेल के अन्दर-बाहर होते रहते हैं. जो लोग सरकारी नौकरी के तेरह दिन की छुट्टी वाले नियम में मन मारकर राष्ट्रसेवा कर रहे हैं. उन्हें राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के चलते जेल गए संजय दत्त को फैमिली संग पीके देखते देख ऐसा लग रहा था मानों गुरूवार के व्रत के अगले दिन जन्माष्टमी पड़ गई हो और सामने बैठ कर कोई दही बड़े जीम रहा हो.

इन तमाम वाक्यों ने असंतोष की एक लहर पैदा की जिसके फलस्वरूप उठे विरोध के चलते कोर्ट को संजय दत्त की पैरोल का आवेदन ठुकराना पड़ा. चलते-चलते ओबामा भारत आ रहे हैं. प्रदूषण और प्रोटोकाल के चलते वो न होटल के कमरे से निकलेंगे. न खुली हवा में सांस लेंगे न बीस मिनट से ज्यादा एक जगह बैठेंगे. तब अमेरिका के प्रेसीडेंट से ज्यादा आजाद तो अपने संजू बाबा हुए न?

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(युवा व्यंग्यकार पेशे से इंजीनियर हैं और इंदौर में रहते हैं.)

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