scorecardresearch
 

एक्जिट पोल के नतीजों से भाजपा कार्यकर्ता हताश, आदित्य ठाकरे हुए खुश

अभी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे तो नहीं आये पर एक्जिट पोल के नतीजे देख शिवसेना के सपनों का महल जरूर भरभराकर गिर पड़ा होगा.

Advertisement
X
अपने पिता उद्धव ठाकरे के साथ आदित्य ठाकरे
अपने पिता उद्धव ठाकरे के साथ आदित्य ठाकरे

किसी जंगल में एक टिटिहरी रहा करती थी, एक दिन वो आसमान की ओर पैर कर पीठ के बल लेट गई. बाकी पशु-पक्षियों के पूछने पर बताया कि उसने आसमान की ओर पैर कर स्वर्ग को अपनी मजबूत टांगों पर थाम रखा है. उसे भ्रम हो गया था कि अगर वो पैर हटा लेगी तो सारा आसमान, स्वर्ग समेत भरभराकर नीचे आ गिरेगा. कमोबेश यही भ्रम शिवसेना को भी हो गया था कि सारा महाराष्ट्र उन्हीं के कन्धों पर टिका है. इसी मुगालते में पड़कर भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया. अभी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे तो नहीं आये पर एक्जिट पोल के नतीजे देख शिवसेना के सपनों का महल जरूर भरभराकर गिर पड़ा होगा.

Advertisement

शिवसेना और भाजपा का गठबंधन टूटने पर सबसे ज्यादा हैरान खांटी दक्षिणपंथी हुए, जो शिवसेना को ‘उग्र राष्ट्रवाद’ और भाजपा को ‘हिंदुत्व’ के चलते पसंद करते थे. अब उनके सामने समस्या है कि अपना फेवरेट ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ का तमगा किसे दे डालें? शिवसेना में हर कोई दुखी नहीं है आदित्य ठाकरे यही सोच-सोचकर खुश हो रहे हैं कि एक्जिट पोल में उन्हें 70 सीटें मिल रही हैं, पिछले चुनावों में तो सिर्फ 44 ही मिली थीं. इसके पहले चुनाव प्रचार के समय जैसे बयान उन्होंने दिए, भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूटने का एक फायदा नजर आया. सबको पता चल गया आदित्य ठाकरे के अन्दर एक राहुल गांधी छुपे बैठे थे.

महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों के एक्जिट पोल के अनुसार भाजपा दोनों राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है इसके बावजूद भाजपा कार्यालय में हताशा का माहौल व्याप्त है. भाजपा कार्यकर्ताओं में तनिक भी उत्साह नजर नहीं आ रहा कारण कांग्रेस को मिल सकने वाली सीटों की संख्या को बताया जा रहा है. महाराष्ट्र में कांग्रेस को सत्ता से सत्ताईस पर सिमटना और हरियाणा में 10 से 15 सीटें मिलना बताया जा रहा है,ऐसे में मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना तो कभी पूरा नहीं हो सकेगा. कांग्रेस को इतनी सीटें तब मिल रही हैं, जबकि नरेंद्र मोदी ने दोनों जगह ताबड़तोड़ रैलियां की थीं. नरेंद्र मोदी की रैलियों को छोड़ भी दिया जाए तो साथ ही राहुल गांधी ने भी कुछ रैलियां की थीं और अपने चिर-परिचित लापरवाह अंदाज में एकाध जगहों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘विपक्ष का नेता’ कहते नजर आये थे.

Advertisement

एक्जिट पोल के बाद बुलाई गई पार्टी मीटिंग में कई भाजपा कार्यकर्ता ये तक कहते नजर आये कि उन्होंने और उनके नेताओं ने चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कमी राहुल गांधी की रैलियों में रह गई. लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी अकेले कांग्रेस को लीडिंग पार्टी से ब्लीडिंग पार्टी बनाने का कारनामा कर चुके हैं. दो-चार रैलियां और हो जाती तो कांग्रेस दो-चार सीटों पर सिमट सकती थी. वरिष्ठ नेताओं की मानें तो इन चुनावों के दौरान दिग्विजय सिंह का एक भी ‘ढंग का बयान’ न आना कांग्रेस के लिए हितकारी साबित हुआ, साथ ही भविष्य के लिए ताकीद भी दी गई है कि भले ही नरेंद्र मोदी खुद रैलियों को संबोधित न करें पर ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ जैसा सपना देखने से पहले ये सुनिश्चित कर लें कि राहुल गांधी को नजरअंदाज न किया जाए, क्योंकि खुद नरेंद्र मोदी तो प्रधानमंत्री बनकर व्यस्त हो गए, एक वही बचे हैं जो कांग्रेस को पूरी तरह मिटाने में आज भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे.

(आशीष मिश्रा फेसबुक पर सक्रिय हैं और पेशे से इंजीनियर हैं)

Advertisement
Advertisement