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व्यंग्य: क्या है बजट में जूते सस्ते होने की कहानी

जेटली साहब के लिए जीवन की शायद ये सबसे बड़ी चुनौती थी. बजट में आखिर क्या किया जाए जिससे उसमें 'नमो नमो' की छाप दिखे?

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अरुण जेटली
अरुण जेटली

जेटली साहब के लिए जीवन की शायद ये सबसे बड़ी चुनौती थी. बजट में आखिर क्या किया जाए जिससे उसमें 'नमो नमो' की छाप दिखे? जब लोगों ने वोट बीजेपी को नहीं, मोदी जी को दिया. जब रेल बजट प्रभु की मर्जी से नहीं, मोदी जी के मनमाफिक बना. फिर आम बजट ऐसा कैसे हो सकता है, जिस पर नमो कृपा नजर न आए.

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बाकी चीजें तो वो तय कर ही चुके थे. बजट में कौन चीजें सस्ती हों और कौन महंगी? मामला इसी पर अटका हुआ था.

फिर उन्होंने टीम मोदी की मदद लेने का फैसला किया. टीम मोदी की ओर से एक सलाह आई कि मोदी के नाम वाले सूट सस्ते कर दिए जाएं. मोदी सूट की करोड़ों में नीलामी के बाद काफी लोग वैसे कोट बनवाना चाह रहे हैं, लेकिन महंगा होने के कारण हिचक रहे हैं. टीम मोदी को ये जानकारी गुजरात के उस दर्जी ने दी थी, जो मोदी के कपड़े सिलता है. इसी तरह एक आइडिया मोदी कुर्ते को लेकर था. मोदी जैकेट को लेकर भी एक आइडिया था. इस फेहरिस्त में एक धांसू आइडिया तो ऐसा था कि जेटली साहब का सर ही घूम गया.

आइडिया ये था कि बजट में सब्सिडी देकर चार्टर प्लेन के सफर को सस्ता कर दिया जाए. साथ में लॉजिक भी था कि इससे मध्य वर्ग में खरीदने की होड़ मचेगी. जैसे लोग लोन लेकर कार और स्कूटी खरीदते हैं, वैसे ही मौका मिला तो चार्टर प्लेन खरीदने लगेंगे. आखिर लोग मोबाइल खरीद रहे हैं कि नहीं. ये वही लोग हैं ना जो लैंडलाइन इसलिए नहीं लगवाते थे कि हर महीने बिल भरना पड़ेगा.

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चार्टर प्लेन वाले आइडिया से चौतरफा फायदा होने की बात समझाई गई थी. अगर विदेशी कंपनियों ने थोड़ी भी रुचि दिखा दी तो मेक इन इंडिया भी चल निकलेगा. इस तरह अगर सस्ते चार्टर प्लेन बनने लगे तो एक्सपोर्ट कर भारत कम से कम इस फील्ड में लीडर तो बन ही सकता है.

ऐसे हजारों कंप्यूटर जेनरेटेड आइडिया थे. जेटली साहब को लग रहा था उन्होंने कुल्हाड़ी पर ही पैर मार दिया है. उन्हें बड़ा अफसोस हुआ कि आखिर उन्होंने उस हाई टेक टीम से सलाह मांगी ही क्यों. असल में टीम मोदी का सिस्टम ये है कि उसके किसी भी आइडिया को रिजेक्ट करते वक्त लॉजिकल वजह बतानी पड़ती है. अगर आइडिया रिजेक्ट करने पर टीम के सदस्य ने ऑब्जेक्शन कर दिया तो मोदी जी के सामने पेश होकर सफाई देनी पड़ती थी.

मरता क्या न करता
दिल्ली चुनावों की वजह से जेटली साहब के पास वक्त बहुत कम बचा था. ऊपर से एक एक आइडिया को पढ़ना समझना और उसे कारण सहित रिजेक्ट करना नई बला थी. हुआ वही जिसकी जेटली साहब को आशंका थी.

मोदी जी के सामने जेटली साहब की पेशी हुई. खैर, पेशी तो जेटली साहब के पेशे का हिस्सा है. उन्होंने अपना प्वाइंट भी खोज रखा था. मोदी के दरबार में आर्ग्युमेंट की बहुत गुंजाइश तो होती नहीं. थोड़े शब्दों में टू द प्वाइंट अपनी बात रखनी होती है.

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बात बढ़े और वक्त बर्बाद हो इससे पहले ही जेटली साहब ने अपनी बात कह दी, 'सर, हर सजा मंजूर है. बस बजट पेश कर लेने दीजिए. क्योंकि फिलहाल और कोई चारा भी नहीं है. बस एक गुजारिश है.'

'वो क्या?' मोदी जी बोले.

'सर, आप ही कोई आइडिया सुझा दीजिए. वक्त बहुत कम है. तीन भी चलेगा. देख लेंगे.' जेटली साहब जानते थे कि मोदी जी के दिमाग में हमेशा ट्रिपलेट ही आते हैं. सिंगल आइडिया तो बीते दिनों की बात हो गई.

मानना पड़ेगा. नसीबवालों का भी हर दिन एक सा नहीं होता. ये पहला मौका था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोई आइडिया नहीं सूझा. बोले, 'आज थोड़ा थका हूं. सोना चाहता हूं.' और मोदी जी वहां से खिसक लिए.

जेटली साहब को इस संकट से उबरने का रास्ता नहीं सूझ रहा था. संकट की घड़ी में बाकियों की तरह उन्हें भी भगवान याद आए. आंखें बंद थीं. तभी उनके दिमाग में भगवान श्रीराम के वनवास की घटना घूम गई, जिसमें उनके भाई भरत द्वारा खड़ाऊं के सहारे शासन का कामकाज देखने की बात है.

आंखें खुली तो सामने पड़े जूतों पर नजर पड़ी. मोदी जी सोने की जल्दी में जूते वहीं छोड़ कर चले गए थे.

'यूरेका...' कुछ इसी तरह जेटली साहब उछले. फैसला किया कि अब तो सिर्फ एक चीज सस्ती हो सकती है. जूते, मगर कम से कम एक हजार वाले.

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