गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काको लागूं पांय,
बलिहारी गुरु आपनो गोविन्द दियो बताय.
गुजरात पुलिस के इस अधिकारी के लिए आसाराम बापू गुरु थे और नरेन्द्र मोदी गोविन्द. मोदी को जिस से लाभ हो, वह करने को तत्पर और आसाराम की सेवा में आतुर डी.जी. वंज़ारा का जीवन सहज था, सफल था बस सरल नहीं था. डीआईजी हो गए थे, डीजी होने के मधुर स्वप्न रातों में मधु घोलते. सुबह उठते तो बाबा का प्रवचन कानों में अमृत. बाबा के स्मरण के बाद जिह्वा पर गौमाता का दूध जो बाबा के मोटेरा आश्रम के गौशाला से ही आता था, चाहे वंज़ारा कहीं भी पदस्थापित हों. फिर हाथों में पिस्तौल लिए निकलते और धर्मो रक्षति रक्षितः के मार्ग पर निहत्थों की हत्या भी धर्म का पालन करने जैसा था. विश्वास था कि यही सत्य का मार्ग है, गुरु का आशीर्वाद है और गोविन्द का वरदहस्त भी.
लेकिन सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी की हत्या से हालात बदल गए. कानून की वर्दी से सितारे टूट गए, किस्मत फूट गई. कानून का रखवाला कानून की सलाखों के पीछे चला गया. गुरु का आशीर्वाद काम ना आया, ऊपर नज़र उठाई तो गोविन्द के वरदहस्त की जगह जेल की कोठरी की रिसती, जंग लगी छत ने ले ली थी. सब कुछ बिखर गया पर एक चीज़ साबुत थी, आसाराम की कृपा की आस और नरेन्द्रभाई कुछ रास्ता निकालेंगे इसका विश्वास. वर्षों तक रास्ता नहीं निकला तब भी यकीन था नरेन्द्रभाई इस विपत्ति से निकाल लेंगे और बापू आसाराम की कृपा से सब ठीक हो जाएगा. वंज़ारा ने नियति को स्वीकार लिया था पर मुंह नहीं खोलने की कसम नहीं तोड़ी थी. ऐसा कुछ नहीं कहा जो मोदी की सिंह सी छाती पर कांटे सा चुभे.
फिर ये 10 पन्ने का तीर क्यों? इसके बहुत कारण गिनाए जा रहे हैं, पर सबसे दिलचस्प है इसको आसाराम के अरेस्ट से जोड़ने वाला. ख़बरों के मुताबिक आसाराम कमसिन लड़कियों और युवा महिलाओं को नितांत एकांत में आशीर्वाद देते थे, रात के आठ बजे के बाद. दूर मध्य प्रदेश के छिन्दवाड़ा में आसाराम के आश्रम में पढ़ रही एक बालिका को साधकों ने प्रेतात्माओं के वश में घोषित कर दिया. फिर लड़की के पिता को ये समाधान सुझाया की बाबा अगर अकेले में प्रसाद दे देंगे तो भूत लंगोट लेकर भाग खड़े होंगे. तब बाबा जोधपुर में थे. लड़की को जोधपुर लाया गया. बाबा उसे अपने निजी कुटिया में ले गए और पट बंद हो गए. लड़की की मां बाहर प्रार्थना करती रही, आसाराम का नाम जपती रही. डेढ़ घंटे बाद बेटी बाहर आई तो उस परिवार की आस्था के पांव के नीचे से ज़मीन खिसक गई थी. एकांत का आशीर्वाद एक महापाप था, ऐसा लड़की ने बताया तो मां-बाप कांप गए.
उन्होंने आसाराम को इस पाप की सजा दिलाने की ठान ली और आखिरकार मुक़दमा कर दिया. यौन शोषण का. बलात्कार का. बाबा ने आनाकानी की, धमकी थी, लड़की पर लांछन लगाए पर आखिरन कानून की गिरफ्त में आए. जब ये समाचार वंज़ारा ने जेल में पढ़ा तो उसका विश्वास इस पाखण्ड से भी खंडित नहीं हुआ. गुरु पर विपदा का पहाड़ टूटा है और गोविन्द मौन हैं, ये मेरे गोविन्द कैसे हैं, कौन हैं? क्योंकि ये पहली बार नहीं है कि मोदी ने आसाराम की सहायता नहीं की. मोदी ने आसाराम के खिलाफ तो मोर्चा खोल रखा था. आश्रम द्वारा ज़मीन हथियाने के आरोपों पर, फिर आश्रम में दो बच्चों के मौत होने पर. मोदी ने मौक़ा नहीं छोड़ा था आसाराम को धकियाने का. पर ईश्वर की चाल को नासमझ इंसान कैसे समझता, इसलिए वंज़ारा विद्रोह पर नहीं उतरे थे. अब गोविन्द सरीखे गुरु कारागार में थे, और गुरु सरीखे गोविन्द गांधीनगर के मुख्यमंत्री आगार में.
वंज़ारा को ज़रा ना भाया. उन्होंने दस-पन्ने का त्यागपत्र लिखवाया. उसमें भी मोदी को गोविन्द बताया जो अमित शाह नामक प्रेत के प्रभाव में सत्य और असत्य के बीच भेद नहीं कर पा रहे. कानून पर से तो इस कानून के रखवाले का विश्वास कभी था नहीं. तब भी नहीं जब निर्दोषों को गोली से उड़ाया और तब भी नहीं जब खुद कानून की क़ैद में थे. कानून से मदद नहीं मांगी. आस तो आसाराम और नरेन्द्रभाई मोदी पर ही टिकी थी. आसाराम की गिरफ़्तारी से आस का वह मीनार भरभरा गया. वंजारा टूट गए. दस पन्नों पर व्यथा की कथा लिखी.
पर अफ़सोस, कि अफ़सोस नहीं. ठीक अपने गोविन्द के जैसे. जेल में वंज़ारा आध्यात्मिक हो गए हैं. इतने कि आध्यात्म पर तीन पुस्तकें प्रकाशित कर दी. सिंह गर्जना भाग 1 व 2 और रण टंकार. साथी कैदियों के लिए बाबा वंज़ारा हो गए क्योंकि वंज़ारा जब बोलते तो वचन कम प्रवचन ज्यादा करते. कानून की नौकरी क्यों करें जब कानून पर भरोसा नहीं. मोदी पर भी भरोसा नहीं. पत्र दिया. सब त्याग दिया. जब निकलते तो वंज़ारा बापू बन आश्रम चलाते. पर हाय रे ईश्वर की सत्ता, गुरु भी घंटाल निकले.
त्याग से मोक्ष नहीं मिलता. मोक्ष की पहली सीढ़ी प्रायश्चित है. जो न गुरु में है, ना शिष्य में, ना शिष्य के गोविन्द में. दंभ के स्तम्भ पर बैठ सब को दंड देने वालों का पाखण्ड अब खंड-खंड है. धरातल आ कर रसातल का भय जब ह्रदय को जकड़ता है तो आदमी अकड़ता है. अकड़न शव की प्रकृति है, जीवित लोगों में आत्मा के कब के शव हो जाने का संकेत.