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आम आदमी के सामने पेश है अखिलेश यादव का समाजवाद वाया माधुरी और सलमान के ठुमके

ये नामुराद बचपन से कला की तरफ झुका था. समाज का दबाव विज्ञान पर है, जो उठान पर है. पर आदमी बीच का रास्ता निकाल ही लेता है. मैंने वह रास्ता समाजविज्ञान में निकाला. विज्ञान का सिर्फ नाम, निकल गया काम. लोहिया देश का समाजशास्त्र बदलना चाहते थे. उनके चेलों को अंकगणित में ज्यादा रुचि थी. उन्होंने भी बीच का रास्ता निकाल लिया. समाजवाद सिर्फ नाम का, निकला बड़े काम का.

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सैफई महोत्सव में सलमान खान का स्वागत करते यूपी के सीएम अखिलेश यादव
सैफई महोत्सव में सलमान खान का स्वागत करते यूपी के सीएम अखिलेश यादव

ये नामुराद बचपन से कला की तरफ झुका था. समाज का दबाव विज्ञान पर है, जो उठान पर है. पर आदमी बीच का रास्ता निकाल ही लेता है. मैंने वह रास्ता समाजविज्ञान में निकाला. विज्ञान का सिर्फ नाम, निकल गया काम. लोहिया देश का समाजशास्त्र बदलना चाहते थे. उनके चेलों को अंकगणित में ज्यादा रुचि थी. उन्होंने भी बीच का रास्ता निकाल लिया. समाजवाद सिर्फ नाम का, निकला बड़े काम का.

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सैफई महोत्सव पर मचे बवालोत्सव पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जब मुखर हुए तो उनके मुखारविंद से कुछ अनोखे और चोखे सत्य निकले. जैसे कि मैं मुख्यमंत्री हूं, सवाल मुझसे पूछो. अर्थात् पिता मुलायम से नहीं. पिता पार्टी के मुखिया हैं और सैफई की पार्टी भले पार्टी ने दी हो पर जिम्मेदारी तो पूरी सरकार ने उठाई थी. मुलायम की मुलायम छवि पर ऐसे कठोर आघात ना करें. अखिलेश ने कहा कि माधुरी के बिरजू-दीक्षित कूल्हों को मत कोसो, अपना कोसना हमरी अटरिया पे खोंसो. सलमान का मान मत छुओ, हमारा गिरेबान पकड़ो. मैं उत्तर प्रदेश का नेता हूं, मैं उत्तर देता हूं. यूं तड़ातड़ बोले युवा हृदय सम्राट कि प्रश्नों पर प्रश्नचिह्न लगा गए.

फिर उनके एक मंत्री, जिनका नाम नारद है, बोल पड़े: ये कहना गलत है कि शरणार्थी शिविरों में बच्चे मर रहे हैं, बच्चे तो महलों में भी मर सकते हैं. नारायण, नारायण. नाम नारद और वचन मानो नारायण स्वयं उवाच. जो जीवित है, उसे मृत्यु को प्राप्त होना है. इतना आध्यात्मिक आदमी राजनीति में है, तभी तो आम आदमी केजरीवाल की ओर भाग रहा है. क्योंकि नारद जी जिस पार्टी से आते हैं, उसकी महान समाजवादी विचारधारा ने रक्त की धारा में हमेशा हाथ ही धोया है. राममनोहर लोहिया के ये कड़छुल खौलते खून में वोट तलते हैं. इसीलिए राष्ट्रीय पार्टियों के लोग जलते हैं. कभी ये आशा की किरण थे. आज अंधेरे का अभियान हैं. कल भी महान थे, आज भी महान हैं.

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क्योंकि ये जानते हैं, इनका अंकगणित जनता की याददाश्त से मजबूत है. जनता को जात-पात का मद्यपान कराओ, फिर मतदान कराओ. चुनाव आते-आते कुछ नया गुल खिलाएंगे, सब मुजफ्फरनगर के दर्द भूल जाएंगे. आज तक तो ऐसा ही होता आया है. पर नारदजी नशे में गौर नहीं कर पाए. इस बार मंजर बदला है, खास गड़बड़झाला है. आप के पेड़ों पर आम आने वाला है.

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