अमेरिका में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता क्या मिली, सोशल नेटवर्किंग साइट्स सतरंगी हो गईं, ये पहली बार था जब मानसून ढंग से पहुंचा भी नहीं था और हर ओर इंद्रधनुष नजर आने लगे, रंग भरी प्रोफाइल पिक्चर लगाए एक दोस्त को फोन कर जब राय लेनी चाही तो उसने ये कहकर फोन काट दिया कि अभी छत पर पापा से छुपकर गर्लफ्रेंड के फोन का इंतजार कर रहा है, बाद में बात करेगा.
समलैंगिक विवाहों को मान्यता मिलने की बात दूर हमारे यहां बड़ी बात ये होती है कि आप अपनी वाली से शादी कर लो. जिस मुल्क में आप अपनी मर्जी से दसवीं के बाद विषय नही ले सकते, घरों में उल्टे हाथ से लिखना-खाना भी विद्रोह माना जाता है, वहां समलैंगिक विवाह दूर की कौड़ी हैं.
भारत में समलैंगिक विवाहों को मान्यता नहीं मिल सकती, कानूनी मान्यता मिल भी गई तो समाज इसे कभी मान्यता नहीं देगा. समाज बड़े मजे की चीज है, सड़क पर खून में लथराते पड़े रहिए समाज आधी आंख न देखेगा, वहीं चारदीवारी के भीतर क्या हो रहा है इसकी भनक लगते ही उसकी आंखें फट कर फ्लॉवर हो जाएंगी. एक बार समाज को आइडोनगिब्बेडैम कहकर समलैंगिक विवाह हो भी जाएं तो पड़ोस की मिश्राइन आंटी इसे मान्यता न देंगी.
समलैंगिक विवाहों के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा संस्कृति और सभ्यता हैं, जो बड़े पोखरे की मछली को जुकाम हो जाने पर भी खतरे में पड़ जाती हैं, उससे आगे बढ़ें तो एक बाधा ये भी है कि समलैंगिक विवाह होने पर दहेज कौन लेगा और दहेज कौन देगा? माएँ एक बार ये झेल सकती हैं कि लड़का गे है और उसका ब्याह हो जाने दो लेकिन ये कभी न झेल पाएंगी कि लड़के के ब्याह में बुआ को फटी बनारसी साड़ी भी न आए.
बुआ को अंगूठी दिलाने का वादा कर मांओं को चुप भी करा दिया जाए तो मुश्किल अपने धर्म में पार्टनर खोजने की होगी, धर्म का निकला तो ये देखना होगा कि जाति कौन सी है, फर्ज कीजिये अगले ने अपनी जाति और धर्म का पार्टनर खोज भी लिया तो ये भी देखना होगा कहीं सगोत्री तो नही है.
अभी हम लड़कियों की बात नही कर रहे हैं, वो जींस पहने या बुर्का ये तक तो कोई और तय करता है, पार्टनर की बात छोड़िये. प्रोफाइल पिक्चर बदलिए, यहां सिर्फ वही बदल सकता है.
- आशीष मिश्र फेसबुक पर सक्रिय व्यंग्यकार हैं.